दो विदेशी.. एक जज़्बा... और... एक 'पिंक ब्रेसलेट' !

दो विदेशी.. एक जज़्बा... और... एक 'पिंक ब्रेसलेट' !

दूर से ली गयी एक धुंधली फोटो, १.२५ अरब की आबादी में एक बच्ची को ढूंढने का संकल्प और मन में उठते कई सवालो के साथ दो विदेशी भारत आये। क्या वह बच्ची उन्हें मिली? उस बच्ची को ढूँढने के पीछे मकसद क्या था? क्या ये मकसद कामयाब हुआ? आईये जानते हैं इनके सफ़र की कहानी और खोजते हैं इन सवालों के जवाब इस लेख में –

क्रिस और जेस अपनी भारत यात्रा की तैयारी में जुटे थे जब उनके मित्र डिक ने उन्हें एक तस्वीर दी।

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] क्रिस को भारत में ली हुई तस्वीर दिखाते हुए डिक स्मिथ[/caption]

यह फोटो उस वक़्त ली गयी थी जब डिक भारत आये थे और गुजरात के एक पुल के पास उनकी ट्रेन रुकी। इस फोटो ने उनके दिल को इस तरह से छू लिया कि उन्होंने उस फोटो में खड़ी एक लड़की को खोजने की ठानी। इस लड़की ने सिर्फ एक पिंक ब्रेसलेट के अलावा और कुछ नहीं पहना था।

इसके लिए उन्होंने अपने मित्र, क्रिस से संपर्क किया और उन्हें बताया कि वह इस लड़की के लिए कुछ करना चाहते हैं। और अगर वे उनकी मदद करें तो उस लड़की के जीवन और शिक्षा में सुधार लाया जा सकता है।

क्रिस और जेस के लिए ये एक चुनौती थी, पर इस नेक मकसद से जुड़ने के लिए उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया।

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] यही वह तस्वीर है जिसे लेकर क्रिस और जेस भारत आये ![/caption]

क्रिस की फसबूक पोस्ट के अनुसार –

“ दूर से ली गयी यह फोटो और गूगल मैप लोकेशन ही सिर्फ हमारे पास थी – और उस से भी बुरी बात, जैसा की आप देख सकते हैं, वह लड़की और सारे लोग किसी दूसरी और देख रहे हैं – हमें किसी का भी चेहरा नज़र नहीं आ रहा ! १.२५ अरब की आबादी में, जहाँ यह भी नहीं पता कि ये लोग अब भी इसी जगह पर मिलेंगे या नहीं, ऐसे में इस परिवार को ढूंढ निकालना एक चुनौती थी।”

मन में ऐसे सवाल ले कर क्रिस और जेस वडोदरा पहुंचे जहाँ ये तस्वीर ली गयी थी। वहां उन्हें उनके होटल की रिसेप्शनिस्ट जयति मिली, जो उनके लिए अनुवादक बनने को राज़ी हो गयी। आखिरकार उन्हें वह पुल मिला जहाँ की फोटो डिक ने उन्हें दी थी। पुल था शास्त्री पुल या पॉलिटेक्निक ब्रिज

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] जयति - जिसने क्रिस और जेस की मदद की ![/caption]

वहाँ एक बड़ा विज्ञापन लगा था  जिस पर लिखा था – “ Study, Work and Settle in New Zealand.” मतलब "न्यूज़ीलैण्ड में पढ़े, काम करे और बसे !"

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] शास्त्री पुल या पॉलिटेक्निक ब्रिज।[/caption]

जयति ने उन्हें सुझाव दिया कि परिवार को खोजने के पहले उन्हें उन लोगों के लिए कुछ उपहार खरीद लेने चाहिए। इस खरीददारी में उन्हें रात हो गयी और फिर जयति ने उन्हें उन उपहारों को दुसरे बेघर लोगो को बांटने का सुझाव दिया। वह समझ नहीं पा रही थी कि इसी परिवार को खोजना इतना ज़रूरी क्यों है!

अगले दिन जेस और क्रिस अकेले ही पुल की और निकल पड़े पर वे किसी से भी बात करने में असमर्थ थे। वे बैंक के मेनेजर श्री रतन से मिलने गए जिनको वे पहले से ही जानते थे। रतन ने इन लोगों की पहचान डॉ चेल्लानी से करवाई जो इनकी मदद करने को तैयार हो गए।

डॉ चेल्लानी के सहयोग से काफी खोज बीन के बाद एक औरत ने इस परिवार को पहचान लिया और आखिरकार इनकी मुलाकात इस पिंक ब्रेसलेट वाली लड़की से हुई – “दिव्या”।

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] आखिर पिंक ब्रेसलेट वाली "दिव्या" मिल ही गयी ![/caption]

थोडा घुलने मिलने के बाद और अपना उद्देश्य बताने के बाद इन लोगों ने अगले दिन दिव्या के परिवार को बैंक में आने को कहा।

दिव्या के दो भाई और थे। उसके पिता प्लास्टर करने का काम करते थे। उस का परिवार पिछले 12 साल से इसी पुल के निचे रहता आया था। दिव्या का जन्म भी यही हुआ था, बिना किसी डॉक्टर या आया की मदद के!

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] क्रिस, दिव्या को वह तस्वीर दिखाते हुए जो डिक ने खिंची थी[/caption]

अगले दिन क्रिस की मुलाकात पहली बार दिव्या के पिता से हुई। दिव्या के पिता की कमाई २५० – ३५० रु  प्रतिदिन की थी । उस से मिलने पर क्रिस को पता चला कि दिव्या के पिता ऐसी जगह में रहने के बाद भी शराब और सिगरेट जैसी बुरी आदतों से दूर थे।

फेसबुक की पोस्ट के अनुसार -

“ हमें उसका यकीन हो गया, क्यूंकि वह पुल के नीचे रहने वाले लाल आंख, नशे में धुत लोगों से अलग दिख रहा था। वह एक सच्चा और मेहनती इंसान लग रहा था जो अपने परिवार से प्यार करता है, और उनके लिए ही आगे बढ़ने का संघर्ष करता है। वे लोग पुल के निचे रहने वाले लोगों से अलग थे – एक आदर्श परिवार जिसे न सिर्फ थोड़ी मदद की ज़रूरत थी, बल्कि जो उस मदद के लायक और हक़दार दोनों थे ...”

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] दिव्या का परिवार[/caption]

उनलोगों को क्रिस ने बताया की किस तरह डिक और पिप ने उन्हें देखा था और वे लोग इस परिवार की मदद करना चाहते हैं।

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] डिक और पिप -जिन्होंने दिव्या की तस्वीर ली थी[/caption]

अगले और तीसरे दिन वो लोग दिव्या के नाम का अकाउंट खुलवाने के लिए बैंक में मिले जिसमे डिक उनकी मदद के लिए पैसे जमा करवा पाए। उस परिवार के पास कोई प्रमाण पत्र नहीं था। बैंक के मेनेजर, श्री रतन ने ‘ smile bank account’ खुलवाने का सुझाव दिया जिसकी व्यवस्था ऐसे ही लोगो के लिए की गयी है जिनके पास कोई प्रमाण पत्र नहीं होता ।

इनकी फोटो खिंचवा कर बैंक में जमा करवा दी गयी।

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] फोटो खिचवाने के लिए दिव्या की माँ ने तुरंत अपने शाल से पोंछकर दिव्या का चेहरा चमका दिया[/caption]

इसके बाद एक औपचारिक कॉन्ट्रैक्ट तैयार करवाया गया । कॉन्ट्रैक्ट में यह बात साफ़ की गयी की डिक द्वारा जमा किये पैसो को किन चीजों में खर्च करने की अनुमति है ( जैसे किराया, दिव्या की पढाई, आदि)। साथ ही यह भी लिखा गया कि दिव्या का नियमित रूप से स्कूल जाना अनिवार्य रहेगा नहीं तो इस कॉन्ट्रैक्ट को ख़ारिज किया जा सकता है। इस पर नज़र रखने के लिए दिव्या की हाजिरी की मासिक रिपोर्ट प्रिसिपल द्वारा डॉ चेल्लानी को भेजे जाने की बात भी लिखवाई गयी ।

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] दिव्या का पासबुक[/caption]

इसके बाद क्रिस और जेस पूरे परिवार के साथ ज़रूरत का सामान लेने मार्किट निकल पड़े । भाषा की दिक्कत होने के कारण वे दिव्या को ज़रूरत के सामानों की फोटो मोबाइल पर दिखा कर पूछते थे कि उसे उनमे से क्या क्या चाहिए ।

क्रिस के फेसबुक पोस्ट के अनुसार-

“ पूरे परिवार को खरीदारी के लिए ले कर जाना बहुत ही अच्छा अनुभव रहा। उनकी माँ से हमने बहुत आग्रह किया कि वे हमे उनके लिए भी कुछ कपडे खरीदने दें । पर उन लोगों पर जिस तरह हमारे पैसे खर्च हो रहे थे उसे देख कर वो घबरा रही थी और कई बार दाम देख कर सारी चीज़े वापस रख आगे बढ़ जातीं – कहते हुए कि यह सब बहुत महंगा है ।”

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] दिव्या की ज़रूरत का सारा सामन खरीदा गया[/caption]

दिव्या के लिए स्कूल बैग, पेंसिल, रबड़, तीसरी कक्षा की किताबें और अगले साल, चौथी कक्षा की भी किताबें ली गयीं। इसके साथ ही पिता के काम के लिए भी कुछ सामानों की खरीदारी की गयी। कुछ सामान जैसे ऑफिस के लिए बैग आदि लेने का भी आग्रह किया गया जिसे उन्होंने मना कर दिया।

अगले और चौथे दिन – सभी दिव्या के स्कूल के पास इन लोगों के लिए एक किराये का घर देखने के लिए गए। एक ही दिन में किसी निर्णय पर पहुँच पाना संभव नहीं हुआ सो सबने मिल कर यह तय किया कि डॉ चेल्लानी इसी हफ्ते उस परिवार के लिए घर ढूंढ कर क्रिस को फोटो भेज देंगे ।

इसके बाद सारे लोग दिव्या के स्कूल गए और प्राचार्य से मिले। वे सहर्ष मासिक हाजिरी की रिपोर्ट डॉ. चेल्लानी को देने को मान गए।

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] दिव्या का स्कूल[/caption]

अपना काम पूरा कर क्रिस और जेस वापस लौट पड़े।

[caption id="" align="aligncenter" width="900"] और ये रहे हम - क्रिस और जेस[/caption]

क्रिस ने फेसबुक पर लिखा –

“ और ये रहे हम, ट्रैफिक के बीच तेज़ भागते रिक्शा में ! कितनी अदभुत कहानी का हिस्सा बन कर ! भारत बहुत ही खूबसूरत देश है। बहुत व्यस्त, बहुत रंग बिरंगा , अचरजों से भरा हुआ, बड़े दिल वाले लोगों से भरा हुआ !! ”

जिस पुल के ऊपर एक विज्ञापन द्वारा विदेश में पढाई कर भविष्य उज्जवल बनाने के सपने दिखाए जा रहे थे, उसी पुल के निचे जाने कितने बच्चो ने पैसो और शिक्षा के अभाव में अपने भविष्य से उम्मीद रखना ही छोड़ दिया होगा! ऐसे में किसी विदेशी का भारत आ कर ऐसी ही एक बच्ची को आगे बढ़ने के लिए मदद करना हमारे लिए एक सुखद सीख है । क्रिस और जेस की कोशिशो ने ये तो साबित कर ही दिया की मदद करने का जज्बा हो तो एक छोटी सी कड़ी भी हमे मंजिल तक पहुंचा सकती है, ज़रूरत है तो बस जज्बे की !

सभी चित्र क्रिस ब्रे के फेसबुक पेज से लिए गए है
Related Articles
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe