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म्हारी छोरियां कम हैं के? लवलीना ने जीता पदक, कभी बेटा ना होने पर माता-पिता सुनते थे ताने

“I want to win Gold Medal” Lovlina Borgohain

आज भी समाज में ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें लगता है कि बेटा होना ज़रूरी है। देश के कई हिस्सों में आज भी लोगों को लगता है कि खेल-कूद लड़कों के लिए बने हैं। ऐसी हर सोच को कुचलते हुए, दो भारतीय खिलाड़ियों ने जापान में चल रहे टोक्यो ओलंपिक्स में भारत के लिए पदक जीता। पहला मेडल वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू ने और अब दूसरा पदक लवलीना बोरगोहेन ने मुक्केबाजी में हासिल किया।  

23 वर्षीय मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को पिछले साल अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। तब उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, “मुझे याद है कि गाँव में, अक्सर लोग मेरे माता-पिता को दया की नज़र से देखते थे। क्योंकि उनका कोई बेटा नहीं था, तीन बेटियां ही थीं। मेरी मां हमेशा, हम सब से कहा करती थीं कि अगर इन्हें गलत साबित करना है, तो कुछ बनके दिखाओ, और हमने ऐसा किया भी। मेरी एक बहन केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) और दूसरी बहन, सीमा सुरक्षा बल में हैं, और मैं एक बॉक्सर हूं।”

लवलीना, ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली असम की पहली महिला खिलाड़ी हैं, और आज उन्होंने टोक्यो में हो रहे दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन में भारत के लिए पदक सुनिश्चित कर दिया है। वह, टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय खिलाड़ी हैं। उन्होंने 69 किलोग्राम महिला वेल्टरवेट मुक्केबाजी के क्वार्टर फाइनल में चाइनीज़ ताइपे की निएन-चिन चेन को हराय़ा। इस जीत के साथ ही लवलीना ने भारत के लिए, कम से कम कांस्य पदक तो तय कर दिया है।

अखबार की एक कतरन से मिली प्रेरणा

Lovlina Borgohain

लवलीना के जीवन की प्रेरक यात्रा की शुरुआत, असम के गोलाघाट जिले के छोटे से गाँव ‘बड़ा मुखिया’ से हुई।

लवलीना का जन्म, ममोनी व टिकेन बोरगोहेन के घर हुआ था। उनके पिता एक छोटे बिजनेसमैन थे। जब लवलीना कक्षा 5 में थीं, तो उनके पिता ने उन्हें लेजेंड मुहम्मद अली के बारे में छपी, अखबार की एक कतरन दिखाई। उस कटिंग ने लवलीना को बॉक्सिंग से जोड़ दिया, लेकिन उन्हें पहले मॉय थाई में प्रशिक्षित किया गया। यह किकबॉक्सिंग का एक रूप है।

अपने हाई स्कूल में बॉक्सिंग ट्रायल के दौरान, उनके बॉक्सिंग स्किल ने पदुम बोरो (गुवाहाटी के एक कोच) को काफी प्रभावित किया। बोरो ने पूछा, “क्या यह प्रतिभाशाली युवा लड़की भारतीय खेल प्राधिकरण के तहत प्रशिक्षण के लिए गुवाहाटी जाना चाहेगी?” लवलीना तुरंत मान गईं और उस एक कदम के बाद, उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

लवलीना को एक बड़ा ब्रेक साल 2018 में मिला, जब उन्होंने एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। उस जीत के कारण ही, उन्हें साल 2018 में राष्ट्रमंडल खेलों (Commonwealth Games) के लिए भारतीय महिला मुक्केबाजी टीम में चुना गया।

हार से निकली जीत की राह

कॉमनवेल्थ गेम्स-2018 में मिली एक निराशाजनक हार ने लवलीना को पीछे मुड़कर देखने के लिए मजबूर कर दिया। उस हार के बाद उन्हें महसूस हुआ कि अपनी मनोवैज्ञानिक शक्ति पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है। इसके बाद असम की इस महिला खिलाड़ी ने अपनी काउंटर-अटैक तकनीक को और अधिक मजबूत बनाने के साथ-साथ, मेडिटेशन क्लासेज़ भी ज्वाइन कर ली।

लवलीना की ये कोशिशे रंग लाईं। साल 2019 में, उन्होंने AIBA महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में एक और कांस्य पदक जीता। वह 69 किग्रा वर्ग में दुनिया में नंबर 3 की खिलाड़ी भी बनीं।

इन सभी सफलताओं ने उन्हें, टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के अपने सबसे बड़े सपने के करीब पहुंचने में बहुत मदद की।

आखिरकार 2020 की शुरुआत में लवलीना ने, एशियाई ओलंपिक क्वालीफायर के क्वार्टर फाइनल में उज्बेकिस्तान की माफ़ुनाखोन मेलीवा को हराया, और ओलंपिक में अपनी जगह पक्की कर ली।

लवलीना ने क्वालीफाई करने के बाद टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “मेरे पिता हमेशा चाहते थे कि मैं ओलंपिक में जाऊं, यह उनके लिए एक सपने के सच होने जैसा है। मैंने उन्हें फोन किया, तो वे सब रोने लगे। लेकिन मैं सिर्फ ओलंपिक बर्थ से संतुष्ट नहीं हूं। मैं स्वर्ण पदक जीतना चाहती हूं।”

“People looked at my parents with pity. Because they had no sons, only three daughters.”

गांववालों को उम्मीद, अब मिलेंगी बुनियादी सुविधाएं

सच तो यह है कि जब वह टोक्यो से पदक के साथ लौटेंगी, तो लवलीना के गांव ‘बारो मुखिया’ के 2,000 से अधिक लोगों के लिए, यह दुनिया जीतने से कम नहीं होगा।

हो सकता है कि उनके मेडल के साथ-साथ गांव में, पाइप से पानी की आपूर्ति और कंक्रीट की सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं भी आएं। उनका गांव अभी भी एक कीचड़ भरे रास्ते से दुनिया के बाकी हिस्सों से जुड़ा हुआ है।

फिलहाल, ‘बारो मुखिया’ पानी की आपूर्ति के लिए नलकूपों और तालाबों पर निर्भर है, और यहां का निकटतम अस्पताल, जिला मुख्यालय में है, जो 45 किमी दूर है।

उम्मीदों से भरे ग्रामीणों ने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीत के बाद हिमा दास और मैरी कॉम के गांवों के भाग्य में बदलाव देखा है और शायद अब वे अपने भाग्य के बदलने का इंतजार कर रहे हैं।

मूल लेखः संचारी पाल

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