मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है। यशवंत की याद आती है। मैं समझता नहीं हूं, ऐसा नहीं है रमा, मैं समझता हूं कि तुम इस आग में जल रही हो। पत्ते टूटकर गिर रहे हैं और जान सूखती जाए ऐसी ही तू होने लगी है। पर रमा, मैं क्या करूं? एक तरफ से पीठ पीछे पड़ी दरिद्रता और दूसरी तरफ मेरी जिद और लिया हुआ दृढ संकल्प।