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इस साल की सबसे प्रतीक्षित फिल्म 'दंगल' के कुछ अंश देखकर ही दर्शको में खासा उत्साह है। और हो भी क्यूँ ना? हाल ही में साक्षी मलिक के रिओ ओलंपिक्स में फ्रीस्टाइल कुश्ती में पहला पदक जीतने के बाद, इस खेल में सभी की दिलचस्पी बढ़ गयी है। और जब कुश्ती की बात आती है तो हर भारतीय को उन छह बहनों की याद ज़रूर आती है जिन्होंने देश का नाम हमेशा उंचा किया है। ये छह बहने है गीता फोगाट, बबिता फोगाट, विनेश फोगाट, प्रियंका फोगाट, ऋतू फोगाट और संगीता फोगाट।
'दंगल' की कहानी इन्ही बहनों के जीवन पर आधारित है। पर जैसा की फिल्म के अंशो से पता चलता है, इस फिल्म में मुख्य भूमिका में ये बहने नहीं बल्कि गीता, बबिता, संगीता और ऋतू के पिता और विनेश और प्रियंका के चाचा, महावीर सिंह फोगाट है, जिनका किरदार आमिर खान निभा रहे है। शायद ऐसा इसलिए है क्यूंकि इनके जीवन में भी इनकी कामयाबी के पीछे असली भूमिका महावीर सिंह की ही है।
ऐसा नहीं है कि महावीर सिंह केवल अपनी बेटियों और भतीजियों के लिए ही जाने जाते है। वे खुद भी एक ज़माने में एक जाने माने पहलवान हुआ करते थे। दिल्ली के मशहूर चांदगी राम अखाड़े की शान रह चुके महावीर सिंह फोगाट, अपने राज्य के कुश्ती चैंपियन होने के अलावा, भारतीय कुश्ती टीम का हिस्सा भी रह चुके हैं।
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महावीर सिंह, देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने के अपने अधूरे सपने को अपने बच्चो के ज़रिये पूरा करना चाहते थे। जब इस सपने को पूरा करने के लिए उन्हें भगवान् ने कोई बेटा नहीं दिया तो उन्होंने अपनी बेटियों को ही अखाड़े में उतार दिया। महावीर के लिए इस फैसले पर अटल रहना इतना आसान नहीं था। हरयाणा के भिवानी के रहने वाले फोगाट परिवार को यहाँ के लोगो की मानसिकता से हर रोज़ जूझना पडा।
'आय एम् शक्ती' नामक आयोजन में पत्रकारों से बातचीत करते हुए बबिता फोगाट ने बताया, "शुरुआत में हमे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लोग हमारा ये कहकर मज़ाक उड़ाते थे, कि कुश्ती तो मर्दों का खेल है और लड़कियों को तो घर पर ही बैठना चाहिए। कुश्ती के लिए छोटे और तंग कपडे पहनने पर भी हमे शर्मिंदा किया जाता था। पर मेरे माता-पिता कभी ऐसी बातों के दबाव में नहीं आये।"
महावीर अपने गुरु पहलवान चांदगी राम से प्रेरित थे, जिन्होंने देश के इतिहास में पहली बार अपनी बेटियों, दीपिका और सोनिका को कुश्ती करने के लिए अखाड़े में उतारा था। इसके अलावा सन 2000 में करनम मल्लेश्वरी द्वारा ओलिंपिक खेल में जीते गए कांस्य पदक ने उन्हें हमेशा अपने लक्ष्य की ओर चलाये रखा।
अपनी बेटियों की इस खेल के प्रति लगन देखकर उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए महावीर सिंह ने अपनी नौकरी तक छोड़ दी। और इस पिता की लगन का पहला फल उन्हें तब मिला जब दिल्ली में आयोजित 2010 के कॉमन वेल्थ गेम्स में गीता ने स्वर्ण तथा बबिता ने रजत पदक जीता। इसके दो साल बाद, इन दोनों ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक भी जीता। और 2012 में गीता, ओलंपिक्स में भाग लेने वाली देश की पहली कुश्ती खिलाड़ी बनी।
गीता और बबिता की कामयाबी से प्रेरित होकर महावीर सिंह की बाकी दो बेटियां, ऋतू और संगीता और उनके दिवंगत भाई की दोनों बेटियां प्रियंका और विनेश भी इस खेल में कूद पड़ी।
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महावीर ने अब इन सारी बच्चियों को अपनी छत्र-छाया में ले लिया और उन्हें सिर्फ एक ही लक्ष्य के लिए तैयार करने लगे और वो लक्ष्य था भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने का। इन लड़कियों का प्रशिक्षण रोज सुबह चार बजे से शुरू होता, फिर ये अपने स्कूल या कॉलेज में जाती और शाम को वापस आने के बाद फिर से कुश्ती लड़ती।
आखिर महावीर सिंह का सपना तब पूरा हुआ जब बबिता और विनेश ने 2014 के ग्लास्को कामनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर अपने परिवार और देश का नाम ऊँचा कर दिया।
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ऋतू, प्रियंका और विनेश ने भी एशियाई चैंपियनशिप गेम्स में क्रमशः 44 किलो, 51 किलो और 49 किलो वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर सोने पे सुहागा की कहावत को साकार कर दिखाया।
पर यहाँ तक का सफ़र आसान नहीं था। इन लड़कियों को यहाँ तक पहुंचाने के लिए महावीर सिंह को गांववालों के उल्हाने सुनने पड़े, प्रशिक्षण जारी रखने के लिए तथा लड़कियों को प्रतियोगिताओं के लिए भेजने के लिए दोस्तों और रिश्तेदारों से क़र्ज़ लेना पडा। और जहाँ लड़कियों का घर से निकलना दूभर होता है, ऐसी जगह पर इन बच्चियों को अखाड़े में लडको से भिड़ना पडा क्यूंकि साथ लड़ने के लिए उस वक़्त कोई लड़की ही नहीं होती थी।
समाज और लोगो का नज़रिया आखिर तब बदला जब गीता ने 2010 में पदक जीता और उन सभी को गलत साबित कर दिया, जो समझते थे कि कुश्ती सिर्फ लड़को का खेल है।
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फोगाट परिवार के इस साहसी कदम ने मानो पुरे समाज को एक नयी चेतना दी है। जो हरयाणा, लड़कियों की भ्रूण हत्या के लिए मशहूर हुआ करता था, आज वहीँ की लडकियां हरयाणा और देश की शान कहलाई जाती है। और इस बदलाव का श्रेय जाता है, महावीर सिंह फोगाट को!