कभी माँ की टिफिन सर्विस में मदद की, तो कभी बेटे के टिफिन बॉक्स के ज़रिए जीता बच्चों का दिल। आई से मिली फूड बिज़नेस की प्रेरणा और हासिल कर ली मंज़िल। यह कहानी है महाराष्ट्र की गीता पाटिल की, जिन्होंने बचपन से माँ के टिफिन सर्विस बिज़नेस में मदद की और आज वह छोटी सी हेल्पर, अपना खुद का बिज़नेस चला रही हैं और शार्क टैंक तक पहुंच कर 40 लाख की फंडिग हासिल की है।
मुंबई के विले पार्ले में जन्मीं गीता के लिए ज़िंदगी किसी रोलर कोस्टर से कम नहीं रही। उनके पिता BMC में काम करते थे और माँ होम शेफ थीं। गीता ने बहुत कम उम्र में बिज़नेस चलाने के तरीके को काफी करीब से देखा और समझा। शादी के बाद, जब वह पति के साथ सांताक्रूज़ रहने आईं, तो अपने खाना बनाने के हुनर और स्वादिष्ट स्नैक्स के ज़रिए उन्होंने सबके दिल जीत लिए।
आस-पड़ोस के लिए उनसे पूरनपोली, मिठाइयां, चकली वगैरह बनवाकर घर भी ले जाया करते थे और गीता इसके लिए एक रुपये भी नहीं लेती थीं, क्योंकि गीता ने कभी फूड बिज़नेस के बारे में सोचा ही नहीं था वह तो बस प्यार से चीज़ें बनाकर लोगों को खिलाती थीं। उनका बेटा विनीत जब स्कूल जाने लगा, तो उसके क्लास के बच्चे लंच बॉक्स पर टूट पड़ते थे, क्योंकि विनीत के लंच बाकी बच्चों से काफी अलग होता था।
माँ को याद कर शुरू करती हैं काम
सब कुछ ठीक चला रहा था। लेकिन फिर शुरू हुआ गीता के लिए मुश्किलों का दौर। साल 2016 में गीता के पति गोविंद की डेंटल लैबोरेटरी में क्लर्क की नौकरी चली गई। घर चलाना था, बच्चे को पढ़ाना था, लेकिन पैसे कहां से आएं? तब गीता के मन में पहली बार घर चलाने के लिए अपना काम शुरू करने का ख्याल आया और अपने घर से ही काफी कम इन्वेस्टमेंट कर एक छोटा सा बिज़नेस शुरू किया, जहां वह ट्रेडिशनल महाराष्ट्रीयन स्नैक्स और मिठाइयाँ बनाकर बेचने लगीं।
माँ कमलाबाई निवुगले से मिले खाना बनाने के हुनर और बिज़नेस चलाने की प्रेरणा ने बेटी गीता को हर मुश्किल से लड़ने में मदद की। गीता ने 2016 से 2020 तक, बिना किसी ब्रांडिंग के, घर की रसोई से ही अपना महाराष्ट्रियन फूड बिज़नेस चलाया।
इसकी शुरुआत धीमी थी, लेकिन गीता को भरोसा था कि यह अच्छा चलेगा। शुरुआत में, वह प्रभात कॉलोनी में बीएमसी के कर्मचारियों को चाय और नाश्ता सप्लाई करती थीं। गीता हर सुबह माँ को याद करके ही काम शुरू करती थीं। बेहतर स्वाद और खुद पर पूरा यकीन रख गीता काम करती गईं और इतनी कमाई होने लगी कि घर खर्च और बच्चे की पढ़ाई आराम से हो सके।
बेटे ने माँ के फूड बिज़नेस को करोड़ों तक पहुंचाने में की मदद
आज 21 साल के हो चुके विनीत ने बचपन से ही अपनी माँ को कड़ी मेहनत करते हुए देखा। स्कूल की पढ़ाई पूरी होते ही, विनीत ने पढ़ाई छोड़कर माँ की मदद करने का फैसला किया और सबसे पहले उन्होंने माँ के फूड बिज़नेस को एक नाम दिया- ‘पाटिल काकी’।
इसके बाद विनीत ने सोशल मीडिया के ज़रिए मार्केटिंग शुरु की। इन कुछ बदलावों के ज़रिए विनीत ने अपने बिज़नेस का सालाना रेवेन्यू 12 लाख के ऊपर पहुंचा दिया। फिर उन्होंने सांताक्रूज में 1,200 वर्ग फुट की जगह ली, जहां से वे आज भी काम करते हैं।
आज ‘पाटिल काकी’ फूड बिज़नेस करीब 30 हज़ार कस्टमर्स तक अपने प्रोडक्ट्स पहुंचा रहा है और उनका बिज़नेस लाखों से बढ़कर डेढ़ करोड़ के पार पहुंच चुका है। उन्होंने 50 लोगों को रोज़गार दिया है, जिनमें से 70% महिलाएं हैं। गीता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका बिज़नेस यहां तक पहुंच पाएगा।
लेकिन उनकी मेहनत, माँ की सीख और बेटे के साथ ने सब कुछ संभव कर दिया और आज उन्होंने शार्क टैंक में पहुंच कर 40 लाख की फंडिंग भी हासिल कर ली है।
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