Site icon The Better India – Hindi

ये हंसी वादियां! मुक्तेश्वर के जंगल में किसान ने पत्थरों से बनाया लॉज

eco-friendly lodge
YouTube player

अक्सर लोग शहरी भागदौड़ से परेशान होकर पहाड़ों और जंगलों में सुकून की तलाश में जाते हैं। लेकिन समय के साथ हिल स्टेशन्स की खूबसूरती में भी भीड़-भाड़, गाड़ियों का शोर और सीमेंट के जंगल दिखने लगे हैं। ऐसे में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो प्राकृतिक जगहों को प्रकृति के अनुसार ही बना रहने देना चाहते हैं और इसके लिए वे कोशिश भी कर रहे हैं। उनमें से ही एक हैं उत्तराखंड के रहनेवाले मनोज मेहरा।

मनोज एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं और मुक्तेश्वर में उनके बहुत बड़े फलों के बागान हैं। खेती उनके परिवार को विरासत में मिली है और उनके पिता आज भी खेती से जुड़े हैं। फलों के अपने बड़े बागानों के कारण वह आस-पास में काफी मशहूर भी हैं।

लेकिन आज से तक़रीबन 15 साल पहले जब मनोज ने अपने पिता को फार्म पर एक छोटा सा लॉज बनाने का विचार बताया, तब उनके पिता को मनोज का यह विचार बिल्कुल पसंद नहीं आया था। लेकिन मनोज को विश्वास था कि कुछ प्रकृति प्रेमी लोग ज़रूर इसे पसंद करेंगे और उन्हीं के लिए उन्होंने पारम्परिक उत्तराखंडी आर्किटेक्चर को ध्यान में रखकर कुछ कमरे बनाना शुरू किया।  

Manoj Mehra

शिप की नौकरी छोड़कर गांव में शुरू किया एग्रो-टूरिज्म 

मनोज, मुक्तेश्वर में ही पले-बढ़े हैं और उन्हें पहाड़ों और वादियों से काफी लगाव है। हालांकि, वह पढ़ाई के बाद कुछ समय के लिए शिप पर नौकरी करने चले गए थे।  लेकिन उन्हें पता था कि वह ज्यादा दिनों तक अपने शहर से दूर नहीं रह सकते। इसलिए उन्होंने कुछ ही सालों में वापस आने का मन बना लिया।

यहां आकर वह हिमालय में ट्रेकिंग और पिता के साथ काम कर रहे थे। लेकिन वह इसके साथ-साथ कुछ अलग करना चाहते थे। 

तभी उनके दिमाग में एक एग्रो टूरिज्म विकसित करने का ख्याल आया। लेकिन मनोज को पता था कि वह सीमेंट से बस एक होटल नहीं बनाना चाहते, जिससे एक बिज़नेस शुरू किया जा सके। वह कहते हैं, “जिस समय मैंने लॉज बनाने का फैसला किया, उस समय इस गांव में कोई होटल था ही नहीं। यहां बस खूबसूरत वादियां थीं। मैं चाहता था लोग इन वादियों में रहकर प्रकृति को पास से महसूस करें। इसके साथ-साथ मैं चाहता था कि लोग उत्तराखंड के पारम्परिक घरों और संस्कृति के बीच रहने का भी अनुभव ले सकें। इसलिए मैंने स्थानीय कुमाऊनी कारीगरों की मदद से काम शुरू किया।”

 

Oak Chalet

लोगों ने कहा जंगल में कौन रहने आएगा?

उन्होंने ‘ओक शारलेट’ नाम के अपने लॉज में कुल पांच कमरे स्थानीय पत्थर और लकड़ियों से बनाए हैं, जिनकी खासियत है कि ये अंदर के तापमान को अच्छे से नियंत्रित कर सकते हैं। पत्थरों को जोड़कर ही इस घर की दीवारें बनी हैं। वहीं छत और फर्श को लकड़ी का बनाया गया है। यहां किसी तरह के सीमेंट के प्लास्टर का उपयोग नहीं किया गया है, जो इस जगह को प्राकृतिक रखने के साथ ही इसकी खूबसूरती को भी बढ़ाता है। 

हर एक कमरे को शीशे की मदद से इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि आस-पास की हरियाली दिखती रहे। वहीं एक कमरा तो पूरी तरह से शीशे से ही बना है, जिससे लगता है कि आप जंगल में ही रह रहे हैं। पहले यहां टीवी या वाई-फाई जैसी सुविधाएं नहीं थी। लेकिन हाल में यहां वाई-फाई की सुविधा मौजूद है, ताकि लोग यहां रहकर काम कर सकें।

यहां आने के लिए लोगों को मेन रोड से 20 किमी की वॉक करके आना होता है, जिसमें वे उनके सुन्दर फलों के बगानों को भी देख सकते हैं। मनोज चाहते थे कि यह जगह गाड़ियों के शोर से दूर रहे। लेकिन सालों पहले जब मनोज इस तरह की प्लानिंग कर रहे थे, तब लोगों ने उनका खूब मज़ाक भी उड़ाया।  

मनोज ने बताया, “लोग कहते थे कि इतना खर्चा करके होटल बना रहे हो, इसमें कोई रहने नहीं आएगा।  इतनी दूर चलकर जंगल में कौन आता है? मुझे कई लोगों ने मेन रोड पर होटल बनाने की सलाह भी दी।  लेकिन मेरा मानना था कि इसका फार्म के अंदर होना ही इसकी खासियत होगी, जहां सिर्फ वे ही लोग आ पाएंगे, जो इस खूबसूरती का अनुभव करना चाहते होंगे।”

लोगों को मिलता है उत्तराखंड के पारम्परिक संस्कृति का अनुभव 

आज यहां साल भर यात्री आते हैं। मनोज पूरी कोशिश करते हैं कि उन्हें अपने खेतों में उगी स्थानीय मौसमी दाल, फल और सब्जियों का स्वाद दे सकें।  इसके साथ-साथ उन्होंने यहां सोलर एनर्जी का भी उपयोग किया है, जो सर्दियों को छोड़कर (क्योंकि धूप नहीं होती) बाकी समय गर्म पानी के लिए इस्तेमाल होता है। 

मनोज चाहते थे कि उनके काम से गांववालों को भी रोज़गार का ज़रिया मिले। यही कारण है कि यहां काम करने वाले सभी लोग इसी गांव के रहनेवाले हैं। यहां आए मेहमानों को खेतों में समय बिताना, मौसमी फल जैसे आलूबुखारा, एप्रीकॉट, सेब आदि को सीधा पेड़ से तोड़कर खाने का बेहतरीन अनुभव काफी पसंद आता है। 

मनोज अपने ट्रेकिंग के शौक के कारण अक्सर हिमायल की पर्वतमालाओं में ट्रेकिंग के लिए जाते रहते हैं। कई लोग देश-विदेश से सिर्फ मनोज के साथ ग्लेशियर की ट्रेकिंग का आनंद लेने के लिए यहां आते हैं। 

आप  इस बेहतरीन पर्यावरण के अनुकूल लॉज के बारे ज्यादा जानने के लिए उन्हें फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं। 

संपादनः अर्चना दुबे

यह भी पढ़ेंः मुंबई से लौटे नासिक, पारंपरिक तरीके से बनाया अपने सपनों का इको-फ्रेंडली फार्म स्टे

Exit mobile version