23 साल की उम्र में एक छोटे से कमरे से काम शुरू कर, करोड़ों का बिज़नेस खड़ा करने तक और एक आम पहाड़ी लड़की से ‘मशरूम लेडी ऑफ उत्तराखंड’ का खिताब हासिल करने तक। यह कहानी है उत्तराखंड की दिव्या रावत की, जिन्होंने पलायन रोकने और स्थानीय स्तर पर लोगों को रोज़गार मुहैया कराने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और मशरूम फार्मिंग शुरू की।
नोएडा से सोशल वर्क में मास्टर्स करने के बाद, दिल्ली में Human rights के लिए काम करने के दौरान, दिव्या ने 2013 में देखा कि उनके राज्य के बहुत से लोग नौकरी की चाह में शहरों में जाकर बुरे हालातों में जीवन बिता रहे हैं। तब वह नौकरी छोड़कर अपने गांव वापस आ गईं और सोचने लगीं कि ऐसा क्या काम शुरू किया जाए, जिसे हर कोई अपने घर से भी कर सके और उनके इस सवाल का जवाब था…मशरूम।
उन्हें पता था कि मशरूम उगाना एक ऐसा काम है, जिसे एक कमरे से भी किया जा सकता है। न ज्यादा Investment का चक्कर, न किसी बड़ी जगह की ज़रूरत और मशरूम फार्मिंग से सामान्य फसलों के मुकाबले, काफी आसानी से कई गुना अधिक आमदनी हो सकती है।
लोगों के तानों ने दिखाई मशरूम फार्मिंग के ज़रिए आगे बढ़ने की राह
दिव्या का मानना था कि मूल्यों में अंतर, किसानों की जिंदगी को बदल सकता है। उन्होंने मशरूम फार्मिंग को एक हाउसहोल्ड प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया। वह चाहती थीं कि खेती को आसान बनाया जाए, ताकि अधिक से अधिक लोग इसे अपना सकें। उन्होंने गहन शोध किया, मशरूम फार्मिंग सीखी और कई प्रयोग किए। इसके बाद, उत्तराखंड के मौसम के अनुकूल बेहतरीन किस्मों के मशरूम उगाने लगीं।
वह बाकी किसानों को भी यह काम सिखाना चाहती थीं, लेकिन लोगों का कहना था कि इतना फायदा है, तो खुद कुछ बड़ा क्यों नहीं करती? तब दिव्या ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए 3 लाख रुपए निवेश कर ‘सौम्य फूड प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से कंपनी शुरू की और 2016 में एक रिसर्च लैब भी।
वह बटन, ओएस्टर, मिल्की मशरूम के साथ, कार्डिसेफ मिलिटरीज मशरूम उगाने लगीं, जिसकी बाज़ार में कीमत 3 लाख रुपए प्रति किलो से भी अधिक है। कुछ समय बाद, मशरूम से कुछ और प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया और नूडल्स, जूस, बिस्किट जैसे 70 से अधिक प्रोडक्ट्स बेचने लगीं।
कैसे उगाएं के साथ-साथ सिखाती हैं कैसे पकाएं और कैसे खाएं भी
धीरे-धीरे लोगों को दिव्या पर भरोसा होने लगा और उनसे ट्रेनिंग लेकर राज्य के कई युवाओं और महिलाओं ने अपना काम शुरू किया। उनकी इन्हीं कोशिशों को देख 2016 में उत्तराखंड सरकार ने दिव्या को उत्तराखंड में मशरूम फार्मिंग का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया।
आज देशभर के 10 हज़ार से अधिक किसान उनके साथ जुड़कर काम रहे हैं। दिव्या ‘कैसे उगाएं’ के साथ-साथ, कैसे पकाएं और कैसे खाएं के कॉन्सेप्ट पर भी काम रहीं हैं और उत्तराखंड में ‘Mush Mush’ नाम से अपना रेस्टोरेंट खोलकर, मशरूम से 30 तरीके की डिशेज़ बनाकर लोगों को सर्व करती हैं।
खेती में उनके योगदान और किसानों को आमदनी के नए ज़रिए से जोड़ने के उनके प्रयासों को देखते हुए उन्हें ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया।
अगर दिव्या कर सकती हैं, तो आप क्यों नहीं?
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