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बेंगलुरु में बनाया मिट्टी का घर, नहीं लिया बिजली कनेक्शन, जीते हैं गाँव जैसा जीवन

Eco friendly Home in Bengaluru

“हम इंसान प्रकृति से ऑक्सीजन लेते हैं और बदले में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। हम पहले ही अपनी जिंदगी के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, ऐसे में हमारी ज़िम्मेदारी है कि कम से कम हमारी जीवनशैली जितना हो सके पर्यावरण के अनुकूल रहे,” यह कहना है बेंगलुरु में रहने वाले चोक्कलिंगम का। 

शहरों में रहते हुए पर्यावरण के अनुकूल और प्रकृति के करीब रह पाना मुश्किल होता है। क्योंकि शहर में आप सुविधाओं से घिरे होते हैं। जैसे ही बात पर्यावरण के अनुकूल जीने की आती है तो इसका मतलब है कि आपको अपनी जीवनशैली में बहुत से बदलाव करने होंगे। बहुत ही कम लोग इन बदलाव को अपना पाते हैं। चोक्कलिंगम भी उन्हीं में से एक हैं।

हमेशा से ही अपनी लाइफस्टाइल को लेकर सजग रहे चोक्कलिंगम और उनका परिवार लगभग 14 सालों से अपनी जीवनशैली को प्रकृति के अनुकूल ढालने के लिए प्रयासरत हैं। वे एक इको फ्रेंडली घर में रहते हैं और बिजली के लिए सौर ऊर्जा तो साल में लगभग छह महीने बारिश का पानी इस्तेमाल करते हैं। 

Family

चोक्कलिंगम ने बताया, “लगभग 14 साल पहले हमें अपना घर बनाने का मौका मिला और हमने तय किया कि हम पारंपरिक और प्रकृति के अनुकूल घर बनाएंगे। जिसमें ज्यादा से ज्यादा इको फ्रेंडली रॉ मटीरियल का इस्तेमाल हो और दीवार, छत व फर्श बनाने की तकनीकें भी सस्टेनेबल हों ताकि जितना हो सके हम प्रकृति के दिशा में काम करें। लगभग 3500 वर्गफीट एरिया में बना हमारा यह घर इको फ्रेंडली है। साथ ही, हमारा रहन-सहन भी सस्टेनेबल है ताकि जितना हो सके पर्यावरण पर कम से कम प्रभाव पड़े।”

मिट्टी से बनाया घर 

उनके घर का निर्माण आर्किटेक्ट शेरिन बालचंद्रन के मार्गदर्शन में हुआ है। इस घर में जब आप प्रवेश करेंगे तो मुख्य दरवाजा पत्थरों से बना दिखेगा। चोक्कलिंगम कहते हैं कि इस दरवाजे को ‘ड्राई मेसनरी तकनीक‘ से बनाया गया है। इसमें प्राकृतिक पत्थरों को बिना किसी मोर्टार के लगाया जाता है। यह एक पारम्परिक तकनीक है और अब बहुत ही कम देखने को मिलती है। इस दरवाजे के दोनों तरफ बगीचा है, जिससे होते हुए आप घर के अंदर जाते हैं।

उनके घर में किसी भी तरह की इलेक्ट्रिक घंटी नहीं है। बल्कि सामान्य घंटियों को ही उन्होंने इस तरह से लगाया है कि आप बाहर वाली घंटी बजाते हैं तो अंदर वाली घंटियां भी बजती हैं और अंदर पता चल जाता है कि कोई आया है। उनके घर के बीचों-बीच आंगन है और इसके चारों और कमरे, रसोई, बाथरूम आदि बनाए गए हैं।

Entrance of Their House

घर के निर्माण में उनकी अपनी जमीन से निकली मिट्टी का सबसे ज्यादा प्रयोग हुआ है। “नींव बनाने के दौरान जो भी मिट्टी निकली, उससे हमने कंप्रेस्ड अर्थ ब्लॉक बनाये मतलब कि मिट्टी के ब्लॉक और इनसे ही घर की सभी दीवारें बनी हैं। घर के ग्राउंड फ्लोर पर लिविंग रूम, डाइनिंग रूम, पूजा घर, रसोई और दो बैडरूम हैं, जिनमें अटैच बाथरूम हैं। वहीं, पहले फ्लोर पर दो बैडरूम हैं और इनके बाहर बालकनी भी है,” उन्होंने बताया। 

रसोई में उन्होंने पारंपरिक चिमनी लगवाई हुई है, जो बिना बिजली के काम करती है। उन्होंने घर की दीवारों पर किसी भी तरह का कोई प्लास्टर या पेंट नहीं कराया है। घर के फर्श के लिए मिट्टी की टाइल, आथनगुड़ी टाइल और ऑक्साइड फ्लोरिंग का प्रयोग हुआ है। उन्होंने बताया कि ये सभी रॉ मटीरियल इको फ्रेंडली हैं। उन्होंने छत के निर्माण में भी कई प्रयोग किए हैं। जैसे कहीं-कहीं पर फिलर स्लैब तकनीक का प्रयोग किया गया है और फिलर के लिए मिट्टी के कटोरों का इस्तेमाल हुआ है। 

Sustainable Architecture

वहीं, पूजा घर का गुंबद और अन्य कमरों की छत सामान्य ईंट से बनाई गयी हैं और इसके ऊपर मैंगलोर टाइल्स बिछाई गयी हैं। उन्होंने अपने घर में पुराने खिड़की-दरवाजों को इस्तेमाल किया है। लकड़ी के अन्य कामों के लिए भी पुरानी और रीसाइकल्ड लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है। 

“हमने ज्यादा से ज्यादा रीसाइकल्ड मटीरियल का इस्तेमाल किया है ताकि कार्बन फुटप्रिंट कम रहे। पहले फ्लोर पर कमरे के बाहर बालकनी में जाने के लिए हमने पुरानी मारुति कार का दरवाजा इस्तेमाल किया है,” उन्होंने बताया। 

सौर ऊर्जा पर चलता है घर 

उन्होंने बताया कि घर के निर्माण के समय ही यह तय कर लिया गया था कि बिजली के लिए ग्रिड पर निर्भर नहीं रहना है। इसलिए उन्होंने उसी समय अपने घर की छत पर सौर सिस्टम सेटअप करा लिया था। अब से 13-14 साल पहले तक सौर ऊर्जा ज्यादा चलन में नहीं थी। इसलिए सेटअप का खर्च ज्यादा पड़ा था। फिर भी चोक्कलिंगम ने तय किया कि वह ऑफ-ग्रिड ही रहेंगे क्योंकि कहीं न कहीं वह जानते थे कि भविष्य में स्वच्छ ऊर्जा की मांग होगी। 

2.2 किलोवाट के सोलर सिस्टम से उनके घर में लाइट, पंखा, फ्रिज, वॉशिंग मशीन, वाटर पंप जैसी चीजें चलती हैं। उन्होंने घर की छत में जगह-जगह स्काईलाइट लगवाई हैं ताकि दिन के समय घर में ट्यूबलाइट या बल्ब जलाने की जरूरत न पड़े। उन्होंने पहले फ्लोर की छत में एक आउटलेट भी बनवाया है जो वेंटिलेशन में मददगार है। 

Solar Power

“गर्मियों के समय हम इसे खोल देते हैं और सर्दियों में बंद कर लेते हैं। इससे मौसम कैसा भी हो, हमारे घर का तापमान संतुलित रहता है। जिस कारण हमें एसी या कूलर की जरूरत नहीं पड़ती है। सामान्य पंखों से ही हमारा काम चल जाता है,” उन्होंने बताया।  

घर में है अपना कुंआ और सहेजते हैं बारिश का पानी भी

चोक्कलिंगम के घर की छत इस तरह से बनी है कि बारिश के समय छत पर गिरने वाला सभी पानी आंगन में आए। आंगन में आने वाला बारिश का पानी एक पाइप की मदद से अंडरग्राउंड बने 20 हजार लीटर के टैंक में जाता है। टैंक के भरने के बाद, बाकी बारिश का पानी उनके घर के बगीचे में बने कुंए में चला जाता है। इससे वह भूजल स्तर बढ़ाने में भी मदद कर रहे हैं। “हम लगभग छह महीनों तक बारिश का यह पानी अलग-अलग घरेलू कामों के लिए इस्तेमाल कर पाते हैं। टैंक से पानी लेने के लिए हमने पंप लगाया हुआ है। जब यह पानी खत्म हो जाता है तब ही हम नगर निगम का पानी इस्तेमाल करते हैं।”

बारिश के पानी को सहेजने के साथ-साथ वह यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनके घर से निकलने वाला गंदा पानी जैसे रसोई या बाथरूम का पानी बेकार न जाए। इसके लिए उन्होंने बाथरूम और रसोई के आउटलेट पाइप से एक अलग पाइप को जोड़ा हुआ है। जिसकी मदद से यह पानी उनके बगीचे में आता है। जिस कारण, उन्हें बागवानी के लिए अलग से ताजा पानी इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है। 

Rainwater Harvesting

चोक्कलिंगम कहते हैं कि रसोई और बाथरूम के पानी को फिर से इस्तेमाल में लेना अच्छा कदम है लेकिन इसके लिए कुछ बातें हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए। 

अगर कोई ग्रेवाटर को बागवानी के लिए उपयोग कर रहा है तो ध्यान दें कि इसमें कोई रसायन न हों। इसलिए चोक्कलिंगम और उनका परिवार नहाने, बाल, कपड़े या बर्तन धोने के लिए ऑर्गेनिक साबुन-शैम्पू इस्तेमाल करते हैं। इससे पानी दूषित नहीं होता है। वहीं, टॉयलेट के पानी को भी वह बायो डाइजेस्टर से ट्रीट करने के बाद घर से बाहर भेजते हैं ताकि यह किसी नदी-नाले को दूषित न करे। 

खुद उगाते हैं फल-सब्जियां 

वह अपने घर में ही तरह-तरह की मौसमी सब्जियां उगाते हैं और कई तरह के फलों के पेड़ भी लगाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि उनके घर की लगभग 75% सब्जियों की जरूरत उनके अपने बगीचे से पूरी हो जाती है। इसके अलावा, उनके पास एक छोटा-सा खेत भी है, जिसमें वह घर के लिए अनाज उगाते हैं।

Organic Gardening

खुद को और अपने परिवार को पहले से ज्यादा स्वास्थ्य बताने वाले चोक्कलिंगम कहते हैं कि उनकी कोशिश कम से कम कार्बन फुटप्रिंट छोड़ने की है। इसलिए उन्होंने न सिर्फ घर इको फ्रेंडली बनवाया बल्कि खुद भी इको फ्रेंडली तरीकों से जी रहे हैं। घर निर्माण की लागत के बारे में उन्होंने बताया, ” हमें निर्माण की लागत 1050 रुपए/फुट पड़ी थी। यह लगभग उतने में ही बना, जितने में आप सामान्य कंक्रीट घर बनवाते हैं लेकिन यह उससे कहीं ज्यादा बेहतर है और लम्बे समय तक इसमें हम आरामदायक ज़िंदगी जी सकते हैं।”

अगर आप उनके घर के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो chocku.muthiah@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

फोटो साभार: चोक्कलिंगम

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