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आज कहानी दिल्ली के नज़फ़गढ़ में रहने वाली कृष्णा यादव की, जो आज एक सफल पिकल बिज़नेस चला रही हैं। कृष्णा एक ऐसी ऑन्त्रप्रेन्यॉर हैं, जो खुद कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन आज दिल्ली के स्कूलों में लेक्चर देने के लिए बुलाई जाती हैं। भले ही उन्होंने नाम लिखना अपने बच्चों से सीखा, लेकिन अपने नाम को वह राष्ट्रपति भवन तक ले गईं!
कृष्णा ने अपनी ज़िन्दगी में बुरे से बुरा वक़्त देखा, पर कभी हार नहीं मानी और आज उनके बनाये अचार, कैंडी, मुरब्बा, जूस आदि की मांग दिल्ली के आसपास के सभी राज्यों में है।
कृष्णा ने इस काम की शुरुआत सड़क किनारे टेबल लगाकर, चंद डिब्बों के साथ की। वह एक छोटे से कमरे में अचार बनाया करती थीं और उनके पति सड़क किनारे एक स्टॉल लगाकर राहगीरों को अचार चखाया करते थे। किसी को अगर टेस्ट पसंद आता, तो वह ले जाता और कभी-कभी तो आधे दिन तक बिक्री ही नहीं होती थी।
लेकिन कृष्णा ने इससे भी ज़्यादा बुरे दिन देखे थे। कृष्णा और उनके पति गोवर्धन सिंह यादव, बुलंदशहर के रहनेवाले हैं और वहीं उनका गाड़ियों का कारोबार था, जो ठप्प हो गया और सिर से छत छिन गई, लेनदारों से ताने मिलने लगे। तब इन सबसे तंग आकर 500 रुपये उधार लेकर कृष्णा अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गईं।
एक टीवी शो ने दिखाई पिकल बिज़नेस की राह
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कृष्णा, दिल्ली में भी काम के तलाश में बहुत भटकीं, लेकिन कहीं काम नहीं मिला। तब उन्होंने लीज़ पर ज़मीन लेकर सब्ज़ियां उगाना शुरू किया और उसे बाज़ार में बेचने लगीं। हालांकि, इससे भी उन्हें कोई बहुत फायदा नहीं हो रहा था।
एक दिन दूरदर्शन पर ‘कृषि दर्शन’ प्रोग्राम देखते हुए, उन्हें अचार बनाने की ट्रेनिंग के बारे में पता चला और उन्होंने तय किया कि वह ट्रेनिंग करके अचार बनाएंगी और बेचेंगी। उन्होंने उजवा से तीन महीने की ट्रेनिंग की और 3,000 रुपये निवेश कर करौंदे और मिर्च का अचार बनाया।
अब उन्हें पिकल मार्केट का इतना अंदाज़ा था नहीं और कोई खुला अचार खरीदने को तैयार भी नहीं होता था। तब कृष्णा के पति ने नज़फ़गढ़ के ही छावला रोड पर एक स्टॉल लगाना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने अचार के अलावा, करौंदा कैंडी जैसे और प्रोडक्ट्स बनाने भी शुरू किए।
यह सबके लिए बिल्कुल नया प्रोडक्ट था। उनके प्रोडक्ट्स का स्वाद लोगों को इतना पसंद आया कि सामान खरीदने के लिए लोगों की लाइन लगने लगी। तब कृष्णा ने 'श्री कृष्णा पिकल्स' नाम से अपनी कंपनी शुरू की और यहां से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
मिल चुके हैं कई अवॉर्ड्स
आज कृष्णा कई फैक्ट्रीज़ की मालकिन हैं, जहां लगभग 152 तरीके के प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं। 500 रुपये उधार लेकर दिल्ली आईं कृष्णा आज करोड़ों का पिकल बिज़नेस चला रही हैं और सैकड़ों लोगों को रोज़गार भी दिया है।
साथ ही, उन्हें अब तक कई अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं। उन्हें साल 2015 में नारी शक्ति पुरस्कार से भी नवाज़ा गया। लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान यह है कि अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने का उनका जो सपना था, वह पूरा हुआ।
आज उनका सबसे बड़ा बेटा, पढ़-लिखकर उनका कारोबार सम्भाल रहा है, तो दूसरा बेटा सरकारी नौकरी कर रहा है। साथ ही, बेटी ने भी बी.एड कर लिया है।
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