“जब मैं पुरुलिया के अस्पतालों में दर-दर की ठोकरें खा रहा था तो एक समय तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि अब मैं अपनी पत्नी को नहीं बचा पाउंगा। वह लगातार दर्द से चीख रही थी और अस्पताल के लोग मुझे दूसरी जगह जाने की सलाह दे रहे थे। अस्पताल की बात सुनकर मुझे लगा कि जैसे मैं आत्महत्या कर लूं, लेकिन भगवान ने मुझे हौसला दिया और रास्ता भी दिखाया।"