सरहदों की सैर पर निकलीं दिल्ली की निहारिका के पास हैं वहां के ढेरों अनसुने किस्से

पेशे से आर्किटेक्ट दिल्ली की 27 वर्षीया निहारिका अरोरा बचपन से ही अपने दादा-दादी से बॉर्डर पार के किस्से-कहानियां सुनती आ रही हैं। इसलिए पढ़ाई के बाद, देश की सरहदों को करीब से जानने के लिए वह एक अनोखे सफर पर हैं और ढेरों अनसुनी कहानियों को समटते हुए आगे बढ़ रही हैं।

Travel Story of Niharika From Delhi

अक्सर बॉर्डर का नाम सुनकर हमारे मन में वॉर, नफरत और डर जैसी भावनाएं ही आती हैं, लेकिन बॉर्डर (Travel Story) के पास रहनेवाले लोगों के अंदर भी एक दिल है, जो सुकून और अपनापन चाहता है। वहां के लोग भी चाहते हैं कि हम उनसे मिलें, उनकी बातें सुनें और कुछ अपने किस्से बताएं। 

दिल्ली की निहारिका अरोरा, बचपन से अपने दादा-दादी और नाना-नानी से बॉर्डर पार के किस्से सुना करती थीं कि कैसे बंटवारे के पहले हम सभी एक ही देश के रहनेवाले थे। निहारिका की दादी का जन्म पाकिस्तान के लाहौर में हुआ है, वहीं उनके दादा, डेरा ग़ाज़ी ख़ान से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन बंटवारे के बाद वे हिंदुस्तान आ गए और पुराने किस्से वहीं रह गए। 

इन किस्सों को सुनकर निहारिका हमेशा बॉर्डर के पार लोगों से मिलने और वहां के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहती थीं। हालांकि, कुछ बॉर्डर्स पर टूरिस्ट आराम से जा सकते हैं। लेकिन इनके अलावा भी कई गांव और कस्बे ऐसे हैं, जो हमारे देश को दूसरे देश की सीमा से जोड़ते हैं। निहारिका उन्हीं अनदेखे बॉर्डर्स की यात्रा (Travel) कर रही हैं।

नौकरी के बजाय घूमने (Travel Story) को बनाया काम 

द बेटर इंडिया-हिंदी से बात करते हुए निहारिका कहती हैं, “मैं हमेशा से घूमने-फिरने की शौक़ीन रही हूँ। मैं कच्छ, लदाख और कारगिल जैसे बॉर्डर्स पर जाती रहती थी। लेकिन अब मैंने इसे एक सीरीज़ के रूप में शुरू किया है और फ़िलहाल मैं देश की सरहदों की सैर पर हूँ।"

niharika arora exploring Indian Borders<br />
Niharika Arora

साल 2018 में, जामिया मिलिया इस्लामिया से आर्किटेक्ट की पढ़ाई करने के दौरान भी निहारिका अलग-अलग जगहों के दौरे के लिए जाया करती थीं। इसलिए उन्हें घूमने, लोगों और संस्कृतियों को समझने में काफी रुचि है। यही कारण है कि पढ़ाई के बाद उन्होंने नौकरी करने के बजाय एक ब्रेक लेकर घूमने का मन बनाया। हालांकि जब उन्होंने अपनी ट्रिप की शुरुआत की थी, तब उनके मन में बॉर्डर की सीरीज़ या सिर्फ बॉर्डर घूमने का कोई ख्याल नहीं था।

लेकिन समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि इन जगहों पर टूरिज्म ज्यादा नहीं है। लेकिन पर्यटन और सांस्कृतिक नज़रिये से ये जगहें काफी रोमांचक हैं, जिसके बाद उन्होंने अपनी यात्रा को एक नया नाम दिया और निकल पड़ीं सरहद किनारे बसे लोगों से मिलने, ताकि वह उनसे उनके जीवन की तकलीफें बाँट सकें।

कैसा था अलग-अलग बॉर्डर्स देखने का अनुभव? 

वैसे तो उन्होंने साल 2018 से ही यात्रा (Travel Story) करने की शुरुआत कर दी थी, लेकिन कोरोना के समय दो साल उन्हें घर आना पड़ा। उन्होंने बॉर्डर की अपनी यात्रा कोरोना के बाद ही शुरू की है।    

Niharika With Some Villagers At Border
Niharika With Some Villager At Border

निहारिका कहती हैं कि बॉर्डर के पास, आम लोगों के दिलों में दूसरे देश के नागरिकों के लिए प्रेम ही है। वहां रहनेवाले लोग लड़ाई और नफरत को बिल्कुल खत्म करना चाहते हैं। क्योंकि देश के बॉर्डर पर वॉर सिर्फ सिपाही नहीं लड़ते, बल्कि वहां रहनेवाले आस-पास के लोग भी उस लड़ाई का हिस्सा होते हैं। 

अब तक वह भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान के कई अनदेखे बॉर्डर्स का दौरा कर चुकी हैं। उन्होंने गुजरात के कच्छ से जुड़ा पाकिस्तान बॉर्डर, लेह से जुड़ा चीन बॉर्डर, लदाख से कारगिल और द्रास एरिया के कई छोटे-छोटे गांवों का दौरा किया है। 

निहारिका कहती हैं, “कई जगहें ऐसी हैं, जिसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते, लेकिन उन गावों और कस्बों में कई रोचक बातें हैं, जिन्हे जानने के लिए मैं वहां जाती हूँ। चूंकि वे जगहें पर्यटन के लिए खुली नहीं हैं, इसलिए वहां पहुंचना आसान नहीं होता। ऐसे समय में मैं स्थानीय लोगों की मदद लेती हूँ।"

हाल ही में उन्होंने चुशूल गांव का दौरा किया था। यह वही गांव है, जहां 1962 का भारत-चीन युद्ध हुआ था। यहां पहुंचने के लिए उन्हें कई तरह की मुश्किलें उठानी पड़ीं। इसके अलावा, अब वह दक्षिण भारत और पंजाब से जुड़े बॉर्डर्स पर घूमने की योजना भी बना रही हैं।  

बॉर्डर से जुड़ा एक बेहतरीन किस्सा 

निहारिका कहती हैं कि जब वह सरहदों से लगे इन छोटे-छोटे गावों (Travel Story) में जाती हैं, तो लोगों को विश्वास नहीं होता कि वह यहां घूमने आई हैं। क्योंकि ज्यादातर लोगों का मानना है कि ये गांव पिछड़े हुए हैं, यहां देखने जैसा कुछ नहीं है। वहीं निहारिका का मानना है कि इन जगहों में ही हमें देश के बॉर्डर्स से जुड़ी कहानियां मिलती हैं। 

ऐसा ही एक किस्सा याद करते हुए वह कहती हैं, “कच्छ के पाकिस्तान बॉर्डर से जुड़े एक गांव का दौरा करते हुए मैं उन महिलाओं से मिली, जिन्होंने 1971 के भारत -पाकिस्तान वॉर के समय, पाकिस्तानी सेना के द्वारा बम से उड़ा दिए गए एयर इंडिया के रनवे ट्रैक को बनाने का काम किया था। उनमें से कई महिलाएं तो अब 80 और 90 साल की बुजुर्ग हो गई हैं। लेकिन आज भी जो गर्व उनके अंदर है, उसे आप उनसे बात करते समय महसूस कर सकते हैं। ये सारी महिलाएं ही भारत की सच्ची वीरांगनाएं हैं।"

ऐसी ही कई कहानियां वह अपने सोशल मीडिया और यूट्यूब के ज़रिए आम लोगों तक भी पंहुचा रही हैं। उनके इन किस्सों को आम लोगों का ढेर सारा प्यार भी मिल रहा है। यही वजह है कि निहारिका अब सोशल मीडिया से अच्छे पैसे भी कमा रही हैं। आप भी निहारिका की What's at the Border? सीरीज़ से जुड़ सकते हैं।   

संपादनः अर्चना दुबे

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