सफलनामा रूमा देवी का! घूँघट से निकलकर तय किया रैंप वॉक तक का सफ़र

Safalnama of Fashion Designer Ruma Devi

रुमा देवी की कहानी पढ़कर आपको भी यकीन हो जाएगा कि राजस्थान में बाड़मेर के छोटे-से गाँव रावतसर से आने वाली यह महिला वाकई नारी-शक्ति का प्रतीक है।

राजस्थान में बाड़मेर के छोटे-से गाँव रावतसर की रहनेवाली 30 साल की फैशन डिज़ाइनर रूमा देवी की कहानी, उनके राज्य की तरह ही ज़िंदगी के कई रंगों से भरी है। 5 साल की छोटी-सी उम्र में ही उन्होंने अपनी माँ को खो दिया और पिता की दूसरी शादी के बाद अपनी दादी के साथ रहीं और उनसे सिलाई-कढ़ाई सीखी।

घर की आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी, ऐसे में आठवीं के बाद उनकी पढ़ाई छुड़वा दी गई और गाँव के रिवाज़ के मुताबिक साल 2006 में 17 साल की उम्र में शादी कर दी गई। लेकिन शादी के बाद भी रूमा की परेशानियां खत्म नहीं हुईं। उनके ससुराल वाले खेती-बाड़ी पर निर्भर थे, जिसमें कोई खास बचत नहीं थी। एक ज्वाइंट फैमिली का खर्च बड़ी मुश्किल से चल रहा था।

साल 2008 में रूमा ने अपनी पहली संतान को जन्म दिया। लेकिन पैसों की तंगी के कारण दो दिन बाद ही उन्होंने उस मासूम को खो दिया। रूमा इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं और तब उन्होंने काम करने की ठानी।

100-100 रुपये इकट्ठा कर शुरू किया काम और बन गईं फैशन डिज़ाइनर

रूमा ने आस-पड़ोस की लगभग 10 महिलाओं को इकट्ठा करके उनके साथ एक स्वयं-सहायता समूह बनाया। सबने 100-100 रुपए इकट्ठा करके एक सेकेंड हैंड सिलाई मशीन खरीदी और अपने प्रोडक्ट्स तैयार करना शुरू किया। अब प्रोडक्ट्स तो तैयार थे, लेकिन बेचे कहां?

तब रूमा ने दुकानदारों से बात की और उन्हें मनाया कि वे सीधा उनसे ही प्रोडक्ट्स लेकर बेचें। इस तरह धीरे-धीरे उन्हें काम मिलने लगा। काम के सिलसिले में ही साल 2009 में रूमा देवी ग्रामीण विकास व चेतना संस्थान पहुंची, जहाँ उनकी मुलाक़ात संगठन के सचिव विक्रम सिंह से हुई। इसके बाद रूमा और उनकी साथी महिलाएँ इस संगठन का हिस्सा बन गईं।

रूमा चाहती थीं कि और भी महिलाएँ आत्म-निर्भर बनें। हालांकि, यह बिल्कुल भी आसान नहीं था। जब भी वह गाँव की किसी महिला के घर पहुँचतीं, तो घर के मर्द उन्हें अंदर नहीं आने देते थे। उन्हें लगता कि रूमा उनके घर की औरतों को बिगाड़ देंगी। लेकिन रूमा के हौसले के आगे उन्हें झुकना पड़ा। धीरे-धीरे महिलाएँ उनसे जुड़ने लगीं और फिर जब इन महिलाओं को उनकी मेहनत के पैसे मिले, तो गाँव के लोग भी फैशन डिज़ाइनर रूमा देवी पर भरोसा करने लगे।

आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है रूमा देवी के प्रोडक्ट्स की मांग

Ruma Devi receiving Nari Shakti Award
Ruma Devi receiving Nari Shakti Award

कुछ समय बाद, रुमा को ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान का प्रेसिडेंट बनाया गया। अब रुमा चाहती थीं कि देश-विदेश तक लोग बाड़मेर और बाड़मेर की औरतों के हुनर को जानें। इसके लिए उन्होंने ट्रेडिशनल सिलाई-कढ़ाई को आधुनिक फैशन से जोड़ा और राजस्थान में जहाँ भी प्रदर्शनी या क्राफ्ट्स मेले लगते, वहां इन प्रोडक्ट्स का स्टॉल लगाने लगीं।

साल 2015 में उन्हें ‘राजस्थान हेरिटेज वीक’ में जाने का मौका मिला। यहाँ जब उनके बनाए कपड़ों को पहनकर अंतरराष्ट्रीय फैशन डिज़ाइनर अब्राहम एंड ठाकुर और भारत के प्रसिद्ध डिज़ाइनर हेमंत त्रिवेदी के मॉडल्स ने रैम्प वॉक किया और उनके साथ खुद रूमा और उनसे जुड़ीं महिलाएँ रैम्प पर उतरीं, तो लोगों की नज़रें उन पर ठहर गईं।

बस इसके बाद, तो साल 2016 में हुए फैशन वीक के लिए खुद 5 बड़े डिज़ाइनर्स ने उनसे कॉन्टैक्ट किया और उनके डिज़ाइन किए कपड़े बनाने के लिए कहा और ऐसी ही रूमा एक बड़ा नाम बन गईं।

फैशन डिज़ाइनर रूमा के लीडरशिप में ये राजस्थानी महिलाएँ अब तक जर्मनी, कोलम्बो, लंदन, सिंगापोर, थाईलैंड जैसे देशों के फैशन शो में भी भाग ले चुकी हैं। अब इस संगठन के प्रोडक्ट्स की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी है। आज रूमा देवी के साथ 22,000 से भी ज़्यादा महिला कारीगर जुड़ी हुई हैं।

साल 2018 में रूमा को नारी शक्ति पुरस्कार भी दिया गया। उनका कहना है कि मुश्किलें तो सबके जीवन में आती हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है हौसला रखना और अपने हुनर को अपनी पहचान बनाकर आत्म-निर्भर बनना।

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