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समाज एक सनातन प्रक्रिया है.
हम क्या थे, कहाँ से आ रहे हैं, क्या ठीक किया, क्या ग़लत हुआ. आज का देश और समाज भूतकाल की कुल घटनाओं का निष्कर्ष है. इतिहास पर एक दृष्टि और चिंतन ही हमारे आने वाले कल की कल्पना गढ़ता है.
इतिहास का हाथी कैसे बाँचा जाय?
किसी ने सूँड लिखी, किसी ने पूँछ. जिस राजा ने लिखवाई अपनी प्रशस्ति लिखवाई. जिसने नहीं लिखवाया कुछ वो गर्त में गया. समय ने दिखाया है कि वर्तमान में भी इतिहास का बेड़ा गर्क किया जा सकता है. जिसकी लाठी उसका इतिहास? जिसके हाथ में माइक - बस सुनेंगे उसकी बकवास? आजकल इतिहास हमें बदला लेना भी सिखा रहा है. चलो चार सौ साल पहले के दुष्कर्मों को आज ठीक करते हैं. पता कीजिये शायद आपके दादाजी को किसी ने गाली दी हो, चाँटा मारा हो.. जाइये अब उनके पोतों से उसका बदला लीजिये.
ये सब कहने का मतलब यह है कि इतिहास को समझने के लिए इंसान में विवेक भी हो, वरना जिसका जो जी चाहेगा इतिहास को घुमा फिरा कर अपना उल्लू सीधा करने निकल पड़ेगा।
26 जनवरी
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26 जनवरी पहली बार 1930 में महत्त्वपूर्ण बनी. इससे लगभग एक महीने पहले 31 दिसंबर 1929 को कॉंग्रेस के लाहौर अधिवेशन में नेहरू जी की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज की माँग की गयी थी और इसी दिन रावी के किनारे पहली बार तिरंगा फहराया गया था. तब लोगों से अपील की गई कि 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाए.
हालाँकि आज़ादी मिलने में हमें अभी भी कोई सत्रह साल लगे लेकिन 26 जनवरी सभी के ज़हनों में एक महत्वपूर्ण तारीख़ बन चुकी थी. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान गढ़ने के लिए 'संविधान सभा' का गठन हुआ जिसके अध्यक्ष भीमराव रामजी अम्बेडकर थे. कई लोगों को ग़लतफ़हमी भी हो जाती है कि सिर्फ़ एक अकेले इंसान बाबासाहेब अम्बेडकर ने ही पूरा संविधान लिखा है. लेकिन सच है कि उनकी सदारत में संविधान सभा ने इस कार्य को अंजाम दिया था. जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के अन्य प्रमुख सदस्य रहे हैं.
आज़ादी के तकरीबन पाँच महीने बाद दिसंबर, 1947 में संविधान सभा ने औपचारिक तौर पर काम शुरू किया और तीन वर्षों से कुछ कम समय में (2 वर्ष, 11 माह, 18 दिनों में) 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पारित कर दिया गया. (इस दिन को संविधान दिवस घोषित किया गया है). अब इस दिन के बाद भी काट-छाँट चलती रही और लगभग दो महीने बाद
24 जनवरी 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित कॉपियों पर सभा के 308 सदस्यों ने हस्ताक्षर किये. और इसके दो दिन पश्चात् 26 जनवरी, 1950 को लगभग 1,45,000 शब्दों का विश्व का सबसे लम्बा लिखित संविधान हमारे देश में लागू कर दिया गया.
हम सभी संविधान के मूल्यों को समझ सकें और उन पर कायम रह सकें, इस कामना के साथ. आज आपके लिए है एक ख़ास प्रस्तुति :
लेखक - मनीष गुप्ता
हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.
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