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IIT मद्रास की टीम ने विकसित की प्रणाली, भूकंप की हानिकारक तरंगों का पहले ही चल जाएगा पता

IIT Madras Research On Earthquake

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास (IIT Madras) के शोधकर्ताओं ने भूकंप का सटीक ढंग से पता लगाने के लिए एक नया दृष्टिकोण विकसित किया है (IIT Madras Research)। इस प्रस्तावित समाधान में भूकंप के संकेतों में उसकी प्राथमिक तरंगों का सटीक आंकलन और उनका चयन शामिल है, जो बेहद छोटा, मगर महत्वपूर्ण लीड समय देता है, जिसमें भूकंप से होने वाले जान-माल के नुकसान को बचाने के उपाय किए जा सकते हैं।

भूकंप आने के सटीक समय का अनुमान, न केवल मजबूत पूर्व-चेतावनी प्रणाली (Early warning systems for earthquake) विकसित करने में मदद कर सकता है, बल्कि इससे विनाशकारी तरंगों के जमीन की सतह से टकराने के बीच लगभग 30 सेकंड से 2 मिनट तक का लीड समय भी मिल सकता है। यह अवधि सुनने में कम लगती है, पर कई उपायों के लिए यह पर्याप्त हो सकती है, जिनसे अनगिनत जिंदगियाँ बच सकती हैं।

इनमें परमाणु रिएक्टरों और मेट्रो जैसी परिवहन सेवाओं को बंद करना और लिफ्ट या एलिवेटर्स को रोकने जैसे उपाय शामिल हैं, जो भूकंप की स्थिति में जान-माल के नुकसान को कम करने में मददगार हो सकते हैं। 

विनाशकारी भूकंप से कम होगा नुकसान

यह IIT Madras Research केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अरुण के. तंगीराला के नेतृत्व में किया गया है। शोधकर्ताओं में प्रोफेसर तंगीराला के अलावा, आईआईटी मद्रास में पीएच.डी. शोधकर्ता कंचन अग्रवाल शामिल हैं। उनका यह अध्ययन शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किया गया है। यह अध्ययन आंशिक रूप से परमाणु ऊर्जा विभाग के एक सलाहकार निकाय, ‘बोर्ड ऑफ रिसर्च इन न्यूक्लियर साइंसेजद्वारा वित्त पोषित किया गया है। 

जब भूकंप आता है, तो यह भूकंपीय तरंगों की एक श्रृंखला उत्पन्न करता है। तरंगों के पहले सेट को पी-वेव कहा जाता है, जो हानि-रहित होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन तरंगों की शुरुआत का पता लगाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आने के समय का एक सटीक अनुमान एक मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early warning systems for earthquake) विकसित करने में मदद कर सकता है, जिससे विनाशकारी भूकंपीय तरंगों के अगले सेट के आने के बीच के समय का आकलन किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप के केंद्र और निगरानी स्थल के बीच की दूरी के आधार पर यह लीड समय 30 सेकंड से 2 मिनट तक हो सकता है।

Early warning systems for earthquake (Source)

सभी मौजूदा पी-तरंगों की पहचान की विधियां सांख्यिकीय सिग्नल प्रॉसेसिंग और समय-श्रृंखला मॉडलिंग के आइडिया के संयोजन पर आधारित हैं। हालांकि, इन विधियों की अपनी कुछ सीमाएं हैं और ये कई समुन्नत आइडियाज़ को पर्याप्त रूप से समायोजित नहीं करती हैं। समय-आवृत्ति (time-frequency) या अस्थायी-वर्णक्रमीय स्थानीकरण (temporal-spectral localization) विधि से समायोजित करके ऐसी विधियों की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है।

और भी होंगे कई फायदे

आईआईटी मद्रास का यह नया अध्ययन (IIT Madras research), इस अंतर को पाटने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। यह अध्ययन समय-आवृत्ति स्थानीयकरण सुविधा के साथ भविष्यवाणी ढांचे में एक नया रीयल-टाइम स्वचालित पी-वेव डिटेक्टर और पिकर का प्रस्ताव पेश करता है। इस प्रस्तावित दृष्टिकोण में पी-वेव तरंगों के उभरने का सटीक रूप से पता लगाने के लिए आवश्यक क्षमताओं का एक विविध सेट शामिल है, विशेष रूप से कम सिग्नल-टू-नॉइज अनुपात (एसएनआर) की स्थितियों में, क्योंकि इस पर मौजूदा तरीके अक्सर विफल होते हैं।

प्रोफेसर तंगीराला ने कहा, “यह जरूरी नहीं है कि प्रस्तावित ढांचा भूकंपीय घटनाओं का पता लगाने तक ही सीमित है, बल्कि इसका व्यापक उपयोग हो सकता है। इसका उपयोग भ्रंशों का पता लगाने और अलगाव के लिए भी किया जा सकता है। इसके अलावा, यह मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग मॉडल को समायोजित कर सकती है, जो इस तरह के आकलन में मानवीय हस्तक्षेप को कम करेगा।”

इस अध्ययन (IIT Madras Research) में शामिल अन्य शोधकर्ता कंचन अग्रवाल ने कहा, “पी-वेव आगमन की जानकारी घटना के अन्य स्रोत मापदंडों जैसे- परिमाण, गहराई और भूकंप के केंद्र को निर्धारित करने में भी महत्वपूर्ण है। इसलिए, पी-वेव डिटेक्शन, जो मजबूत और सटीक हो, भूकंपीय घटना के विवरण का सही अनुमान लगाने और भूकंप या अन्य संबंधित घटनाओं से होने वाले नुकसान को कम करने में उपयोगी हो सकती है।

लेखकः उमाशंकर मिश्रा

लेख साभार – India Science Wire

संपादनः अर्चना दुबे

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