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Home खेल ये हौसला कैसे झुके! तमाम संघर्षों के बावजूद अवनि लेखरा ने जीता स्वर्ण, बनाया नया रिकॉर्ड

ये हौसला कैसे झुके! तमाम संघर्षों के बावजूद अवनि लेखरा ने जीता स्वर्ण, बनाया नया रिकॉर्ड

टोक्यो में चल रहे पैरालंपिक से भारत के लिए लगातार अच्छी खबरें आ रही हैं। हाई जंप में निषाद कुमार और टेबल टेनिस में भाविना पटेल के सिल्वर मेडल जीतने के बाद, अब निशानेबाजी में अवनि लेखरा ने गोल्ड मेडल जीत लिया है। जानिए उनके संघर्षों भरे सफर के बारे में।

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Avani Lekhra

Para Athlete Avani Lekhara

टोक्यो में चल रहे पैरालंपिक से भारत के लिए लगातार अच्छी खबरें आ रही हैं। हाई जंप में निषाद कुमार और टेबल टेनिस में भाविना पटेल के सिल्वर मेडल जीतने के बाद, अब निशानेबाजी से ऐसी खबर आई, जिसने करोड़ों भारतीयों के चेहरों पर मुस्कान बिखेर दी। भारतीय निशानेबाज़ अवनि लेखरा ने देश के लिए स्वर्ण पदक जीतकर, इतिहास रच दिया।

इसी के साथ अवनि, पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं। उन्होंने यहां आर -2 महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच 1 स्पर्धा में जीत हासिल कर, पोडियम के शीर्ष पर अपनी जगह बनाई।

19 वर्षीया अवनि ने कुल 249.6 प्वॉइंट्स स्कोर करके, पैरालंपिक खेलों में नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। वह, तैराक मुरलीकांत पेटकर (1972), जैवलिन थ्रोअर देवेंद्र झाझड़िया (2004 और 2016) और हाई जम्पर थंगावेलु मरियप्पन (2016) के बाद, पैरालंपिक में स्वर्ण जीतने वाली चौथी भारतीय एथलीट हैं।

यह गोल्ड, रिज़ल्ट है संघर्ष और दृढ़संकल्प का

Para Athlete Avani Lekhara & her father Praveen Lekhara
Avani Lekhara & her Father (Source)

यह जीत और गोल्ड मेडल, जिसने आज देश को गौरवान्वित किया है, यह परिणाम है उस संघर्ष और दृढ़संकल्प का, जो शुरू हुआ आज से करीब 9 साल पहले। जब राजस्थान के जयपुर की रहने वाली अवनि की ज़िंदगी ने, साल 2012 में महज 12 वर्ष की उम्र में अलग ही मोड़ ले लिया।

अपने कदमों से चलकर, अपनी सफलता का सफर तय करने का सपना देखने वाली अवनि, 12 साल की उम्र में व्हीलचेयर पर आ गईं। अवनि के पिता प्रवीण लेखरा, साल 2012 में धौलपुर में कार्यरत थे। उसी दौरान जब वह जयपुर से धौलपुर जा रहे थे, तो एक सड़क दुर्घटना हुई, जिसमें अवनि और उनके पिता दोनों घायल हो गए।

प्रवीण लेखरा तो कुछ समय बाद स्वस्थ हो गए, लेकिन अवनि को तीन महीने अस्पताल में बिताने पड़े। इसके बाद वह ठीक तो हो गईं, लेकिन डॉक्टर्स ने बताया कि रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण, वह कभी अपने पैरों पर चल नहीं पाएंगी।

खुद को कमरे में कर लिया था बंद

प्रवीण लेखरा ने एक इंटरव्यू में बताया, “घटना के बाद, अवनि बहुत निराश हो गई थीं और अपने आप को कमरे बंद कर लिया था।” लेकिन उनके माता-पिता ने कभी हार नहीं मानी। वे हमेशा उनके साथ खड़े रहे। उनके काफी प्रयासों के बाद, अवनि में आत्मविश्वास लौटा।

अवनि ने एक इंटरव्यू में बताया, “एक्सीडेंट के बाद मेरे पिता ने मुझे अभिनव बिन्द्रा की बायोग्राफी ‘A Shot At History’ लाकर दी।” वहीं से उनकी निशानेबाजी में रुचि जगी और वह घर के पास ही एक शूटिंग रेंज पर जाकर प्रैक्टिस करने लगीं। वह भले ही अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती थीं, लेकिन एक बार शूटिंग शुरू करने के बाद, उनके कदम लगातार आगे ही बढ़े। उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

Avani Lekhara during Asian Para Games 2018 Indonesia
Avani participated in Asian Para Games 2018 Indonesia (Source)

एक्सीडेंट के सिर्फ तीन साल बाद, शूटिंग (Shooting) ही अवनि की जिंदगी बन गई और महज 5 साल के अंतराल में ही अवनि ने Golden Girl का तमगा हासिल कर लिया। अलग-अलग शूटिं प्रतियोगिताओं (Shooting competitions) में अब तक वह, कई गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। 2016 से 2020 के बीच अवनि ने नेशनल शूटिंग चैम्पियनशिप में 5 बार गोल्ड मेडल जीतकर धमाल मचा दिया। खेल के साथ ही, लॉ की छात्रा अवनि, पढ़ाई में भी काफी अच्छी हैं।

"जीवन वही है, जो आप इसे बनाते हैं"

कुछ साल पहले अवनि ने एक इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए अपना दुःख और आत्मविश्वास दोनों जताते हुए, अपने फॉलोअर्स को एक बेहतरीन मेसेज दिया था। उन्होंने लिखा था, "पीछे मुड़कर देखना आपके अंतर्मन के लिए हमेशा अच्छा होता है, लेकिन सुनिश्चित करें कि आपका ध्यान हमेशा आने वाले समय की ओर रहे। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि 10 साल पहले मुझे डांस के लिए एक छोटा सा प्राइज मिला था। तब मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि जीवन ऐसे बदलेगा। थोड़ा समय निकालें और खुद की तारीफ करें, खुद से प्यार करें। जब आप खुद पर विश्वास करते हैं, तो कुछ भी संभव है! जीवन वही है, जो आप इसे बनाते हैं।"

थोड़े जिम्मेदार आप भी बनें

हमारे देश में कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जो हर साल पैरालंपिक्स और दूसरे कई खेल आयोजनों में देश के लिए मेडल जीतकर लाते हैं। देश का परचम पूरी दुनिया में लहराते हैं और कई ऐसे भी खिलाड़ी हैं, जो इन सफलताओं से प्रेरित होकर कहीं, देश के किसी कोने में कड़ी मेहनत कर रहे होंगे, ताकि अगली बार वे भी भारत का प्रतिनिधित्व करें और देश के लिए पदक जीतें।

लेकिन इन सबके बीच, एक सच यह भी है कि इन खिलाड़ियों ने जो संघर्ष देखा है, जो परेशानियां झेली हैं, उसका कारण रहा है दिव्यांगता। कई पैराएथलीट्स ने सड़क दुर्घटनाओं के कारण, इस परिस्थिति का सामना किया और इसके लिए जिम्मेदार है हर वह शख्स, जो सड़क पर गैरजिम्मेदारी के साथ गाड़ी चलाता है और अपने साथ-साथ कई और लोगों की जान खतरे में डालता है।

तो अगली बार, आप जब भी सड़क पर निकलें, तो ध्यान रखें अपना भी और दूसरों का भी।

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