पुणे से करीबन एक घंटे की दुरी पर पानशेत गांव में बना बैम्बू एंड ब्रिक्स रिसोर्ट को विदेश से मंगाएं बैम्बू और स्थानीय ईंटों से बड़े ही बेहतरीन तरीके से बनाया गया है।
खूबसूरत नज़ारों के बीच बनें इस रिसोर्ट के बनने की कहानी भी बेहद ही रोचक है। सालों पहले जब पुणे के राहुल कोंडेकर ने यह जमीन खरीदी थी तब उनका यहां रिसोर्ट बनाने का कोई इरादा नहीं था। लेकिन प्राकृतिक तरीके से बना उनका यह रिसोर्ट आज शहरवासियों को बेहद पसंद आने लगा हैं।
बैम्बू एंड ब्रिक्स रिसोर्ट में आम लोगों के साथ-साथ यहां बैम्बू की बेहतरीन कलाकृति देखने कई आर्किटेक्ट भी आते हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए राहुल बताते हैं, “मेरे पास रिसोर्ट और हॉस्पिटैलिटी का कोई अनुभव नहीं था, न ही मेरे पास ज्यादा बजट था। लेकिन मैं चाहता था कि एक ऐसी जगह बनाई जाएं जहां लोग को भले ज्यादा सुविधा न मिले न ही लेकिन मन को शांति जरूर मिले।”
बाली की अपनी यात्रा से मिली बैम्बू एंड ब्रिक्स रिसोर्ट बनाने की प्रेरणा
राहुल पानशेत से ही ताल्लुक रखते हैं और उनके पिता गांव में ही एक किराना दुकान चलाते हैं। राहुल ने करीबन 16 साल की उम्र से ही काम करने की शुरुआत कर दी। हाल में वह पुणे में एक मेडिकल की दुकान चला रहे हैं। उन्होंने साल 2016 में अपने गांव में जब यह जमीन का टुकड़ा ख़रीदा था तब उनका उद्देश्य यहां रिसोर्ट बनाने का बिल्कुल नहीं था।
लेकिन अपनी एक बाली ट्रिप पर उन्होंने बैम्बू का इतना बेहतरीन प्रयोग देखा कि तभी उनके दिमाग में ऐसा कुछ अपने गांव में भी करने का ख्याल आया।
वह बताते हैं, “हमारे इलाके में भी बैम्बू का इस्तेमाल काफी किया जाता है लेकिन जिस बेहतर तरीके से वहां फर्नीचर और घर की बनावट में बैम्बू का इस्तेमाल किया गया था वह कबीले तारीफ था। मुझे यकीन था यह लोगों की काफी पसंद आने वाला है।”
वापस आकर उन्होंने इस बारे में सोचना शुरू किया। चूंकि उनके गांव का इलाका भारी बारिश वाला इलाका है। इसलिए उन्हें यहां बैम्बू की देखभाल का विशेष ध्यान रखते हुए काम करना शुरू किया।
बैम्बू एंड ब्रिक्स रिसोर्ट के लिए विदेश से मगवाएं बैम्बू तो ईंट ली लोकल कारीगरों से
उन्होंने साल 2018 में स्थानीय कारीगरों के साथ काम करना शुरू किया। यहां उन्होंने 2000 स्क्वायर फ़ीट का डाइनिंग एरिया पूरी तरीके से बैम्बू से बनाया है। जिसे बारिश से बचाने के लिए उन्होंने तारपोलिन प्लास्टिक और उसके ऊपर प्राकृतिक रूप दने के लिए स्थानीय घास लगाई है।
इसके अलावा यहां छह कॉटेजेज़ को उन्होंने बैम्बू और ब्रिक से बनाया है। राहुल कहते हैं, “हमने कुछ लोकल बैम्बू भी इस्तेमाल किए है लेकिन ज्यादातर बैम्बू बाली से मंगाएं हुए हैं। लोकल बैम्बू का डायमीटर काफी कम रहता है। जबकि बाली से आएं ये बैम्बू साइज में चौड़े हैं और ये ट्रीटेड फॉर्म में आएं हैं इसलिए 25 सालों तक इसमें कोई नुकसान नहीं हो सकता।”
यहां उन्होंने एक बड़ा ब्रिक स्टूडियों भी बनाया है, जिसे उन्होंने अपने ग्राहकों की विशेष डिमांड पर तैयार किया है। राहुल बताते हैं, “कई लोगों का कहना था कि हमें शहरों में पुरे परिवार एक साथ मिलकर रहने का मौका नहीं मिलता है , इसलिए हमने यह ब्रिक स्टूडियों बनाया ताकि एक परिवार यहां साथ में मिलकर रह सके।”
बेड से लेकर छत सबकुछ बना है बैम्बू से
राहुल ने बड़े ही क्रिएटिव तरीके से यहां का सारा फर्नीचर बैम्बू से बनवाया हैं। उन्होंने हर छह कॉटेजज़ की छत को भी बैम्बू का ही रखा है। बैम्बू से इन क्रिएटिव चीजों पर काम करने के लिए उन्होंने स्थानीय कारीगरों को भी ट्रेनिंग दी थी। राहुल ने बताया कि इस तरह के बैम्बू की कलाकृतियां देखकर कई लोग उनसे पूछते हैं कि यह बैम्बू कहाँ से मंगवाएं हैं?
उनके रिसोर्ट को उन्होंने कम से कम आधुनिक साधनों के साथ बनाया है। क्योंकी वह मानते हैं कि आज हर घर में आधुनिक सुविधा की कोई कमी नहीं है लेकिन प्राकृतिक साधनों और नजारों की कमी जरूर है। जो उन्हें यहां महसूस नहीं होगी।
आज उनका रिसोर्ट यहां आएं मेहमानों को पसंद आता ही है साथ-साथ आज यहां कई आर्किटेक्ट भी आते हैं। राहुल की एक छोटी सी सोच के कारण लोगों को एक बेहतरीन जगह तो मिली ही है साथ में लोगों की बैम्बू के बेहतरीन उपयोग की झलक भी देखने को मिल रही हैं।
आप बैम्बू और ब्रिक का यह बेहतरीन नमूना देखने के लिए यहां क्लिक करें।
संपादनः अर्चना दुबे
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