अनुभव - मुझे अपने बच्चों को पालने के अलावा और कुछ नहीं आता था और मैंने यही किया !

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कई बार ज़िन्दगी में इतने मुश्किल मोड़ आते हैं कि हमें समझ ही नहीं आता कि आगे कैसे बढ़ें। अपने अपनों का चले जाना इनमें से सबसे मुश्किल मोड़ है, जो हर किसी के साथ होता है। क्योंकि मौत को तो कोई रोक नहीं सकता।

अपना कोई भी हो, दर्द तो कम नहीं होता लेकिन अगर जानेवाला घर का कर्ताधर्ता भी हो तो दुःख के साथ साथ ज़िम्मेदारियों का बोझ भी उठाना पड़ता है। लेकिन अगर आपने पहले कभी यह ज़िम्मेदारी न उठायी हो तो? जिनकी सलाह आज हम लेने जा रहे हैं, उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। न वह पढ़ी लिखी थीं, न उन्हें कोई काम आता था। उनके पति की अचानक मौत ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था। पर सर पर ज़िम्मेदारी थी बच्चों की। फिर जानिए उन्होंने क्या किया -

"जब मेरे पति का देहांत हो गया तो मैं सोचती थी कि अब मैं कैसे जिऊँगी.... मैंने अपनी सारी ज़िन्दगी बस घर ही संभाला था ...मुझे बस अपने बच्चो को पालना आता था और कुछ नहीं। फिर मैंने सोचा क्यूँ ना मैं इसी काम को अपनी रोज़ी रोटी का जरिया बना लूँ और मैं एक आया बन गयी। मैंने इन सभी बच्चो को बिलकुल अपने बच्चो की तरह ही पाला। इन सभी को उतना ही प्यार और दुलार दिया जितना मैं अपने बच्चो को देती थी। और बस ऐसे ही कई साल बीत गए। आज मैं ८० साल की हूँ और दुनिया के हर कोने में मेरे बच्चे है। आपको यकीन नहीं होगा लेकिन अपना पेट पालने के लिए जिन बच्चो को मैंने पाला था, वो आज भी मुझसे मिलने ज़रूर आते है!

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via Humans Of Bombay

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