एशियाई खेल 2018 के कबड्डी प्रतियोगिता में भारतीय खिलाड़ी उषा रानी ने रजत पदक जीता था। उषा कर्नाटक के दोड्डाबल्लापुर पुलिस स्टेशन में कॉन्सटेबल हैं और साथ ही भारतीय महिला कबड्डी टीम की सदस्य भी हैं।
लेकिन उषा का यहां तक का सफर बहुत आसान नहीं रहा है। उन्होंने जीवन में इस मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष किया है।
यशवंतपुर में सुबेदार पलिया की एक बस्ती में रहने वाले एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली 29 वर्षीय उषा जब भी कहीं कबड्डी होते हुए देखती तो सोचती थीं कि क्या कभी वे भी भारत के लिए खेल पाएंगी। वे हमेशा अपने पिता नरसिम्हा और मां पुट्टम्मा के साथ कबड्डी के बारे में बातें करती थीं। आजीविका के लिए उनका परिवार फूलों की एक छोटी सी स्टॉल पर निर्भर था।
उन्होंने कभी भी नहीं सोचा था कि कबड्डी में उनकी दिलचस्पी और माता स्पोर्ट्स क्लब में नियमित अभ्यास उन्हें साल 2007 में पुलिस विभाग में नौकरी दिलाएगा। फूलों से उनकी कमाई मात्र 50 रूपये प्रतिदिन थी और उनके परिवार को इसमें ही गुजारा करना पड़ता था। लेकिन उषा की नौकरी ने घर के हालात बदले। उनके अलावा परिवार में उनकी दो बहने और हैं।
कर्नाटक से एशियाई खेलों के लिए चयनित होने वाली वे एकमात्र खिलाड़ी थीं। उषा के सिल्वर मेडल जीतने पर उनके परिवार व शहर में ख़ुशी की लहर है। रविवार को केम्पेगोड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बहुत ही उत्साह के साथ उनका स्वागत किया गया।
उषा ने कहा, "मुझे ख़ुशी है मैंने देश के लिए सिल्वर मेडल जीता, पर मैं गोल्ड नहीं जीत पायी। हालांकि, हवाई अड्डे पर मेरे सहकर्मियों और भास्कर राव सर, अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक, (कर्नाटक राज्य रिजर्व पुलिस) ने जिस तरह से मेरा स्वागत किया, वह मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी।"
उनके पुलिस विभाग ने उन्हें इस उपलब्धि के लिए सब-इंस्पेक्टर की पोस्ट पर प्रोमोट किया है।
हम उषा रानी और उनके परिवार के हौंसलें की सराहना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि बहुत से लोग उनसे प्रेरणा लेंगें।
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