कोरोना महामारी के दौर में हमें डॉक्टरों और नर्सों की भूमिका का सही मायनों में अंदाजा हुआ। वहीं, इस दौर में कई ऐसी कहानियां भी सामने आई, जहां मेडिकल पेशेवरों ने अपनी जान हथेली पर रख लोगों की सेवा की। ऐसी ही कुछ कहानी है बिहार के सीवान जिले के बड़कागांव मिश्रौलिया की रहनेवाली रंजू कुमारी (ANM Ranju Kumari) की।
रंजू, सीवान के भगवानपुर हाट के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एएनएम के रूप में काम कर रही हैं और उन्हें कोरोना काल में लोगों की असाधारण रूप से सेवा के लिए बीते साल सितंबर में राष्ट्रपति द्वारा 'राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
इस पुरस्कार की शुरुआत, साल 1920 में हुई थी और यह, नर्सों को लोगों की सेवा के लिए दिया जाता है। वहीं, इस अवॉर्ड की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फ्लोरेंस नाइटिंगेल की 200वीं जयंती की याद में साल 2020 को “नर्स और मिडवाइफ वर्ष” घोषित कर दिया था।
पूरे बिहार से 2 नर्सों को किया गया चयनित
रंजू (ANM Ranju Kumari) का कहना है, “मैं 1998 से एएनएम के रूप में काम कर रही हूं। बीते 22 वर्षों में मुझे कभी इतनी खुशी नहीं हुई। मुझे जब पता चला कि राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार मिलने वाला है, तो मैं अपनी सभी परेशानियों को भूल गई। मेरे करीबी भी इस बात से काफी खुश थे।”
उन्होंने कहा कि उन्हें जनवरी 2021 में इस पुरस्कार के बारे में जानकारी मिली थी। फिर, 15 सितंबर 2021 को उन्हें यह सम्मान मिला। इस सम्मान के लिए बिहार की दो नर्सों का चयन किया गया था।
वह कहती हैं कि वैसे तो यह पुरस्कार दिल्ली में सीधे राष्ट्रपति के हाथों दिया जाता है। लेकिन कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए, उन्हें पटना के राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा वर्चुअली यह सम्मान दिया गया।
आस-पास के लोग मारते थे ताने
कोरोना काल में कई डॉक्टर डरे-सहमे हुए थे और वे मरीजों का इलाज करने से बच रहे थे। लेकिन 52 साल की रंजू (ANM Ranju Kumari) ने हिम्मत नहीं खोई और दिन-रात लोगों की सेवा में लगी रहीं।
वह कहती हैं, “कोरोना महामारी के संक्रमण को लेकर मैं भी डर रही थी, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी है। डर तो था ही, लेकिन मैं हर दिन काम पर जाती रही और दिन-रात लोगों की सेवा में लगी रही।”
रंजू ने बताया, “कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान, मेरे अस्पताल में ज्यादा केस नहीं आए। लेकिन दूसरी लहर के दौरान स्थिति काफी खराब हो गई। वह कुछ ऐसा मुश्किल समय था, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। घर से निकलते ही डर लगा रहता था कि कहीं आज वापस जाने के बाद, मेरी वजह से मेरा पूरा परिवार खतरे में न आ जाए। इन मुश्किल हालातों में मेरे परिवार ने पूरा साथ दिया और मैं अपना काम करती रही।”
उन्होंने बताया, “पहले मेरी कई बार रात में ड्यूटी लगती थी। अभी भी हफ्ते में एक दिन नाइट शिफ्ट होती है। लेकिन, पहले कई बार आस-पास के लोग रात में घर से बाहर निकलने को लेकर ताना मारते थे कि यह कौन सी नौकरी है, जिसमें न ज्यादा पैसे हैं और न इज्जत, फिर भी रात को काम करना पड़ रहा है। मैं उनकी बातों को नजरअंदाज कर देती थी। लेकिन कोरोना महामारी के बाद, उनकी सोच में बदलाव आया और जब उन्हें पता चला कि मुझे राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित किया जाएगा, तो वे भी खुशी से झूम उठे।”
कहां से मिली समाज सेवा की प्रेरणा?
रंजू ने बताया कि साल 1988 में 12वीं करने के बाद, उनकी शादी हो गई। लेकिन वह अपने जीवन में घरेलू कामकाज के बजाय, कुछ अलग करना चाहती थीं। इसलिए 1998 में जब उन्हें मौका मिला, तो वह भगवानपुर हाट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एएनएम (ANM Ranju Kumari) के रूप में काम करने लगीं।
वह बताती हैं कि बीच में उनका तबादला दरौंदा और हुसैनगंज जैसी जगहों पर भी हुआ। लेकिन बीते 10 वर्षों से वह लगातार भगवानपुर हाट में ही हैं। उन्होंने बताया, "मेरी माँ का एक चचेरा भाई था, जो डॉक्टर बना। मेरी माँ चाहती थी कि मैं भी समाज सेवा से ही जुड़कर काम करूं। मुझे यह राह चुनने की प्रेरणा माँ से ही मिली।”
रंजू ने अपने 22 साल के करियर में कई मुश्किल हालातों का सामना किया है, लेकिन वह कभी हिम्मत नहीं हारती हैं और अपने अनुभव से मरीजों की पूरी मदद करने की कोशिश करती हैं।
एक घटना को याद करते हुए वह कहती हैं, “यह बात साल 2018 की है। रात का वक्त था और हॉस्पिटल में मेरे और एक ममता दीदी को छोड़कर कोई नहीं था। अस्पताल में एक गर्भवती महिला थी, जिसका प्रसव के तुरंत बाद काफी खून गिरने लगा। वह बेहोश हो रही थी और स्थिति काफी नाजुक थी।”
उन्होंने बताया, “लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और अपने अनुभव के आधार पर उन्हें इंजेक्शन लगा दिया और उनका मसाज करते रहे। धीरे-धीरे खून गिरना बंद हुआ और उन्हें राहत मिली। जब तक डॉक्टर आए, सबकुछ सामान्य हो चुका था।”
लोगों को वैक्सीन लगाने के लिए कर रही हैं कड़ी मेहनत
रंजू (ANM Ranju Kumari) बताती हैं कि वह बीते कुछ महीनों से वैक्सीनेशन ड्राइव पर हैं। लेकिन इस दौरान, उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वह कहती हैं, “शुरू में लोगों में वैक्सीन को लेकर काफी डर था और वे इसके लिए आगे नहीं आ रहे थे। लेकिन, हमने कुछ लोगों को समझा-बुझा कर वैक्सीन के लिए राजी कर लिया। इससे लोगों का डर खत्म हुआ। लेकिन आज भी ग्रामीण इलाकों में कुछ लोग डरते हैं। हमारी कोशिश है कि वैक्सीन से कोई भी छूटे न।”
तीन बेटियों के माँ रंजू अंत में कहती हैं, “पहले नर्सों को इज्जत और सम्मान नहीं दिया जाता था। लेकिन कोरोना महामारी में लोगों को इनकी अहमियत समझ में आई। आज हर किसी के मनोबल को ऊंचा रखने की जरूरत है। साथ ही, सभी एक-दूसरे की मदद करते रहें, ताकि अपनत्व का भाव बना रहे।”
हम, मानवता की सेवा में मिसाल कायम करने वाली रंजू कुमारी के जज्बे को सलाम करता हैं!
संपादन: जी एन झा
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