नवरात्रि आते ही कई इलाकों में कुट्टू का आटा किराने की दुकानों की शोभा बढ़ाने लगता है। अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो नवरात्रों के दौरान फ़ूड आउटलेट्स में कुट्टू के आटे से बनी पूड़ियां और पकौड़े मिलना आपके लिए आम बात होगी। लेकिन वहीं बहुत से लोग ऐसे हैं, जिन्हें ‘कुट्टू’ क्या है, यह नहीं पता होगा। वे इसका अंग्रेजी नाम तलाशेंगे। बकव्हीट (Buckwheat) को हिंदी में कुट्टू कहते हैं। लेकिन अब सवाल यह है कि जिसके नाम में ‘व्हीट’ आ रहा है, भला उसे कोई उपवास में कैसे खा सकता है?
क्योंकि उपवास में अनाज खाने की मनाही होती है। पर दिलचस्प बात यही है कि ‘बकव्हीट’ का ‘व्हीट’ यानि कि गेहूं से दूर- दूर तक कोई संबंध नहीं है। वैज्ञानिकों के मुताबिक कुट्टू को छद्म अनाज कहा जा सकता है, क्योंकि इसके पौधे मुख्यतः झाड़ी की तरह होते हैं। कुट्टू को अम्लीय और कम उपजाऊ जमीन में भी उगाया जा सकता है। यह खरपतवार को दूर रखता है और मिट्टी को कटाव से भी बचाता है। कुट्टू की उत्पत्ति का इतिहास सदियों पुराना है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ऐंड हेल्थ साइंसेज (IJMRHS), 2020 में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, कुट्टू एशिया की प्राचीन फसलों में से एक है।
यह मुख्य तौर पर भारत, चीन, नेपाल, कनाडा, कोरिया, भूटान, मंगोलिया और जापान जैसे देशों में उगाया जाता है। हालांकि, हालांकि कुट्टू की खेती में किसानों की रुचि बीसवीं शताब्दी के बाद कम होने लगी। इसका कारण नाइट्रोजन उर्वरकों के इस्तेमाल में वृद्धि थी। क्योंकि ये उर्वरक अन्य मुख्य अनाजों की उत्पादकता को बढ़ाने में कारगर साबित होने लगे थे। लेकिन पिछले कुछ सालों से कुट्टू की खेती में फिर से बढ़ोत्तरी हुई है। इसका कारण है कुट्टू में मौजूद पोषण के बारे में बढ़ती लोगों की जागरूकता।

सुपरफूड है ‘कुट्टू’
भारत में कुट्टू की खेती हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मेघालय, सिक्मिम, उत्तराखंड व अन्य राज्यों में होती है। इलाकों की जलवायु के हिसाब से अलग-अलग महीनों में इसे बोया जाता है। कम समय में आप कुट्टू की अच्छी फसल ले सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती कुट्टू की मांग ने इसे किसानों के लिए फायदे की खेती बना दिया है। इसका मुख्य कारण है कुट्टू में मौजूद पोषक तत्व, जो अन्य सामान्य अनाजों जैसे गेहूं और चावल की तुलना में काफी ज्यादा होते हैं। डायटीशियन अर्चना कहती हैं कि राजगिरे की ही तरह कुट्टू एक ‘सुपरफूड’ है।
IJMRHS में प्रकाशित शोध के मुताबिक, भारत में कुट्टू की लगभग 20 प्रजातियां उगाई जाती हैं। अगर कुट्टू में उपलब्ध पोषण की बात की जाए तो इसमें 343 कैलोरी एनर्जी, 13.3 ग्राम प्रोटीन, और 10 ग्राम फाइबर होते हैं। इसके अलावा, कुट्टू में सभी जरुरी मिनरल्स भी होते हैं। कुट्टू में उप्लब्ध पोषण ही इसे हर उम्र के लोगों के लिए एक बेहतर खाद्य विकल्प बनाता है। खासकर कि वे लोग जिन्हें शुगर है या ग्लूटन से एलर्जी है।
क्योंकि,
- कुट्टू ग्लूटन फ्री है। इसलिए यह बहुत से लोगों के लिए गेहूं का अच्छा विकल्प है। हालांकि, कुट्टू के उत्पाद खरीदते समय लोगों को लेबल चेक करना चाहिए कि कहीं इसमें कोई ग्लूटन युक्त सामग्री को नहीं मिलाई गयी है।
- कुट्टू में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीस्ट्रैस जैसे कई गुण होते हैं। ये गुण तनाव को दूर कर मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने में मदद करते हैं।
- इसमें प्लांट कंपाउंड Rutin भी मौजूद होता है, जो हमारी शारीरिक क्रियाओं को बेहतर करने में मददगार होता है।
- इसमें फाइबर अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जिस कारण कुट्टू डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है।
कुट्टू के आटे की रोटियों से लेकर जापान के मशहूर नूडल्स तक
दुनियाभर में कुट्टू के तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। हमारे देश में कुट्टू के आटे की रोटियां, पूड़ियां और पकौड़े आदि चाव से खाए जाते हैं। हालांकि, कुट्टू के बीजों के अलावा, इसके पौधे की पत्तियां भी बहुत से घरों में साग-सब्जियां या चटनी बनाने में इस्तेमाल की जाती हैं। पिछले कुछ समय से देश में बढ़ते कॉन्टिनेंटल फ़ूड की मांग के कारण, जापान के मशहूर व्यंजनों का चलन भी हमारे यहां बढ़ा है। सुशी के अलावा बहुत से लोग जापान के मशहूर और पारंपरिक ‘सोबा नूडल्स‘ भी शौक से अपनी डाइट में शामिल कर रहे हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि कुट्टू को ही जापान में ‘सोबा’ कहा जाता है। और सालों से इसका उपयोग करके मशहूर सोबा नूडल्स बनाए जा रहे हैं। हालांकि, सोबा नूडल्स बनाने में कुट्टू के अलावा गेहूं के आटे का भी प्रयोग किया जाता है। लेकिन फिर भी जापान में सोबा नूडल्स को इनके औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। जापान, के अलावा चीन और कोरिया में में भी कुट्टू के नूडल बनाए जाते हैं। वहीं इटली में “Pizzocheri पास्ता” बेहद चाव से खाया जाता है। फ्रांस में कुट्टू के पैनकेक बनाए और खाए जाते हैं। पिछले कुछ सालों से कुट्टू का इस्तेमाल ग्लूटन-फ्री बीयर बनाने के लिए दूसरे अनाजों के विकल्प के तौर पर किया जाने लगा है।
कोरिया और जापान में कुट्टू के बीजों को भूनकर चाय बनाई जाती है, जिसे मेमिल-चा और सोबा-चा कहा जाता है। कुट्टू के इतने फायदे होने के बावजूद भारत में इसकी खेती सीमित स्तर पर ही हो रही है। जबकि आज के समय में कुट्टू की खेती किसानों की आय बढ़ा सकती है। क्योंकि बहुत सी फ़ूड कंपनियां लोगों के बीच बढ़ती फिटनेस की जागरूकता को देखते हुए कुट्टू, राजगिरे जैसे सुपरफूड से बने खाद्य पदार्थों को बढ़ावा दे रही हैं। अर्चना कहती हैं कि वैसे तो कुट्टू सभी के लिए फायदेमंद है, लेकिन फिर भी इसे नियमित तौर पर डाइट में शामिल करने से पहले किसी न्यूट्रिशनिस्ट से सुझाव ले सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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