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अब सड़क दुर्घटना के शिकार लोगो की मदद करना हुआ आसान -जानिये अपने अधिकार !

केंद्रीय सरकार ने सड़क दुर्घटना में मदद करनेवाले नागरिको की जांच प्रक्रिया के लिए भी कुछ नियम जारी किये है जिसे स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एस ओ पी) कहा जा रहा है। जांच के दौरान मदद करनेवाले नागरिको के साथ पुलिस को कैसा बर्ताव करना है इस बात का ब्यौरा 'एस ओ पी' देता है।

मई 2015 में भारत सरकार ने उन नागरिको की रक्षा के लिए कुछ नियमावली जारी किये, जो सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगो की मदद के लिए आगे आते है। यह नियमावली देश के सर्वोच्च न्यायलय के अक्टूबर 2014 में दिए आदेश के अनुसार दी गयी थी। अब केंद्रीय सरकार ने मदद करनेवाले इन नागरिको की जांच प्रक्रिया के लिए भी कुछ नियम जारी किये है जिसे स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एस ओ पी) कहा जा रहा है। जांच के दौरान मदद करनेवाले नागरिको के साथ पुलिस को कैसा बर्ताव करना है इस बात का ब्यौरा ‘एस ओ पी’ देता है।

एस ओ पी के अनुसार जांच के दौरान निम्नलिखित बातो का ध्यान रखना होगा –

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1.मदद करनेवाले नागरिक के साथ इज़्ज़त के साथ पेश आना होगा और धर्म, जाती, लिंग या किसी भी आधार पर उनसे भेदभाव नहीं किया जाएगा।

2.चश्मदीद के अलावा यदि कोई भी सड़क दुर्घटना की जानकारी पुलिस कण्ट्रोल रूम को फ़ोन पर देता है तो उसे अपना नाम पता और फ़ोन नंबर गुप्त रखने का अधिकार है।

3. घटना स्थल पर पहुँचने पर पुलिस अधिकारी मदद करने वाले नागरिक को उनका नाम, पता तथा फ़ोन नंबर बताने को मजबूर नहीं कर सकते।

4. कोई भी पुलिस अधिकारी या कोई भी दूसरा व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद करने वाले को गवाह बनने के लिए ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं कर सकता। गवाह बनने या न बनने का फैसला करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ उस मदद करनेवाले का ही होगा।

5.यदि केस की जांच करनेवाले स्थानीय पुलिस अफसर को मदद करनेवाले नागरिक की भाषा न आती हो या मदद करनेवाले को स्थानीय न्यायलय की भाषा न समझती हो तो पुलिस ऑफिसर को अनुवादक लाना होगा।

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Source: Wikimedia

6.यदि कोई नागरिक अपनी मर्ज़ी से चश्मदीद गवाह बनना चाहता हो तो, 1973 के कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर के सेक्शन 296 के तहत उन्हें अपनी गवाही एक एफिडेविट पर देने का अधिकार है।

7.ऐसे किसी भी चश्मदीद गवाह का बयान या एफिडेविट जांच अधिकारी द्वारा एक ही बार में लिया जाना चाहिए।

8. यदि किसी कारणवश मदद करने वाले नागरिक को देरी से लाना हो या उसे लाने में खर्च हो रहा हो या दिक्कत आ रही हो तो उनके आवेदन पर कोर्ट ऑफ़ मेजिस्ट्रेट एक कमीशन नियुक्त कर सकता है जो 1973 कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर के सेक्शन 284 के तहत इसकी जांच कर सके।

किसी भी मामले की जांच के दौरान, ऊपर दिए गए सभी नियमो का पालन करवाने की ज़िम्मेदारी सरकार ने सुपरिंटेंडेंट ऑफ़ पुलिस (एस पी) अथवा डिप्टी कमिशनर ऑफ़ पुलिस ( डी सी पी) को दी है।

मूल लेख – Factly

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