जिला परिषद् के एक सामान्य स्कूल को एक नौजवान शिक्षक ने अपनी मेहनत से डिजिटल स्कूल में परिवर्तित किया है। इस स्कूल से प्रेरित होकर महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के ५०० स्कूलो को डिजिटल बनाने का फैसला किया है।
महाराष्ट्र के पाश्तेपाडा गाँव में २७ वर्षीय प्राथमिक शिक्षक अपने नये और अनोखे तकनीक से बच्चो को पढ़ा रहे है। उन्होंने जिला परिषद् के सामान्य स्कूल को स्मार्ट स्कूल में परिवर्तित किया है। इस डिजिटल स्कूल में बच्चे किताबे, टेबलेट्स और कम्पुटर पर पढ़ते है। स्कूल में ज्यादातर बच्चे किसान और मजदूर के है।
संदीप गुंड नामक शिक्षक अपने अभिनव कल्पना से बच्चो को पढ़ा रहा है।‘गुंड मॉडल’ से प्रेरित होकर ठाणे जिले के ४० स्कूलो में सरकार ने शिक्षा प्रदान करने की ठान ली है।

जब संदीप ने पाश्तेपाडा गाँव में प्राथमिक शिक्षक की नौकरी शुरू की, तब स्कूल की दशा अच्छी नहीं थी।
संदीप कहते है, “ यहाँ स्थिति बहुत दयनीय थी। बच्चे पढने के लिये आते नहीं थे। कभी कभी मुझे लगता था कि मैं सब छोड़-छाड़ कर अपने घर वापस चला जाऊ।“
तब संदीप ने निश्चय किया कि वो इस स्कूल को बदल देंगे जिससे बच्चे ख़ुशी ख़ुशी पड़ना चाहेंगे। संदीप टेक्नोलॉजी से ज्यादा वाकिफ नहीं थे पर गाँव के एक साइबर कैफ़े में जब वो जाने लगे तब उन्हें सोलर पैनल, प्रोजेक्टर्स और टेबलेट्स के बारे में जानकारी मिली।
संदीप ने पुरे एक साल में अपनी मेहनत और लगन से ‘गुंड मॉडल’ विकसित किया है।

गुंड मॉडल से स्कूल टेक्नोलॉजी से परिपूर्ण हुआ है। अब बच्चो को स्कूल बैग्स और किताबो का बोझ नहीं उठाना पड़ता है। बच्चे पढाई के लिये सौर उर्जा से चलनेवाले टेबलेट्स और डिजिटल पेन का इस्तेमाल करते है।
संदीप का कहना है “मैंने हमेशा देखा कि बच्चे स्कूल छोड़कर गाँव के एक घर पर टेलीविज़न देखने जाते थे। गाँव में सिर्फ उस घर में ही टेलीविज़न था। तब मैंने निश्चय किया कि मैं स्कूल को ही डिजिटल करने का प्रयास करूँगा। इसके लिये मैंने स्कूल को एक कम्पूटर दिया जिसपर मैं बच्चो को साइंस, एनीमेशन और अन्य नये टेक्नोलॉजी पढ़ाने लगा।”
उसके बाद कुछ ही दिनों में संदीप और अन्य शिक्षको ने ५-५ हजार रुपये इकट्ठा करके टेबलेट कम्पुटर और प्रोजेक्टर ख़रीदा। इसके लिये गाँववालो ने भी काफी मदत की।
संदीप बताते है, “स्टेट कौंसिल ऑफ़ एजुकेशनल रिसर्च और ट्रेनिंग ने हमारे डिजिटल लर्निंग प्रोजेक्ट को सम्मानित किया है। पुरस्कार में मिली नगद राशी से हमने टचस्क्रीन ख़रीदा है। विद्यार्थी अब पढने में दिलचस्पी दिखा रहे है।
किताबो के विषय पीडीऍफ़ में बनाये जाते है और टचस्क्रीन पर पढाये जाते है।
अब बच्चे खुद टेबलेट्स इस्तेमाल करते है। टेबलेट्स को प्रोजेक्टर से जोड़ा जाता है जिससे शिक्षक बच्चो को आसानी से पढ़ाते है।
बच्चे अब उनका गृहपाठ फ़्लैश ट्रान्सफर, वायरलेस डाटा ट्रान्सफर की मदत से शिक्षक और अपने सहपाठियों से शेयर करते है।

विद्यार्थी अब टेबलेट्स पर अपनी पढाई करते है। वो उसपर गेम्स भी खेलते है। इस नये तकनीक से बच्चो में शिक्षा के प्रति दिलचस्पी बढ़ रही है। बच्चे पहले देखते थे कि उनके भाई-बहन स्कूल में जाते नहीं थे क्योकि पढाई में दिलचस्पी नहीं होती थी। पर बच्चे डिजिटल स्कूल में पढाई के लिये जाने लगे। बच्चे अब अपने डिवाइस को घर ले जाकर टेलीविज़न से जोड़कर अपने माता-पिता को भी अपने पढाई की नयी तकनीक दिखाने लगे।
संदीप कहते है, “हम विद्यार्थीयो को गृहपाठ नोटबुक्स पर ही करने के लिये कहते है ताकि उन्हें लिखने भी आदत हो।”
इस इलाके में अब स्कूल छोड़ने का दर कम हो रहा है।
संदीप के इस अनोखे मॉडल की वजह से लोग अब प्राइवेट स्कूल की जगह जिला परिषद् के स्कूल में अपने बच्चो को पढ़ने के लिये भेज रहे है। अब इस स्कूल के किसी भी कक्षा में सीटे खाली नहीं होती है।
‘गुंड मॉडल’ से आसपास के गाँव के लोग भी प्रभावित हुए है। उन्होंने कुछ पैसे इकट्ठा किये और संदीप से अनुरोध किया कि ऐसा मॉडल उनके गाँव के स्कूल में तयार करे।
महाराष्ट्र राज्य के १९ जिल्हे के स्कूलो ने इस डिजिटल स्कूल के मॉडल में दिलचस्पी दिखाई है।
मूल लेख श्रेया पारीक द्वारा लिखित।
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