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ओलिंपिक खेलों का इतिहास 120 साल से ज्यादा पुराना है। पहली बार साल 1896 में ओलिंपिक खेलों का आयोजन हुआ था। जिसमें 14 देशों ने भाग लिया था। वक्त के साथ, ओलिंपिक में भाग लेने वाले देशों की संख्या बढ़ने लगी। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय माहौल का ओलिंपिक खेलों पर असर पड़ा। जैसे पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ओलिंपिक खेलों का आयोजन नहीं हुआ था। लेकिन हर चार साल के अंतराल पर होने वाले ये खेल सभी देशों के लिए बहुत ज्यादा मायने रखते हैं क्योंकि ओलिंपिक में प्रदर्शन करने वाले खिलाडियों और उनके देशों को एक अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलती है।
भारत ने अपने पहले ओलिंपिक की शुरुआत 1900 के पेरिस ओलिंपिक में नॉर्मन प्रिचर्ड (Norman Pritchard) के साथ की थी। नॉर्मन ने पांच पुरुष स्पर्धाओं में भाग लिया था और उन्होंने दो रजत पदक जीते थे। इसके बाद, 1920 में भारत से खिलाडियों ने ओलिंपिक में भाग लिया। इसके बाद, भारत ने सभी 'ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक खेलों' में भाग लिया। साल 1964 से भारत 'शीतकालीन ओलिंपिक खेलों' में भी भाग ले रहा है। अब तक भारत ने 24 ओलंपिक खेलों में 35 पदक जीते हैं। जिसमें स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक शामिल हैं।
वहीं, बात अगर 'पैरालंपिक खेलों' की करें तो भारत ने साल 1968 से पैरालंपिक खेलों में भाग लेना शुरू किया था। हालांकि, पहले पैरालंपिक में भारत कोई पदक नहीं जीत पाया था। लेकिन अगर आज की बात करें तो अब तक भारत ने पैरालंपिक खेलों में कुल 12 पदक जीते हैं, जिनमें स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक शामिल हैं।
लेकिन आज इस लेख में हम आपको बताएंगे उन भारतीय खिलाड़ियों और टीम के बारे में जिन्होंने ओलिंपिक और पैरालंपिक खेलों में 'स्वर्ण पदक' (Gold Medal) जीते हैं। ओलिंपिक खेलों में भारत ने अब तक 10 गोल्ड मेडल जीते हैं। जिनमें से आठ टीम ने और दो 'इंडिविजुअल' केटेगरी में जीते गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये आठ स्वर्ण पदक भारतीय हॉकी टीम के नाम हैं। इनमें से छह पदक तो भारतीय हॉकी टीम ने लगातार जीते थे। वहीं, पैरालंपिक खेलों में भारतीय खिलाडियों ने चार स्वर्ण पदक हासिल किए हैं।
1. भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - एम्स्टर्डम 1928
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भारत ने अपना पहला ओलिंपिक गोल्ड मेडल साल 1928 में जीता था। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने दिग्गज हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के नेतृत्व में 29 गोल किए और एक भी गोल खाए बिना उन्होंने अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता। उस दौरान ध्यानचंद ने फाइनल में नीदरलैंड्स के खिलाफ हैट्रिक बनाते हुए पूरे टूर्नामेंट में कुल 14 गोल किए। भारतीय हॉकी टीम का ओलंपिक में यह पहला गोल्ड मेडल था।
इस जीत ने ध्यानचंद को हॉकी का हीरो बना दिया। जब यह हॉकी टीम ओलिंपिक में शामिल होने जा रही थी तो लोगों को उनसे ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं। लेकिन जब यह टीम जीतकर भारत लौटी तो तो हजारों लोग अपने ओलंपिक नायकों की झलक देखने के लिए उमड़ आये। बताते हैं कि कुछ लोगों ने ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को चेक भी किया था कि कहीं इसमें चुंबक तो नहीं लगी है।
2. भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - लॉस एंजिल्स 1932
साल 1928 में गोल्ड मेडल जीतकर भारतीय हॉकी ने अपना दबदबा बना लिया था। उन्होंने अपनी यह साख साल 1932 के ओलिंपिक खेलों में भी कायम रखी। एक बार फिर ध्यानचंद जैसे खिलाड़ियों के मार्गदर्शन में, भारतीय टीम ने फाइनल में जापान को एकतरफा मुकाबले में 11-1 से हराकर बड़ी जीत हासिल की। इस खेल में ध्यानचंद के साथ-साथ रूप सिंह ने भी शानदार प्रदर्शन किया और एक बेहतरीन खिलाड़ी बनकर उभरे थे।
3. भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - बर्लिन 1936
साल 1936 में एक बार फिर भारतीय हॉकी टीम ने अपना लोहा मनवाया। बर्लिन ओलंपिक में भी भारत ने शानदार प्रदर्शन करते हुए फाइनल मुकाबले को 8-1 से अपने नाम किया और एक और गोल्ड मेडल पर भारतीय झंडे की मुहर लगा दी। इस ओलिंपिक में ध्यानचंद के दांत में चोट आई थी लेकिन फिर भी उन्होंने छह गोल किए थे।
दूसरे विश्व युद्ध के कारण साल 1940 और 1944 के ओलिंपिक खेलों को स्थगित कर दिया गया था। इसके बाद 1948 में ओलिंपिक खेल हुए और तब तक भारत आजाद हो चुका था।
4. भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - लंदन 1948
साल 1948 में, पहली बार स्वतंत्र भारत की हॉकी टीम ने ओलिंपिक में कदम रखा। इसी वजह से 1948 के ओलंपिक गेम्स ख़ास होने वाले थे। क्योंकि मेजर ध्यानचंद का सपना था कि उनकी टीम ब्रिटेन को हराए और इस ओलिंपिक में उन्हें वह मौका मिला। बिना किसी दबाव के भारतीय हॉकी टीम ने एक बार फिर तिरंगा फहराया और आखिरी मुक़ाबले में स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया। इस खेल में बलबीर सिंह बेहतरीन खिलाडी बनकर उभरे।
एक साक्षात्कार के दौरान बलबीर सिंह ने कहा था कि जब राष्ट्रीय गान बजा और इसके साथ हमारा तिरंगा ऊपर गया तो उन्हें लगा कि वह भी तिरंगे के साथ उड़ रहे हैं। उस समय जो देशभक्ति उन्होंने महसूस की, उसके जैसी दुनिया की कोई दूसरी भावना नहीं है।
5. भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - हेलसिंकी 1952
बलबीर सिंह के साथ से साल 1952 में भी भारतीय हॉकी टीम ने अपना झंडा फहराया। हेलसिंकी गेम्स में भारत ने नीदरलैंड को फाइनल में 6-1 से हराया। बलबीर सिंह ने 3 मैचों में 9 गोल किए। फाइनल में भी उन्होंने 5 गोल किए, जो कि ओलंपिक फाइनल में किसी एक खिलाड़ी द्वारा किए जाने वाले सबसे ज्यादा गोल का रिकॉर्ड है।
6. भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - मेलबर्न 1956
यह लगातार छठी बार था जब भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक जीता था। शानदार बात यह थी कि इस पूरी प्रतियोगिता में भारत ने एक भी प्रतिद्वंदी को एक भी गोल करने का मौका नहीं दिया था। फाइनल मुकाबला भारत और पाकिस्तान के बीच रहा जहां भारत ने उन्हें 1-0 से हराकर ओलंपिक गेम्स को अपने नाम किया। कहते हैं कि फाइनल मैच में टीम के कप्तान बलबीर सिंह हाथ में फ्रेक्चर होने के बाद भी खेले थे।
हालांकि, साल 1960 में हुए ओलिंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम को सिर्फ रजत पदक से संतोष करना पड़ा। भारतीय पुरुष हॉकी टीम का मुक़ाबला 1960 ओलिंपिक फाइनल में पाकिस्तान से था। इस बार पाकिस्तान ने 1-0 से ओलिंपिक गोल्ड अपने नाम किया।
7. भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - टोक्यो 1964
भारत को अपना सातवां ओलिंपिक गोल्ड मेडल भी भारतीय हॉकी टीम से ही मिला। साल 1964 में, भारतीय हॉकी टीम ने एक बार फिर इतिहास रचा और पाकिस्तान को हराकर ओलिंपिक गोल्ड मेडल अपने नाम किया।
8. भारतीय हॉकी पुरुष टीम, स्वर्ण पदक - मास्को 1980
साल 1968 और 1972 में भारतीय हॉकी टीम अपनी भरपूर कोशिश के बावजूद पदक के रंग को स्वर्ण नहीं कर पाई। इन दोनों ओलिंपिक में उनको कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। इसके बाद, मॉन्ट्रियल 1976 में एक निराशाजनक प्रदर्शन के कारण भारतीय टीम 7वें स्थान पर रही।
लेकिन, उन्होंने मास्को 1980 में फिर से वापसी की। शुरुआती राउंड में भारत ने तीन मैच जीते और दो मैच उनके ड्रॉ रहे। फाइनल में भारतीय टीम ने स्पेन को 4-3 से हराकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया। हालांकि, अब तक यह आखिरी बार था जब हॉकी टीम ने ओलिंपिक में स्वर्ण जीता।
1980 के बाद, टोक्यो ओलिंपिक 2020 में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने वापसी करते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया।
9. अभिनव बिंद्रा, स्वर्ण पदक - मेंस 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग, बीजिंग 2008
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साल 1980 के बाद, भारत को ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। आखिरकार, साल 2008 में एक बार फिर स्वर्ण पदक देश के नाम हुआ। ओलिंपिक में भारत का सबसे यादगार पल बीजिंग 2008 में आया था। जब अभिनव बिंद्रा ने मेंस 10 मीटर एयर राइफल में ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीता। भारतीय निशानेबाज ने अपने अंतिम शॉट के साथ लगभग 10.8 का स्कोर किया।
यह स्वर्ण पदक इसलिए भी खास था क्योंकि यह भारतीय इतिहास में पहली बार था जब भारत का पहला व्यक्तिगत ओलिंपिक स्वर्ण पदक सुनिश्चित हुआ।
10. नीरज चोपड़ा, गोल्ड मेडल, मेंस जेवलिन थ्रो - टोक्यो 2020
साल 2008 के बाद, टोक्यो 2020 ओलिंपिक खेलों में भारत ने अपना दसवां और व्यक्तिगत श्रेणी में दूसरा स्वर्ण पदक जीता। नीरज चोपड़ा ने पुरुषों की भाला फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। अभिनव बिंद्रा के बाद, नीरज चोपड़ा दूसरे खिलाडी बन गए हैं जिन्होंने व्यक्तिगत श्रेणी में गोल्ड मेडल जीता है। इसके साथ ही, भारत ने ट्रैक एंड फील्ड में अपना पहला गोल्ड मेडल जीता। नीरज के पदक के साथ, कई ट्रैक एंड फील्ड खिलाडियों का सपना पूरा हुआ। जैसे फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर स्वर्गीय मिल्खा सिंह को हमेशा यह कमी खली कि वह ओलिंपिक में मेडल नहीं जीत पाए।
इसी तरह, पायोली एक्सप्रेस के नाम से जानी जाने वाली पीटी उषा भी साल 1984 के ओलिंपिक में मात्र 1/100 सेकंड के अंतर से मेडल से चूक गयी थी। लेकिन नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल जीतकर इन सभी खिलाडियों के सपनों को पूरा किया है।
ओलिंपिक की ही तरह, पैरालंपिक खेलों में भी भारतीय खिलाडियों ने तिरंगे की शान बढ़ाई है।
- मुरलीकांत पेटकर, गोल्ड मेडल, मेंस 50 मीटर फ्रीस्टाइल 3, हीडलबर्ग 1972
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मुरलीकांत पेटकर (Murlikant Petkar) भारत के पहले पैरालंपिक पदक विजेता हैं। मुरलीकांत पेटकर ने साल 1972 के हीडलबर्ग खेलों में पुरुषों की 50 मीटर फ्रीस्टाइल 3 इवेंट में स्वर्ण पदक जीता था। इस भारतीय पैरा तैराक ने शीर्ष पुरस्कार जीतने के लिए अपने 37.33 सेकेंड के साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया था।
पेटकर भारतीय सेना में कोर ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (EME) में एक जवान थे। पहले मुरलीकांत एक मुक्केबाज थे लेकिन युद्ध के दौरान गोली लगने के कारण उन्होंने अपना एक हाथ खो दिया था। इसके बाद, उन्होंने तैराकी में अपना करियर बनाया। मुरलीकांत को साल 2018 में भारत के पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
- देवेंद्र झाझड़िया, गोल्ड मेडल, मेंस जेवलिन थ्रो F44/46, एथेंस 2004 और गोल्ड मेडल, मेंस जेवलिन थ्रो F46, रियो 2016
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भारत ने साल 1984 के बाद से हर पैरालंपिक खेलों में हिस्सा लिया। लेकिन उन्हें अगले पदक विजेता के लिए एथेंस में 2004 के पैरालंपिक खेलों तक इंतजार करना पड़ा।
साल 2004 में जेवलिन थ्रोअर देवेंद्र झाझड़िया (Devendra Jhajharia) ने पुरुषों के जेवलिन थ्रो (भाला फेंक) F44/46 इवेंट में स्वर्ण पदक हासिल किया। देवेंद्र ने 62.15 मीटर की दूरी के साथ उस समय का विश्व रिकॉर्ड भी अपने नाम किया था। देवेंद्र आठ साल के थे, जब बिजली के तारों की चपेट में आ गए थे। करंट लगने के कारण उन्हें अपना बायां हाथ गंवाना पड़ा था। लेकिन उन्होंने इसे कभी भी अपने कमजोरी नहीं बनने दिया। उन्हें साल 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
इसके बाद, 2016 में पैरालंपिक खेलों में अपना दूसरा स्वर्ण पदक हासिल किया था। जहां उन्होंने 63.97 मीटर का थ्रो करते हुए एक रिकॉर्ड बनाया था। इस भारतीय पैरालिंपियन को साल 2017 में मेजर ध्यानचंद खेल रत्न से सम्मानित किया गया था।
- मरियप्पन थंगावेलु, गोल्ड मेडल, मेंस हाई जम्प F42, रियो 2016
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तमिलनाडु के मरियप्पन थंगावेलु (Mariyappan Thangavelu) ने रियो 2016 पैरालंपिक खेलों में पुरुषों के हाई जम्प F42 इवेंट में स्वर्ण पदक हासिल किया था। जहां उन्होंने 1.89 मीटर की छलांग लगाते ये पदक अपने नाम किया। मरियप्पन को पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
टोक्यो पैरालंपिक 2020 में भी भारत की उम्मीदें कई खिलाडियों से हैं कि वे मेडल जीतकर देश का नाम रौशन करेंगे।
संपादन- जी एन झा
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