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इंजीनियरिंग ड्रॉपआउट ने बनाया बिजली के बिना चलनेवाला वॉटर फिल्टर, खर्च सिर्फ 2 पैसा/लीटर

Engineering Dropout’s Water Purifier Gives Millions Worldwide Safe Water

बाढ़, सूखा या फिर आंधी-तुफान, आपदा चाहे जिस रूप में भी आए, अपने साथ तबाही लेकर आती है। ऐसे में लोगों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत साफ पीने के पानी की आती है। तबाही के मंजर में बैक्टीरिया, केमिकल, पशुओं की गंदगी और बहुत सी अशुद्धियां पानी को गंदा कर देती हैं।

बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है और यह किसी भी संकट को और बड़ा बना देने के लिए काफी है। इसलिए ऐसी परिस्थितियों में आपदा प्रबंधन का सबसे पहला काम साफ पानी की व्यवस्था करना होता है। 

इस कंपनी ने दिया समस्या का स्थाई समाधान

हालांकि कई गैर-सरकारी संगठन, आपदा प्रभावित लोगों को पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर उपलब्ध कराते हैं। लेकिन यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। कई बार पानी की आपूर्ति में कई दिन और महीने लग जाते हैं। वहीं, दूसरी तरफ पैकेज्ड पानी से प्लास्टिक के कचरे की समस्या सामने आ खड़ी होती है।

पुणे स्थित कंपनी एक्वाप्लस वॉटर प्यूरिफायर (प्राइवेट) लिमिटेड ने इस बारे में सोचा और समस्या के समाधान के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए। यह कंपनी, पिछले 17 सालों से ऐसे अनोखे वॉटर फिल्टर बना रही है, जो न केवल किफायती हैं बल्कि कुछ ही घंटों में हजारों लीटर पानी को साफ करने की क्षमता भी रखते हैं। इन्हें देश के दूर-दराज के इलाकों में ले जाना और वहां इंस्टाल करना आसान है।

Pune-based Rahul Pathak launched Aquaplus Water Purifiers (Pvt) Ltd

कंपनी, अपने वॉटर प्यूरिफिकेशन सिस्टम के जरिए 50 से ज्यादा प्राकृतिक आपदा की स्थिति में अपनी सेवाएं दे चुकी है। फिलहाल उन्होंने एक ऐसा वॉटर प्यूरीफायर बनाया है, जो बिना बिजली के भी काम कर सकता है।  

एक्सिडेंटली शुरू किया बिजनेस

कंपनी का इरादा कभी भी आपदा राहत कार्यों से जुड़ने का नहीं था। यहां तक कि उनकी शुरुआत भी काफी साधारण थी। द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए कंपनी के संस्थापक राहुल पाठक कहते हैं, “मैं पुणे में इंजीनियरिंग कर रहा था। तब मुझे लगा कि तर्क के लिए तो यहां कोई जगह ही नहीं है। कैल्कुलेशन और थ्योरी, दोनों मिलकर समस्या के समाधान को और जटिल बना रहे थे। मेरी नजर में प्रयोगों से समाज का कुछ ज्यादा फायदा होने वाला नहीं है। बल्कि इसकी बजाय अगर तार्किक ढंग से समस्या का सरल समाधान ढूंढा जाए, तो बेहतर रहेगा।”  

दिल और दिमाग की कश्मकश के बीच, उन्होंने 1993 में अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और वॉटर प्यूरीफायर की मार्केटिंग करने का फैसला कर लिया। उन्होंने बताया, “मुझे ऐसा करने की प्रेरणा अपने पिता के बिज़नेस से मिली। वह सिरेमिक तकनीक से फिल्टर बनाकर बेचते थे। हालांकि 90 के दशक में आई मंदी ने उनके इस बिज़नेस पर भी प्रभाव डाला और उनकी मार्केटिंग रणनीति सफल नहीं हो पाई।”

राहुल के पिता ने उन्हें, मार्केटिंग तकनीक में सुधार करने का सुझाव दिया और इस तरह राहुल ने वॉटर फिल्टर बेचने के बिज़नेस में प्रवेश किया, लेकिन अभी तो यह महज़ आगाज़ भर था, इसका अंजाम तो कुछ और ही होना था।

सीखा वॉटर फिल्टर बनाने का काम

Villagers using Aquaplus purifier through hand pump

सन् 1994-95 में, उन्होंने कंपनी की स्थापना की और फिर खुद भी फिल्टर बनाना सीखने लगे। वह बताते हैं, “मैं घरेलू वॉटर फिल्टर की मार्केटिंग कर रहा था। मैंने अपने इस बिजनेस को आगे बढ़ाने का फैसला किया। हालांकि बहुत सी कंपनियां इस पर काम कर रही थीं। पानी के फिल्टर में इस्तेमाल होने वाली मेम्ब्रेन की अवधारणा भी आम होती जा रही थी। मैं समझ गया था कि अगर मुझे इस मुकाबले में बने रहना है तो फिर कुछ अलग प्रॉडक्ट लेकर आना होगा। तब मैंने मोबाइल वॉटर फिल्टर बनाने का फैसला किया।”

राहुल कहते हैं “वॉटर फिल्टर में इस्तेमाल की जाने वाली मेम्ब्रेन, पतली कागज़ की एक शीट होती है, जो चार चरणों- माइक्रोफिल्ट्रेशन, अल्ट्रा-फिल्ट्रेशन, नैनोफिल्ट्रेशन और रिवर्स ऑस्मोसिस में पानी को साफ करती है। यह प्रक्रिया पानी में मौजूद सभी तरह के बैक्टीरिया, वायरस, कीटाणुओं, लवणता, खनिज और पानी में जितनी भी अशुद्धियां हैं, उन्हें 99 प्रतिशत तक साफ कर देती है।”

इससे पहले मेम्ब्रेन को चीन से आयात किया जाता था, लेकिन कुछ सालों बाद राहुल ने इसे खुद से बनाना सीख लिया। उन्होंने ‘द काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR)’ के एक वैज्ञानिक के साथ मिलकर एक मशीन भी बनाई। उनका यह प्रोडक्ट अब पूरी तरह स्वदेशी था।

जब पहली बार राहत कार्यों में इस्तेमाल हुई नई तकनीक

राहुल द्वारा बनाए गए वॉटर फिल्टर को इस्तेमाल करने का पहला अवसर साल 2005 में जम्मू कश्मीर में आए भूकंप के दौरान आया। रक्षा अधिकारियों की सहायता के लिए राहुल और उनकी टीम वहां पहुंची थी। वह कहते हैं, “पोर्टेबल वॉटर फिल्टर एक नई अवधारणा थी। हमने इसे सेना को दान करने की पेशकश की। सेना ने इसे उरी और तंगधार इलाकों के राहत शिविरों में स्थापित किया था।”

पहली बार, जब उनके इस अनोखे वॉटर फिल्टर को आपदा राहत कार्यों में इस्तेमाल किया गया, तो इसने पेशेवर इंजीनियर के ग्रुप ‘रजिस्टर इंजीनियर्स फॉर डिजास्टर रिलीफ (REDR )’ का ध्यान भी अपनी ओर खींचा। राहुल बताते हैं, “उन्होंने आपदा के लिए जरूरी चीजों की लिस्ट में फिल्टर को भी जगह दी थी। बाद में वॉटर सेनिटेशन हाइजीन (WASH) के लिए काम करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय संगठन OXFAM के कुछ विशेषज्ञों ने भी हमसे संपर्क किया। उन्होंने हमसे एक ऐसा फिल्टर बनाने के लिए कहा, जो एक घंटे में चार हजार लीटर पानी को शुद्ध कर सके।”

राहुल बताते हैं, “हमारा मोबाइल वॉटर फिल्टर इतना उपयोगी था कि उसे बाढ़ प्रभावित बिहार के दूर-दराज इलाकों में भी इस्तेमाल किया गया। फिल्टर से प्रभावित होकर OXFAM ने ऑर्डर देना शुरू कर दिया और हमने इसे यूके को निर्यात किया था।” राहुल ने बताया कि कंपनी ‘स्फीयर हैंडबुक’ के हिसाब से वॉटर फिल्टर को संशोधित करने के लिए कंपनी ने विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम किया था। हालांकि फिल्टर की पोर्टेबिलिटी को अपग्रेड करने और उसमें सुधार करने के उनके प्रयास कभी नहीं रुके।

बिजली के बिना चलने वाला वॉटर फिल्टर 

Aquaplus water purifier installed in a school.

राहुल ने बताया, “सालों तक नई खोज और तकनीक के इस्तेमाल के बाद, हम एक किफायती, पोर्टेबल, कम रख-रखाव वाले बेहतरीन वॉटर फिल्टर बनाने में कामयाब रहे। यह फिल्टर देश के दूर-दराज के इलाकों में आसानी से पहुंचाया जा सकता है। यह बिना बिजली के भी पानी को साफ कर सकता है। फिल्टर में 0.01 माइक्रोन की झिल्ली होती है, जो संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर गुरुत्वाकर्षण, हैंड पंप या ईंधन से चलने वाली मोटर का उपयोग करके पानी को साफ करती है।

उन्होंने बताया, “अलग-अलग शुद्धिकरण क्षमता वाले ऐसे वॉटर फिल्टर के चार मॉडल हैं। AP700CL मॉडल को उत्तराखंड में आई बाढ़ के समय तैयार किया गया था। इसे पहाड़ी इलाकों में ले जाना आसान था। यह कई राष्ट्रीय आपदाओं में गेम चेंजर साबित हुआ है। इसकी क्षमता दस घंटे में सात हजार लीटर पानी को शुद्ध करने की है। उत्तराखंड, जम्मू, केरल, असम और चेन्नई में आई बाढ़ के बाद इस फिल्टर को 1500 जगहों पर इंस्टॉल किया गया था।” 

UNICEF में आपातकालीन विशेषज्ञ सरबजीत सिंह सबोता बताते हैं, “लोगों तक साफ पानी पहुंचाने के लिए वॉटर फिल्टर जरूरी है। इसके कम वजन के कारण इन्हें ले जाने में भी आसानी रहती है। इमरजेंसी के दौरान ये काफी काम आते हैं। आपातकालीन स्थिति में जहां बिजली नहीं है, वहां इसे हैंडपंप से चलाया जा सकता है।” यूनीसेफ ने केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में बाढ़ व साइक्लोन के समय लगभग 200 वॉटर फिल्टर्स का इस्तेमाल किया था।

पारंपरिक वाटर फिल्टर से सस्त और किफायती

इस वॉटर फिल्टर की एक और खासियत है और वह है इसकी लागत, जो बाकी की तुलना में काफी कम है। राहुल कहते हैं, “पारंपरिक फिल्टर्स पर होनेवाले खर्च की तुलना में इनोवेटिव फिल्टर्स का खर्च एक तिहाई कम है। कंपनी अपनी तकनीक का इस्तेमाल कर, इन्हें काफी कम लागत में तैयार करती है। हम ज्यादा प्रॉफिट नहीं कमाना चाहते। हमारा मकसद जरूरतमंदों की मदद करना है।”

नेपाल, श्रीलंका, मंगोलिया, लागोस, फिजी आइलैंड, बांग्लादेश, न्यूजीलैंड, जिंबाब्वे और अन्य कई देशों में यह वॉटर फिल्टर काफी उपयोगी साबित हुआ है। इसने इन देशों में प्राकृतिक आपदा के दौरान लाखों लोगों को स्वच्छ पानी मुहैया कराने में मदद की है।

अपनी चुनौतियों को साझा करते हुए राहुल कहते हैं, “ख़राब सड़कों वाले दूर-दराज़ के इलाकों तक पहुंचना, जरूरतों को समझने और संकट की तीव्रता का अनुमान लगाना हमेशा एक चुनौती रहा है। इसके अलावा, संगठन और स्थानीय लोगों के साथ सहयोग करना और जल्द से जल्द उन तक सहायता पहुंचाना भी आसान नहीं है।”

दुनियाभर में बनानी है पहचान

राहुल बताते हैं, “मुझे इस बिजनेस का कोई अनुभव नहीं था, मेरे लिए सबकुछ नया था। बैंक हमें लोन देने के लिए पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे। मेरा बिज़नेस कोई स्टार्टअप या ऐप नहीं था, जो पूंजीपतियों को अपनी तरफ आकर्षित कर सके। यह अपने-आप में एक बड़ी समस्या थी।”

उनके अनुसार, वॉटर फिल्टर को आपदा प्रोटोकॉल का हिस्सा बना देना चाहिए। वह कहते हैं, “देश में कई जगहों पर हर साल बाढ़ आती है। नुकसान होने का इंतजार करने की बजाय, अगर पहले से तैयारी कर ली जाए, तो संकट से समय पर निपटने में थोड़ी सी मदद मिल जाएगी।”

फिलहाल राहुल की नज़र दुनिया के बाजार पर है। वह चाहते हैं कि भारतीय उत्पाद दुनिया के अधिकांश आपदा राहत कार्यों तक पहुंचें। राहुल पाठक से संपर्क करने या कंपनी के बारे में और अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

मूल लेखः हिमांशु नित्नावरे

संपादनः अर्चना दुबे

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