बचपन में सचिन के साथ अचरेकर (बाएं)
भारतीय क्रिकेट कोच, रमाकांत आचरेकर को ज़्यादातर मुंबई के शिवाजी पार्क में युवा खिलाड़ियों को क्रिकेट सिखाने के लिए जाना जाता रहा। मुंबई क्रिकेट टीम के लिए चयनकर्ता रहे, आचरेकर को साल 2010 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
आचरेकर को एक क्रिकेट खिलाड़ी के तौर पर कोई बड़ी कामयाबी कभी नहीं मिली, लेकिन एक क्रिकेट कोच के रूप में उन्होंने देश को सचिन तेंदुलकर, अनिल कुम्बले जैसे बेहतरीन खिलाड़ी दिए। ये आचरेकर ही थे, जिन्होंने क्रिकेट के लिए सचिन की प्रतिभा को पहचाना और उसे इतना निखारा कि आज पूरा देश उन्हें 'मास्टर ब्लास्टर' के नाम से जानता है।
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अपने क्रिकेट करियर के दौरान अनगिनत रिकॉर्ड बनाने वाले, तेंदुलकर ने हमेशा ही अपनी कामयाबी का सबसे ज़्यादा श्रेय अपने गुरू, आचरेकर को दिया। सचिन को बचपन में क्रिकेट में सही दिशा दिखाने वाले अचरेकर ही थे।
एक इंटरव्यू के दौरान सचिन ने अपने बचपन की एक घटना को याद करते हुए बताया, "मैं अक्सर स्कूल के बाद भागकर लंच के लिए घर जाता था और तब तक आचरेकर सर मेरे लिए मैच तय करते थे। वे सामने वाली टीम से बात करते और सबको कहते कि मैं नंबर चार पर खेलूँगा।"
"एक दिन मैं अपने दोस्त के साथ अपना प्रैक्टिस मैच छोड़कर, हमारे स्कूल की सीनियर टीम का मैच देखने वानखेड़े स्टेडियम चला गया। वहां आचरेकर सर हमें मिल गये। उन्हें पता था कि मैं मैच छोड़कर आया हूँ, पर फिर भी उन्होंने मुझसे पूछा, 'मैच कैसा रहा?' मैंने उन्हें बताया कि हमारी टीम के लिए चीयर करने के लिए मैं मैच छोड़ कर आया हूँ। इतना सुनते ही उन्होंने मुझे एक चांटा मारा," सचिन ने आगे कहा।
सचिन को थप्पड़ मारकर अचरेकर ने उनसे कहा, "तुम यहाँ दूसरों के लिए चीयर करने के लिए नहीं हो। खुद इस तरह खेलो कि दुसरे तुम्हारे लिए चीयर करें।"
आचरेकर के उस एक थप्पड़ ने सचिन की ज़िंदगी बदल दी। उस दिन के बाद उन्होंने हर एक मैच को बहुत गंभीरता और ज़िम्मेदारी के साथ खेला। सचिन के अलावा और भी कई क्रिकेटर हैं, जो अपने करियर का श्रेय अचरेकर को देते हैं।
भारत के पूर्व खिलाड़ी चंद्रकांत पंडित ने एक बार बताया था, कि उनके क्रिकेट करियर के लिए उनके पिता को आचरेकर ने ही मनाया था। पंडित के पिता चाहते थे कि पंडित पढ़-लिखकर, कोई अच्छी नौकरी कर, पैसे कमाए। उनके पिता की बात सुन, आचरेकर ने उन्हें 1,000 रूपये देते हुए कहा था, "कल से तुम्हारा बेटा मेरा है और इसके लिए सैलरी मैं तुम्हे दूँगा"।
ऐसे ही न जाने कितने बेहतरीन खिलाड़ियों का जीवन आचरेकर ने संवारा और उनके इन्हीं छात्रों ने भारतीय क्रिकेट को विश्व-स्तर पर ला खड़ा किया। इनकी ज़िन्दगी के इन्हीं खट्टे-मीठे और प्रेरक घटनाओं को पत्रकार कुणाल पुरंदरे ने 'रमाकांत आचरेकर : मास्टर ब्लास्टर्स मास्टर' नामक किताब का रूप दिया।
भारतीय क्रिकेट टीम के द्रोणाचार्य कहे जाने वाले आचरेकर ने 2 जनवरी 2019 को आख़िरी सांस ली।
उनके निधन पर उनके सबसे काबिल छात्र, सचिन ने भावुक होकर लिखा, कि उन्होंने क्रिकेट की एबीसीडी आचरेकर से ही सीखी थीं। उनके करियर में आचरेकर के योगदान को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है और आज जिस मुकाम पर सचिन खड़े हैं, उसकी नींव आचरेकर ने ही बनाई है।
बेशक आज रमाकांत आचरेकर हमारे साथ नहीं हैं, पर उनके शिष्य आज भी देश का नाम रौशन कर रहे हैं! भारत को विश्व स्तरीय खिलाड़ी देने वाले इस महान कोच को विनम्र श्रद्धांजलि!
संपादन - मानबी कटोच