हम वही काट रहे हैं जो बोया है!

हम वही काट रहे हैं जो बोया है!

(अ)सभ्यता का आरम्भ/ का अंत' !

2016 के आँकड़ों के अनुसार औरतों के ख़िलाफ़ जुर्मों को देखें तो 3.27 लाख केस रिपोर्ट हुए थे. अपने देश में प्रतिदिन 106 बलात्कार की घटनायें होती है. ये तो वो हैं जो केस सामने आते हैं. हमारी संस्कृति में जिसके साथ ग़लत हुआ है उसे गन्दा समझा जाता है तो बहुत से माँ-बाप रिपोर्ट करना ही ठीक नहीं समझते कि ऐसा करने से पूरे ख़ानदान की छीछालेदर हो जायेगी. ये मोटी-मोटी बात हुई यौन उत्पीड़न की.

अनाचार तो आपके हमारे साथ प्रतिदिन, प्रतिपल हो रहा है. आवाज़ उस दिन उठाई जाती है जब पानी सर से गुज़र जाता है. हम वही काट रहे हैं जो बोया है. बहुत सा लिखा/कहा जा रहा है तो लम्बी बात न कह कर महज़ पॉइंटर्स दे रहा हूँ:

* न्याय व्यवस्था का रेप
* न्याय व्यवस्था द्वारा रेप

* न्यूज़ मीडिया का पतन. सारे लिहाज ताक पर. शक्तिशाली के झूठ का प्रचार.

* शिक्षण प्रणाली का पतन. शिक्षा व्यवस्था पर हमारे बन्दर सरदारों ने इतने उस्तरे चलाये हैं कि ये कॉर्पोरेट दुनिया के लिए काम आने वाले संवेदनहीन, डरे हुए, किसी भी तरह ज़िंदा रहने वाले, लचीली रीढ़ की हड्डी रखने वाले जाहिल (लेकिन जो अपने आपको समझदार समझते हैं) पैदा कर रही है. ऐसे समाज को दो चार चतुर बन्दर आसानी से हाँक सकते हैं. हम काट रहे हैं जो बोया गया है.

* पुलिस. लोग बेचारे हैं उनके सामने. पुलिस बेचारी है 'उनके' सामने.
लॉ एंड आर्डर.. हैं? वो क्या होता है?

* डॉक्टर्स, हस्पताल तो मज़े से लूट रहे हैं. आम आदमी से क़िस्से सुन लीजिये कि किस तरह यह खेल खेला जाता है. रस ले लेकर बताएँगे कि उन्हें कितना कुछ मालूम है. लेकिन क्या किया जा सकता है साहब.. उसे यह भी तो मालूम है कि वह आम आदमी है.

* बिजली, पेट्रोल, तेल, प्याज़, फ़ोन, इंटरनेट, दवाइयाँ बेचने वाले एक अट्टहास लगाते राक्षस की तरह लूट-खसोट मचाये हुए हैं. कोई क्या कर सकता है.. शायद क़िस्मत ख़राब है सोच कर पहली ऊंगली में पुखराज पहन लेते हैं लोग. बड़े सादा हैं हम हिंदुस्तानी, भोले हैं इसीलिए कोई भी उल्लू बना ले, बस इतना करते हैं कि कहीं भी कचरा फेंक देते हैं, एम्बुलेंस को रास्ते पर जगह नहीं देते हैं और कोई देख नहीं रहा हो तो अपनी बेटी की सहेली के सर पर प्यार से हाथ फेर देते हैं..

* सियासतदार / धर्म / धर्मगुरु - इस मामले में समझदारी दिखा कर कुछ नहीं कहूँगा. किसी को बुरा लग गया तो आजकल मार ही डालते हैं ये लोग.

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* सरकारी बाबूगिरी की बात करते हैं. उसी परम्परा को ग़ैरसरकारी संस्थान बढ़ा रहे हैं. कभी फ़ोन के बिल के लिए कंपनी को फ़ोन किया है??

* सोशल मीडिया का ज्ञानियों द्वारा रेप
सोशल मीडिया का अज्ञानियों द्वारा रेप
सोशल मीडिया द्वारा ज्ञानियों अज्ञानियों का रेप
इस बीच सोशल मीडिया अपना प्रोडक्ट बेचने, फ़िल्में, NGO, प्रमोट करने का सबसे कारगर साधन बना.

इन सबके बावजूद भी कुछ बात तो है कि 'हस्ती मिटती नहीं हमारी' - ऐसा वो लोग कह रहे हैं जिनकी आँखें बंद हैं. क्योंकि आज के हालातों से तनावग्रस्त है तो जनाब आप ध्यान लगाना शुरू करें. ऊपरवाले से जुड़ें, दीन-दुनिया में क्या रखा है भला? ख़ुश रहो यार - पॉज़िटिव ऐटीट्यूड रखो यार - च्यवनप्राश खाया करो - बैडमिंटन खेला करो - तुम हो हो ही ऐसे कुछ अच्छा देखना ही नहीं चाहते.तो ये अपना हाल है उधर जितने NRI हैं उनसे भारत में आ गए राम-राज्य पर निबंध लिखवा लो (हाँ अब उन्होंने अपना पैसा भारतीय बैंकों में रखना या यहाँ व्यापार में पैसा लगाना अब बंद कर दिया है). घर घर चर्चाएँ हैं लेकिन वो किसी मज़हब-वजहब, नागिन-डाँस, मेथीदाने से स्वाथ्यलाभ, सब्ज़ीवाले के कमीनेपन जैसे विषयों पर हैं.
दबी आवाज़ में पड़ोसी की बेटी का भी ज़िक्र आ जाता है कि नामुराद शॉर्ट्स में ही मुहल्ला घूम लेती है.. बाक़ी देश में बेटियाँ बचाई जा रही हैं, इतिहास संजोया जा रहा है, और सब मिलजुल कर भविष्यनिर्माण में लगे ही हुए हैं.. .

वाssssह, लोग कितने ख़ुश हैं!
चिरंतन उत्साहसिक्त
विजयगाथाओं की प्रतिध्वनियाँ
निरंतर प्रयासधर्मी
राजे, महाराजे, उनके मंत्री और नगरसेठ
उनके चिंतक और फ़लसफ़ाकार
छेड़ते (समझदारी भरे) सवाल राग
देते उनके जवाब भी.
उनके निर्माणाधीन सिद्धांतों के दिलक़श तखय्युल
उनके कवि लिखते गौरव-काव्य
राजगायकों के सधे गले के लिए
प्रजातंत्र की थिरकन
सभ्यता की पराकाष्ठा के गीत
नौकर-मालिक की प्रीत
सबकी चादर साफ़ - स्फ़ीत
मनुष्यता की, सभ्यता की, जीत भाई जीत!
'ये देखो मेरा अाइफ़ोन' पुकारता कोई
'ये मेरा ब्रांड, ये मेरा कांड' की प्रतिध्वनियाँ - प्रचंड
प्रचंड उत्साह, कर्मठ ठेकेदार
समाज के सुनार
हुनरमंद. तल्लीन. गढ़ते देश, समाज
परहित, परमार्थ सेनापतियों के काम-काज
वाssह, लोग कितने ख़ुश हैं!
संवेदनशील समाज से
बेसाख्ता हाथ अाये सुराज से....

ये एक कविता के अंश हैं जिसका शीर्षक है '(अ)सभ्यता (का आरम्भ) का अंत'
इसके वीडियो के लिए क्लिक करें: 


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लेखक -  मनीष गुप्ता

फिल्म निर्माता निर्देशक मनीष गुप्ता कई साल विदेश में रहने के बाद भारत केवल हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार करने हेतु लौट आये! आप ने अपने यूट्यूब चैनल 'हिंदी कविता' के ज़रिये हिंदी साहित्य को एक नयी पहचान प्रदान की हैं!


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