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दक्षिण भारतीय शादी समारोह से लेकर किसी पारम्परिक रेस्टोरेंट तक, हर जगह आपको केले के पत्तों का उपयोग होता नज़र आएगा। न सिर्फ दक्षिण भारत, बल्कि देश के हर प्रदेश में केले के पत्तों का भोजन के साथ किसी न किसी रूप में इस्तेमाल किया ही जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं।
केले का पत्ता प्लांट-बेस्ड कंपाउंड, पॉलीफेनॉल्स से भरपूर होता है। पॉलीफेनॉल्स, नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में मौजूद फ्री-रेडिकल्स और दूसरी बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने का काम करते हैं। इसके साथ-साथ केले के पत्ते में खाने से पाचन में भी मदद मिलती है।
विज्ञान कहता है कि गर्म खाने को अगर केले के पत्ते में रखा जाए, तो इसमें मौजूद पॉलीफेनॉल्स भोजन में मिल जाता है और इससे शरीर को इन ऑक्सीडेंट्स का फायदा भी मिलता है।
हमारे देश में न सिर्फ खाना परोसने, बल्कि खाना बनाने के लिए भी केले के पत्तों का इस्तेमाल होता आ रहा है। गुजरात से लेकर बंगाल तक हर जगह कई पारम्परिक व्यंजन बनाने में केले के पत्ते मुख्य सामग्री होते हैं।
चलिए जानें हमारे देश में केले के पत्तों के इस्तेमाल से बनने वाली कुछ पारम्परिक डिशेज़ के बारे में।
1. पतरानी मच्छी
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पतरानी मच्छी एक पारसी डिश है, जिसे केले के पत्ते में पकाया जाता है। इसे नारियल की चटनी के साथ पकाया जाता है, जो इसके स्वाद को बढ़ा देती है।
इसमें मछली को केले के पत्तों में पकाया जाता है।
पतरानी मच्छी बनाने के लिए, पहले ताज़ा नारियल, हरीमिर्च, साबुत धनिया, साबुत जीरा, नमक, लहसुन, ताज़ा धनिया को मिलाकर नारियल की चटनी बनाएं। इसके बाद मछली के टुकड़ों के दोनों तरफ चटनी लगा दें। केले के पत्ते पर तेल लगाकर मछली के टुकड़ों को अलग-अलग लपेट लें।
फिर इसे किसी कढ़ाई में 30 मिनट तक भाप में पकाएं। पतरानी मच्छी बनने के बाद, इसमें नीबू का रस निचोड़कर परोसे। केले के पत्तों का अरोमा इस डिश का स्वाद और बढ़ा देता है ।
2. पानकी
यह एक पारम्परिक गुजराती डिश है, जो कम तेल के साथ केले के पत्तों में बनाई जाती है। मुख्य रूप से इसे चावल के आटे, केले के पत्ते और कुछ मसालो से बनाया जाता है। इसे बनाना बहुत आसान है और यह स्वाद और स्वास्थ्य दोनों के लिए लाजवाब है। इसे बनाने के लिए सबसे पहले एक बाउल में चावल का आटा लें फिर उसमें नमक, जीरा, अदरक और हरी मिर्च का पेस्ट, एक चम्मच तेल और आवश्यकतानुसार पानी डालकर मिला लें।
इस बेटर को ढोसा बेटर जितना पतला रखें।
अब इसे 1 घंटे के लिए साइड में रख दें। 1 घंटे बाद बेटर में हरा धनिया डालकर केले के पत्ते के ऊपर फैलाएं। केले के पत्तों को तेल से ग्रीस करना न भूलें। एक केले के पत्ते पर बेटर लगाएं और दूसरे पत्ते से इसे ढककर तवे पर पकाएं। दोनों तरफ से पकाने के बाद आपकी पानकी तैयार हो जाएगी।
3. माछा पात्रा पोड़ा
यह बंगाल और विशेषकर ओडिशा में बनने वाली एक बेहतरीन रेसिपी है। इन राज्यों में मछली बड़े चाव से खाई जाती है और अलग-अलग तरिके से पकाई भी जाती है। इस रेसिपी में मछली को केले के पत्ते में पकाया जाता है।
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इसे बनाने के लिए पहले मसाला तैयार करें। मसाला बनाने के लिए, सरसों के दाने, खसखस, अदरक, लहसुन, हरीमिर्च, जीरा, धनिया, नमक और तेल से गाढ़ा पेस्ट बना लें। बाद में मछली के टुकड़ों को इसमें मेरिनेट करके रख दें। कुछ देर रखने के बाद, मेरिनेट की हुई मछली को केले के पत्तों में लपेटकर पका लें।
ओडिशा में त्योहारों और विशेष अवसरों पर माछा पात्रा बनाया जाता है। मछली को पात्रा यानी पत्तों में पकाने के कारण इसका नाम माछा पात्रा पड़ा है।
4. इला अड़ा
एलयप्पम या इला अड़ा, चावल के आटे, गुड़ और नारियल से बना केरल का एक पारंपरिक व्यंजन है। यह एक तरह की मिठाई है, जो त्योहारों में विशेषकर गणेश चतुर्थी के मौके पर बनाई जाती है। इसके अलावा, इसे सुबह या शाम के नाश्ते में भी खाया जाता है।
इसे बनाने के लिए चावल के आटे को गूंदकर हाथ से छोटी रोटियां बनाई जाती हैं और इसके अंदर ताज़ा नारियल गुड़ और इलाइची का मिश्रण डालकर छोटे-छोटे पॉकेट्स तैयार करने होते हैं।
फिर इन्हे केले के पत्तों से लपेटकर कुकर या कढ़ाई में भाप में पकाया जाता है। केले के पत्तों को इस्तेमाल करने से पहले घी से ग्रीस करना न भूलें। हालांकि इसे मोदक जैसा बनाया जाता है, लेकिन केले के पत्तों में पकाने से इसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है।
5.वलाई या मंगलौर इडली
दक्षिण भारत की कई जगहों पर इडली बनाने के लिए केले के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। चावल और उड़द की दाल से बने घोल को केले के पत्ते के ऊपर रखकर भाप में पकाया जाता है। कहीं-कहीं इडली के सांचे के उपयोग के बिना ही इडली बनती है, तो कहीं केले के पत्तों को इडली के सांचे में रखकर इस्तेमाल किया जाता है।
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मैंगलोर में केले के पत्तों से एक पॉकेट बनाया जाता हैं उसके अंदर इडली के घोल को डालकर स्टीम किया जाता है। आकार चाहे कैसा भी हो, मकसद केले के पत्तों का स्वाद और अरोमा लेना होता है। इडली बनाने के बाद उसे केले के पत्तों पर ही परोसा भी जाता है।
तो अगर आपने इसमें से किसी डिश को कभी नहीं पकाया, तो एक बार जरूर बनाएं। वहीं अगर आपके इलाके में केले के पत्तों से कोई पारम्परिक डिश बनती है, तो उसके बारे में हमें जरूर लिखें।
हैप्पी कुकिंग, हेल्दी कुकिंग!
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