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सत्तू: ‘गरीबों का खाना’ माना जाने वाला यह देसी आहार, अब बन गया है विदेशियों का सुपरफूड

Desi Superfood Sattu

विजय गिरी, बिहार में पश्चिम चंपारण जिला स्थित हरपुर गांव के एक प्रगतिशील किसान हैं और स्वास्थ्य के महत्व को समझते हैं। उनका कहना है कि पहले बड़े-बुज़ुर्ग हमेशा पौष्टिक चीजें अपने आहार में शामिल करते थे। वह खुद भी बरसों से यही करते आ रहे हैं, जिसके कारण वह खुद भी काफी स्वस्थ रहते हैं। विजय कहते हैं कि पुराने जमाने के लोग दिन में पोषण से भरपूर सत्तू को कभी पानी में मिलाकर, तो कभी इसके लड्डू बनाकर या पराठे बनाकर खाया करते थे।

“एक समय था जब गर्मी के मौसम में दादी कभी भी सत्तू पिए बिना घर से निकलने नहीं देती थी। खासकर दोपहर के समय, जब गर्मी बहुत ज्यादा होती थी, तब घर में सभी लोग सत्तू पीते थे। भारत में सत्तू कई तरह से लिया जाता है, कोई इसकी लोई बनाकर खाता है, तो कोई पानी में मिलाकर पीता है। कहीं बाहर दुकान पर जाइएगा, तो सत्तू में निंबू, नमक, प्याज आदि डालकर देते हैं। जबसे होश संभाला है और अब 65 वर्ष की उम्र तक, मैंने अपने घर में और अपने आसपास सभी घरों में सत्तू का इस्तेमाल होते देखा है,” विजय बताते हैं।  

पोषण के मामले में ‘सुपरफूड‘ माना जाने वाला सत्तू बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में काफी प्रचलित है। अब धीरे-धीरे न सिर्फ देश के दूसरे राज्यों में, बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना रहा है। लेकिन अब सवाल आता है कि भला यह सत्तू है क्या? 

Women Making Sattu (Source)

इसका बड़ा ही आसान-सा जवाब है – भुने हुए चने और जौ को पीसकर जो मिश्रण तैयार किया जाता है, उसे सत्तू कहते हैं। हम जानते हैं कि चना और जौ, दोनों ही स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक होते हैं। इसलिए इन दोनों को भूनकर और फिर पीसकर मिश्रण बनाया जाता है। इस मिश्रण को अलग-अलग तरह से अपनी डाइट में शामिल किया जाता है। कोई एक चम्मच सत्तू को एक गिलास पानी में मिलाकर एनर्जी ड्रिंक बनाता है, तो कोई सत्तू से बने पराठे खाता है। हालांकि, एक जमाना था, जब सत्तू को ‘गरीबों का खाना’ कहा जाता है। लेकिन अब सत्तू को लोग ‘सुपरफ़ूड’ कहते हैं। 

बरसों पुराना है सत्तू का इतिहास 

अगर बात करें कि सत्तू कब से इस्तेमाल में लिया जा रहा है, तो इसके बारे में कई बातें प्रचलित हैं। जैसे कोई कहता है कि पुराने जमाने में युद्ध के दौरान, सैनिकों को सत्तू दिया जाता था। क्योंकि इससे पोषण और ऊर्जा दोनों मिलती हैं। शायद यही वजह है कि सत्तू को भारत का सबसे पुराना ‘इंस्टेंट एनर्जी ड्रिंक’ भी कहा जाता है। इतिहासकारों की माने, तो बहुत पुराने समय से सत्तू को तिब्बत में भी खाया-पिया जा रहा है। वहां इसे ‘tsampa’ के नाम से जाना जाता था, जिसे भिक्षु अपनी लंबी यात्राओं के दौरान अपने साथ रखते थे। 

वहीं, छत्रपति शिवाजी की गुरिल्ला सेना द्वारा भी सत्तू का सेवन किया जाता था। क्योंकि इससे मिलने वाली ऊर्जा के साथ-साथ, इसे साथ में रखना और इसका सेवन करना बहुत ही आसान था। 

बिहार और उत्तर प्रदेश में सत्तू की लिट्टी भी बनाई जाती है। शेफ मनीष महरोत्रा कहते हैं कि सत्तू की सबसे बड़ी खासियत है कि इसका आप किसी भी रूप में सेवन कर सकते हैं। इससे ड्रिंक बना सकते हैं, इसे पानी के साथ गूंथकर कच्चा खा सकते हैं या लिट्टी के रूप में पका सकते हैं। 

विदेश तक पहुंचा सत्तू

भारत में बरसों से इस्तेमाल हो रहा सत्तू, आजकल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है। इसका मुख्य कारण है, लोगों में स्वास्थ्य और फिटनेस के प्रति बढ़ती जागरूकता। क्योंकि इसके चलते लोग अपनी जड़ों की तरफ वापस लौट रहे हैं और देसी व जैविक खान-पान पर फोकस किया जा रहा है। जिनमें सत्तू का नाम भी शामिल होता है। दरभंगा से संबंध रखनेवाले समीर, सिंगापुर में एक कंपनी में बतौर प्रोग्राम मैनेजर काम करते हैं।
उन्होंने बताया, “बचपन से लेकर कॉलेज के दिनों तक, हेल्दी और इंस्टेंट ड्रिंक के नाम पर हमें शायद सत्तू ही पता था। लेकिन जब मैं सिंगापुर आया तो सत्तू मेरे लिए बस कभी-कभार की चीज हो गयी। साल में जब कभी देश लौटता था, तो साथ में सत्तू लाया करता था। मुझे तो फिर भी सत्तू के बारे में पता है, लेकिन सिंगापुर में रहनेवाले अपने बच्चों को इस पोषण से भरपूर आहार के बारे में समझाना चाहता था।” 

Sattuz taking Sattu Internationally (Source: Sachin Kumar)

हालांकि, दो साल पहले उनकी सत्तू की तलाश खत्म हुई। समीर ने एक सोशल मीडिया पोस्ट मेंसत्तूज़ के बारे में पढ़ा। यह बिहार के मधुबनी जिले का एक स्टार्टअप है, जो इस देसी सुपरफूड को बिहार से निकालकर दुनिया के नक्शे पर रख रहा है। स्टार्टअप के फाउंडर सचिन कुमार का उद्देश्य, सत्तू को दुनिया में कोने-कोने तक पहुंचाना है। समीर का कहना है कि जिस तरह से सत्तूज़ ने, इस देसी आहार की ब्रांडिंग की है, उससे यह न सिर्फ बड़ों के, बल्कि बच्चों के बीच भी अपनी जगह बना रहा है। अब वह सिंगापुर में रहते हुए भी अपने बच्चों को हर दिन सत्तू ड्रिंक दे पा रहे हैं। 

“दिलचस्प बात यह है कि स्वास्थ्य को लेकर सोशल मीडिया पर बढ़ते ट्रेंड से, अब ऐसे भारतीय सुपरफूड्स के बारे में दूसरे देशों के लोगों की जानकारी भी बढ़ रही है। मेरे सर्किल में बहुत से विदेशी लोग हैं, जो सत्तू ट्राई कर रहे हैं और उन्हें यह पसंद आ रहा है। दिन भर कंप्यूटर की स्क्रीन पर बैठे रहने के बाद, जब वह एक्सरसाइज करते हैं तो इस दौरान सत्तू से ज्यादा हल्दी ड्रिंक और क्या हो सकती है,” उन्होंने कहा। 

क्यों है सत्तू ‘सुपरफ़ूड’

सत्तू स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, यह तो सब कहते हैं। लेकिन आखिर इसमें ऐसा क्या पोषण है, जो इसे सुपरफूड की सूची में शामिल किया जाता है। इस बारे में डायटीशियन रचना अग्रवाल कहती हैं, “सत्तू का सेवन करने से आपको इससे जो पोषण मिलता है, वह इसे सुपरफ़ूड बनाता है। जितना पोषण यह अकेला आपको दे सकता है, उतना पोषण दूसरे बहुत ही कम आहारों में मिलता है। जैसे अगर कैलोरी की बात करें तो 100 ग्राम सत्तू का सेवन करने से आपको लगभग 400 कैलोरीज मिलती हैं, इसलिए इसे इंस्टेंट एनर्जी ड्रिंक कहते हैं।”

Sattu Recipe (Source)

उन्होंने आगे बताया की 100 ग्राम सत्तू में लगभग 25 ग्राम प्रोटीन की मात्रा होती है, जो दिन भर की आपकी प्रोटीन की जरूरत का 40% है। इसमें फाइबर की मात्रा भी 20-22 ग्राम होती है। जिस कारण यह आपके शरीर को डेटॉक्स भी करता है। रचना कहती हैं कि सत्तू में लगभग सभी जरुरी पोषक तत्व होते हैं जैसे कैल्शियम, मैगनीज़, आयरन और मैगनीशियम आदि। इसलिए अगर कोई सुबह में सत्तू को ड्रिंक के तौर पर ले रहा है, तो इसके कई फायदे उन्हें मिलेंगे जैसे यह शरीर को ठंडा रखता है, इससे पाचन तंत्र अच्छा होता है और इससे इम्युनिटी भी बढ़ती है। 

रचना का सुझाव है कि गर्मियों में सत्तू को पानी या छाछ में मिलाकर पीना ज्यादा फायदेमंद रहता है, क्योंकि यह आपके शरीर को ठंडा रखने और आपको लू और डिहाइड्रेशन से बचाने में मदद करता है। वहीं, सर्दियों में शरीर को हल्का गर्म रखने के लिए आप सत्तू के लड्डू बना सकते हैं। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान भी बहुत से लोगों ने जरूरतमंद लोगों का पेट भरने के लिए सत्तू का प्रयोग किया था। उत्तर प्रदेश में डोराई फाउंडेशन की फाउंडर सुमित्रा प्रसाद ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि उन्होंने पारंपरिक तरीकों से सत्तू तैयार किया। जिसमें लोहे की कढ़ाई में गुड़ के साथ चने भुने गए और फिर इस मिश्रण को छानकर पीसा गया। 

इस तरह से तैयार सत्तू को उन्होंने उत्तर प्रदेश के मेरठ और मिर्ज़ापुर में बहुत से जरूरतमंद लोगों में बांटा, ताकि किसी को भूखा न सोना पड़े। इसी तरह, दिल्ली की महक आनंद ने भी अपने घरों को वापस लौट रहे लोगों के लिए फ़ूड पैकेट्स तैयार किए, जिनमें 300 ग्राम सत्तू का पैकेट भी रखा गया और साथ में पानी, नमक और नींबू आदि भी उन्होंने दिया। लॉकडाउन के दौरान गरीब से लेकर अमीर तक, सभी ने सत्तू पिया और खाया। किसी ने मुश्किल समय में अपना पेट भरने के लिए तो किसी ने स्वास्थ्य और इम्युनिटी के लिए। 

लॉकडाउन के दौरान मशहूर अभिनेता आयुष्मान खुराना ने सत्तू पीते हुए एक पोस्ट साझा की थी और उन्होंने इस पोस्ट में सत्तू को ‘प्रोटीन शेक’ कहा। हालांकि, इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि हमारा देसी सत्तू हर तरह के प्रोटीन शेक से अव्वल है। जिसका कोई मुक़ाबला नहीं है और अब इसलिए ही, न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी भी इसके महत्व को समझ रहे हैं। 

संपादन- जी एन झा

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