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भारत में हर कोई ट्रैफिक की समस्या से जूझ रहा है। आप पूछेंगे कि इसमें नया क्या है? नया है – एक इंसान की सोच जिसने, इन समस्याओं से उतने ही परेशान रह रहे ट्रैफिक पुलिस का दर्द समझा और हर दुसरे व्यक्ति की तरह उनसे शिकायत करने की बजाय उन्हें धन्यवाद कहने का एक नायाब तरीका ढूंढ निकाला।
बंगलुरु निवासी जी.एस. संतोष का मानना है,
“भारत में एक ट्रैफिक हवलदार होना एक कठिन काम है। बंगलूरु के किसी भी नागरिक से बात करिए और वो आपको इन ट्रैफिक पुलिसो द्वारा अनएथिकल प्रैक्टिसेज के किस्से सुनायेंगे। पर कोई भी इनकी मेहनत नहीं देखता जो ये लोग हमारी सुविधा और भलाई के लिए करते हैं।"
ऐसा नहीं है कि ३८ वर्षीय संतोष ने खुद इस ट्रैफिक से जुडी हुई परेशानियों का सामना नहीं किया है। वे बताते हैं, "दस साल पहले मैं मरथाहल्ली में रहता था और कोरमंगला में काम किया करता था। इस १० किलोमीटर की दूरी तय करने में मुझे ढाई घंटे लग जाते थे। कुछ समय बाद मैं इस से इतना परेशान हो गया कि पहला मौका मिलते ही मैं कनाडा चल गया।"
कुछ साल बाद जब संतोष वापिस लौटे तब भी यहाँ की स्थिति में कुछ ख़ास सुधार नहीं था। बल्कि हालात और बिगड़ चुके थे।
संतोष इस बात से इतना दुखी हुए कि उन्होंने एडिशनल पुलिस कमिश्नर से मिलने का मन बना लिया। इस मुलाकात के बाद संतोष को पता चला कि कमिश्नर खुद भी ट्रैफिक की स्थिति को सुधारना चाहते थे और इस के लिए हर संभव प्रयास करने को तैयार थे। पर सत्य तो ये भी था कि इसके लिए काम सड़क पर करना था, एक ऑफिस में बैठ कर विचार करने से कुछ ख़ास फर्क पड़ने वाला नहीं था। और फिर इसके लिए संतोष ने सड़क पर खड़े हवलदारो की स्थिति को समझने की कोशिश करने का मन बनाया।
शुरूवाती तौर पर इन्होने एक ट्रैफिक पुलिस की दृष्टि से इन जाम को और बढ़ती गाड़ियों की समस्या को समझने की कोशिश की। ऐसे में उनके सामने सच्चाई आई की वास्तव में यह समस्या छोटी नहीं है और इन सब से जूझने के लिए इन हवलदारो को कोई प्रशंसा या प्रोत्साहन नहीं मिल रहा।
संतोष बताते हैं,
"मेरे इन प्रयासों के दौरान मुझे पता चला की ६० प्रतिशत से अधिक हवलदारों को बड़ी ही कठिनाई भरी स्थिति में काम करना पड़ रहा है। बारिश, गर्मी, और बढ़ता हुआ प्रदुषण इन कठिनायों में से कुछ उदाहरण है।"
एक और बात जो संतोष ने गौर की, कि इन ट्रैफिक पुलिस के पास ठीक से बैठ कर खाने का स्थान, स्वच्छ पीने का पानी, शौचालय जैसे सुविधायें भी प्राप्त नहीं है। इन्हें इनका इंतज़ाम खुद ही करना पड़ता है।
Picture for representation only. Source: Flickr
पर एक बड़ा सवाल अभी भी वैसा ही था - इन मेहनती कर्मचारियों की किस प्रकार सराहना की जाए तथा ऐसे ही काम करते रहने को प्रेरित किया जाए। एक साल के रिसर्च के बाद सतोष ने इसका उपाय सोचा। योजना का मूल था की आम लोगो के लिए एक सॉफ्टवेर बनाया जाए जिस से वह अपने शहर के योग्य ट्रैफिक पुलिस को वोट कर सकें।
ट्रैफिक पुलिस को पहचान दिलाने और उन्हें पुरस्कृत करने की सोच के साथ संतोष ने सितम्बर २०१४ में ट्रैफिक पुलिस केयर (TPC) नामक एक संस्था की शुरुआत की। हर महीने TPC बंगलोरे शहर के ५ जंक्शन को चुनती है और उसमे से दोनों हवल्दारो ( दिन तथा रात की शिफ्ट वाले) को नामांकित करती है।
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दो फ़ोन नंबर - हैप्पी नंबर और अनहैप्पी नंबर इन जंक्शन को दे दिया जाता है। इन्ही नंबरो पर लोगो को फ़ोन कर अपने वोट रजिस्टर करने पड़ते है। अगर वे चाहे तो TPC के एंड्राइड एप्प से भी वोट कर सकते हैं।
यह वोटिंग पूरे महीने चलती है । नामांकित जंक्शन का प्रचार सोशल मीडिया, TPC की वेबसाइट और एप्प के ज़रिये किया जाता है। इसके साथ ही टीम के लोग सारी सूचना एक पैम्फलेट में डाल कर लोगो में वितरित भी करते हैं। एक महीने में जिस किसी भी जंक्शन को सबसे अधिक 'हैप्पी' वोट्स मिलते हैं उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है ।
इसके बाद एक आयोजन कर विजेता कर्मचारी को पुरस्कृत किया जाता है। यह आयोजन एडिशनल पुलिस कमिश्नर के ऑफिस में किया जाता है। पुलिस को १०,००० रुपये की राशी और TPC द्वारा एक मोमेंटो प्रदान किया जाता है।
संतोष के मुताबिक
“धन राशि से कहीं अधिक इन कर्मचारियों को प्रोत्साहित करना और पहचान दिलाना हमारे लिए आवश्यक है ।”
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वोटरों को भी जीतने का मौका दिया जाता है । ये TPC की वेबसाइट पर जा कर खुद को एक लकी ड्रा के लिए रेजिस्टर कर सकते हैं । इनमे से ५ लकी कालर को चुन कर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है जिस से ये आगे भी वोट करते रहे। संतोष के मुताबिक इनकी वेबसाइट अब तक ६ लाख लोगो तक पहुँच चुकी है तथा करीब २ लाख लोगो ने वोटिंग में हिस्सा लिया है ।
इस पूरे आयोजन से दो मकसद सफल होते हैं। एक तो आम लोगो के बीच जागरूकता फैलती है और उन्हें यह एहसास होता है ट्रैफिक की समस्या से निबटने में उनका योगदान भी कितना ज़रूरी है।
" अगर हम जाम की स्थिति का मुआयना करें तो पायेंगे की ८० प्रतिशत जाम इसलिए लगते हैं क्यूंकि हम नियमो का पालन नहीं करते । लोगो को वोट करने को बोल कर हम उन्हें यह सोचने को प्रोत्साहित करते हैं की इस समस्या से निबटने के लिए उनका योगदान भी इतना ही आवश्यक है जितना इन ट्रैफिक पुलिसो का।"
दूसरा मक्सद है इन पुलिस वालो को यह बताना कि उनका कार्य कितना महत्त्वपूर्ण है और हम उनके कितने आभारी हैं। इनसे उन्हें बेहतर करने को प्रोत्साहन मिलता है। सबसे अधिक 'अनहैप्पी' कॉल पाने वाले जंक्शन की तरफ भी लोगो का ध्यान जाता है तथा यह विवेचना करने का अवसर भी मिलता है कि वहां यह स्थिती क्यों है और इसे सुधारने के रास्ते तलाशने में मदद मिलती है।
अभी तक इस पूरी प्रक्रिया को संतोष अपने पैसों से चला रहे हैं। यही कारण है कि इसमें बीच बीच में पैसो के अभाव में एक अल्पविराम लग जाता है। फिर भी अभी तक इन लोगों ने २० पुलिस वालो को पुरस्कृत किया है। फ़िलहाल इस प्रक्रिया को कुछ दिनों के लिए रोक दिया गया है ताकि इसे बैंगलोर तथा अन्य शहरो में बेहतर तकनीक के साथ लांच किया जा सके।
TPC खुद को १५ नवंबर २०१५ को बंगलुरु में नए नामांकनो के साथ लांच करने वाली है। फिलहाल ये प्रायोजकों की तलाश में है ताकि इसे दुसरे शहरो में भी चलाया जा सके। अभी यह संस्था कुछ गिने चुने सेवको की मदद से चलायी जा रही है तथा एक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में खुद को रजिस्टर किया है।
संतोष TPC को कई तरह से विस्तृत करने का मन बना रहे हैं। उनके एप्प में एक नया फीचर होगा जिस से लोगों को अपने नज़दीक के पुलिस स्टेशन तथा उनके फ़ोन नंबर की जानकारी मिल पाएगी।
संतोष कहते हैं ,
“हम में से कई लोगो को अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन की जानकारी नहीं होती और पता नहीं होता की ज़रूरत के समय किस नंबर पर फ़ोन करना है।”
इस के अलावा, एक ऐसे सिस्टम पर भी काम किया जा रहा है जिस से लोग अपनी गाडियों के कागज़ात ऑनलाइन अपलोड कर पाएं जिसे ट्रैफिक पुलिस को उनकी जांच करने में सुविधा हो पाए।
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संतोष ये महसूस करते हैं कि इन ट्रैफिक समस्याओं से निपटने के लिए अभी और भी कई कदम उठाने पड़ेंगे। साथ ही हर नागरिक को जागरूक होना पड़ेगा और हर कोशिश में अपनी भागीदारी अंकित करनी होगी। संतोष अंत में कहते हैं, “ हम अधिक से अधिक लोगो की मदद पाना चाहते हैं जिस से इस उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सहायता मिले।”
आप चाहें तो संतोष से [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं।
TPC का ऐप डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करे।