70 साल की कंचन परुलेकर, महाराष्ट्र के कोल्हापुर के एक संगठन, स्वयंसिद्ध का संचालन करती हैं और इसके ज़रिए उन्होंने करीब 29 सालों में 20 हज़ार से भी अधिक महिलाओं को उद्यमी बनाने का काम किया है।
दिल्ली के नज़फ़गढ़ में रहने वाली कृष्णा यादव, 'श्री कृष्ण पिकल्स' नाम से अपनी कंपनी चला रही हैं और उनके बनाये अचार, कैंडी, मुरब्बा, जूस की मांग आज दिल्ली के आसपास के सभी राज्यों में है। आज दिल्ली में उनकी कई फैक्ट्रीज़ हैं और उन्हें 'नारी शक्ति अवॉर्ड' से भी सम्मानित किया जा चुका है।
गोरखपुर की संगीता पांडेय, जिन्हें कभी लोगों ने हर वह बात कही, जिससे उनका हौसला टूट जाए, लेकिन फिर भी वह हालातों और समाज दोनों से लड़ीं, तमाम मुश्किलों के बावजूद अड़ी रहीं और मिठाई के डिब्बे बनाकर करोड़ों का बिज़नेस खड़ा कर दिया।
आज उत्तराखंड में खेती-किसानी के क्षेत्र में दिव्या एक जाना-माना नाम हैं। लोग उन्हें ‘मशरूम गर्ल’ के नाम से जानते हैं। साल 2016 में उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
महाराष्ट्र के उस्मानाबाद की रहनेवाली कमल कुंभार को गरीबी के कारण न तो बचपन में शिक्षा मिली और न ही शादी के बाद प्यार। लेकिन आज वह छह अलग-अलग बिज़नेस की मालकिन हैं और एक रोल मॉडल भी।
गरीबी ने मणिपुर के काकचिंग की मुक्तामणि देवी को अपनी बेटी के लिए जूते सिलने पर मजबूर कर दिया था और अब वह 'मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री' की मालिक हैं और उनके जूते विदेशों तक में जाते हैं।