आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले की मशहूर न्यूरोलॉजिस्ट, डॉ. बिंदु मेनन ने ग्रामीण लोगों तक पहुँचने के लिए साल 2015 में 'न्यूरोलॉजी ऑन व्हील्स' की शुरुआत की। उन्होंने एक मिनी बस को न्यूरोलॉजिकल (मस्तिष्क सम्बंधित) मरीजों की ज़रूरत के अनुसार सभी ज़रूरी मेडिकल इक्विपमेंट के साथ तैयार कराया, जिसमें वह आसानी से उनका चेक-अप कर सकें। देश में यह इस तरह का पहला और एकमात्र अभियान है।
महीने में किसी भी एक रविवार को यह वैन आपको किसी न किसी गाँव में दिखेगी, जिसमें बैठकर डॉ. बिंदु मेनन मरीजों का चेक-अप करती हैं। साथ ही, गाँव के सभी लोगों को न्यूरोलॉजिकल बिमारियों के बारे में जागरूक भी करती हैं।
भोपाल के गाँधी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और फिर मुंबई से न्यूरोलॉजी में अपना स्पेशलाइजेशन करने के बाद डॉ. बिंदु ने इंग्लैंड में प्रैक्टिस करती थीं। साल 2000 में वह भारत लौट आयीं और तिरुपति के श्री वेंकटेस्वर इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर काम करने लगीं।
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आठ साल यहाँ अपनी सेवाएं देने के बाद डॉ. बिंदु, नेल्लोर शिफ्ट हो गयीं। फ़िलहाल, वह नेल्लोर के अपोलो स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल्स में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड और प्रोफेसर हैं।
इसके साथ-साथ वह अपनी डॉ. बिंदु मेनन फाउंडेशन भी चला रही हैं जिसके ज़रिये उनका उद्देश्य गरीब और ज़रूरतमंद लोगों तक सही इलाज और देखभाल पहुंचाना है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, "हॉस्पिटल और क्लिनिक तक वही लोग पहुँच पाते हैं जो स्ट्रोक, एपिलेप्सी जैसी न्यूरोलॉजिकल बिमारियों के बारे में जागरूक हैं और वे इसका इलाज करवा सकते हैं। पर ऐसे लोगों का क्याजिनके पास न तो जागरूकता है और न ही इलाज के लिए पैसे हैं। इन लोगों के बारे में सोचकर मैंने साल 2013 में डॉ. बिंदु मेनन फाउंडेशन की शुरूआत की।"
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डॉ. बिंदु मेनन फाउंडेशन के ज़रिये वह फ्री हेल्थकेयर कैंप लगाती हैं, जहां पर आने वाले मरीजों का चेक-अप, सभी तरह के टेस्ट और फिर मेडिकेशन आदि सभी कुछ मुफ्त में किया जाता है। पांच साल पहले जब उन्होंने यह कैंप शुरू किया था तो शुरू में 20 से 25 मरीज हर महीने उनके पास आते थे। पर अब हर महीने वह लगभग 200 मरीजों को देखती हैं।
"इन मरीजों को लगभग एक महीने की दवाई दी जाती हैं। अगर मरीज को आगे भी इलाज की ज़रूरत होती है तो उनके पूरे ठीक होने तक उनका इलाज मुफ्त में किया जाता है," डॉ. मेनन ने बताया।
भले ही, डॉ. बिंदु इन कैंप्स के ज़रिये हर महीने लोगों की मदद कर रही थीं। पर फिर भी उनके मन में एक बात हमेशा रहती कि ये वो लोग हैं जो हमारे पास आ सकते हैं। दूर-दराज के गांवों में रहने वाले लोगों का क्या, जिन्हें उनकी मदद की ज़रूरत है। इसी सोच से 2015 में उन्होंने 'न्यूरोलॉजी ऑन व्हील्स' शुरू किया।
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अपनी इस पहल के लिए उनका उदेश्य बहुत ही स्पष्ट है- 'We reach, we teach, and we treat!' मतलब कि 'हम पहुँचते हैं, हम सिखाते हैं और हम इलाज करते हैं!' उनकी इस पहल ने अब तक 26 गांवों के लोगों की ज़िन्दगी को प्रभवित किया है।
डॉ. मेनन कहती हैं कि उनकी टीम सबसे पहले गाँव का सिलेक्शन करती है कि उन्हें किस गाँव में जाना है। फिर वे गाँव के मुखिया या सरपंच से सम्पर्क करके उन्हें अपने अभियान के बारे में समझाते हैं। साथ में विचार-विमर्श करके महीने के एक रविवार को कैंप के लिए फिक्स किया जाता है।
"जब हमारी तारीख और गाँव फाइनल हो जाता है तो मैं अपने नेटवर्क में जानकारी डाल देती हूँ। ताकि अगर किसी को हमारे साथ वॉलंटियर करना है तो पहले से अप्लाई कर दे। इसलिए मेरी टीम में हमेशा लोगों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है क्योंकि यह वॉलंटियर्स पर निर्भर करता है," उन्होंने बताया।
डॉ. मेनन सबसे पहले गाँव में पहुँचती हैं और फिर शुरू में, 15-20 मिनट के लिए एक अवेयरनेस प्रोग्राम करती हैं। जिसमें सभी गाँव वालों को दिल का दौरा (stroke), मिर्गी (epilepsy), हाइपरटेंशन, माईग्रेन आदि के बारे में ज़रूरी बातें बताई जाती हैं जो कि अक्सर लोगों को पता नहीं होती। मिर्गी को लेकर आज भी भारत में शर्म का नजरिया है, बहुत से मिथक हैं इसके बारे में। जिन्हें अपने जागरूकता अभियान में डॉ. मेनन दूर करती हैं।
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"....जैसे हम उन्हें बताते हैं कि अगर किसी को दौरा पड़े तो उसके हाथ में स्टील की कोई चीज़ नहीं देनी चाहिए, उनके मुंह में कोई कपड़ा नहीं बांधना चाहिए। बहुत बार लोगों को लगता है कि जिनको दौरे पड़ते हैं वे लोग सामान्य जीवन नहीं जी सकते। जबकि ऐसा नहीं है अगर आप रेग्युलर मेडिकेशन लें और डॉक्टर के दिशा-निर्देश मानें तो आप बाकी सबकी तरह ही जी सकते हैं," उन्होंने कहा।
जागरूकता अभियान के बाद, डॉ. मेनन अपनी वैन में मरीजों का चेक-अप शुरू करती हैं। वह गाँव के मुखिया और लोगों की सराहना करते हुए कहती हैं कि उनके कैम्पस में चेक-अप और टेस्ट के लिए सिर्फ न्यूरोलॉजिकल (मस्तिष्क सम्बंधित) मरीज ही आते हैं। जबकि शुरू में उनकी परेशानी यही थी कि डॉक्टर का नाम सुनकर कहीं लोग अपने पेट दर्द, पीठ दर्द आदि की शिकायतें लेकर न आ जाएं। पर उन्हें ख़ुशी होती है जब गाँव के लोग उनका उद्देश्य समझते हैं और उनके पास सिर्फ स्ट्रोक, हाइपरटेंशन, मिर्गी आदि के मरीज आते हैं।
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डॉ. मेनन इन लोगों का बीपी, शुगर प्रोफाइल आदि चेक करती हैं। अगर उन्होंने पहले कहीं दिखाया है तो उसकी हिस्ट्री ली जाती है और फिर मरीजों की स्क्रीनिंग होती है। एक गाँव में अक्सर उनके मरीजों की संख्या 150 तक जाती है। इनमें से बहुतों को सिर्फ शुरूआती देखभाल की ज़रूरत होती है तो बहुत से लोग सीरियस स्टेज पर होते हैं।
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मरीजों को चेक-अप के बाद एक महीने की दवाई दी जाती हैं और जिनका केस बहुत सीरियस नहीं है, उन्हें रेग्युलर तौर पर दवाइयों के लिए प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर जाने की हिदायत दी जाती है। बाकी गंभीर रूप से बीमार लोगों को वह अपने फाउंडेशन के ज़रिये पूरा ट्रीटमेंट देते हैं।
इसके अलावा, डॉ. मेनन अब तक 140 स्कूल और कॉलेज अवेयरनेस कैंप कर चुकी हैं। यहाँ पर छात्र-छात्राओं को एक हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए सजग किया जाता है। साथ ही उन्हें बताया जाता है कि अगर उनके आस-पास किसी को कोई दौरा पड़ जाये तो उन्हें क्या करना चाहिए।
अपने काम की चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, डॉ. मेनन कहती हैं, "सबसे पहली चुनौती तो यही है कि हम अभी भी बहुत काम कर रहे हैं। क्योंकि ऐसे बहुत से और लोग हैं जिन्हें हमारी मदद की ज़रूरत है पर हम वहां तक नहीं पहुँच पाते। इसकी एक वजह फंडिंग है क्योंकि मुझे कोई प्राइवेट फंडिंग नहीं मिल रही है। मैं सभी गतिविधियाँ अपनी जॉब और क्लिनिक की कमाई से ही मैनेज करती हूँ।"
दूसरा, उन्हें बहुत बार लगता है कि जिन भी गांवों में उन्होंने एक बार कैंप लगाया है, उन्हें वहां दोबारा वापस जाना चाहिए। लेकिन फिर उसी समय पर उनके मन में यह भी रहता है कि ज्यादा अच्छा यह है कि वह किसी नए गाँव में जाएं ताकि ज्यादा लोगों को उनकी मदद मिले। इस जद्दोज़हद में कई बार वह फंसी रहती हैं, लेकिन कोई भी उलझन और समस्या उन्हें लोगों की भलाई की राह पर चलने से नहीं रोक पाई है।
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आने वाले समय में वह और ज्यादा लोगों तक पहुंचकर उनकी ज़िन्दगी को सकारात्मक दिशा देना चाहती हैं। इसके लिए वह बताती हैं, "हमने लोगों के लिए एक टोल फ्री नंबर 1800 102 0237 जारी किया है। इस पर कॉल करने पर लोगों को स्ट्रोक, एपिलेप्सी और माईग्रेन के बारे में एक रिकॉर्डड अनाउंसमेंट सुनाई देती है। इसमें वे इन बिमारियों से संबंधित सामान्य जानकारी सुन सकते हैं ताकि उन्हें पता हो कि इमरजेंसी में क्या करना है? यह अनाउंसमेंट हिंदी, तेलुगु और अंग्रेजी, तीन भाषाओं में उपलब्ध है।"
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इसके अलावा, उन्होंने एंड्राइड फ़ोन के लिए एक एप्लीकेशन- एपिलेप्सी हेल्प भी लॉन्च किया है। यह एप्लीकेशन हिंदी, तेलुगु और अंग्रेजी में उपलब्ध है। मिर्गी का कोई भी मरीज इसे डाउनलोड करके अपना रजिस्ट्रेशन कर सकता है। वे अपनी सभी रिपोर्ट और डाटा इसमें सेव कर सकते हैं। इससे इमरजेंसी की स्थिति में कभी भी कहीं भी उनका डाटा वे डॉक्टर को दिखा सकते हैं।
"इस एप में एक खास फीचर है अलर्ट सिस्टम। बहुत बार मरीज को आभास हो जाता है कि उन्हें दौरा पड़ने वाला है और इस स्थिति में वे बस एक क्लिक से अपने किसी भी फैमिली मेम्बर को अलर्ट भेज सकते हैं।"
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डॉ. बिंदु आने वाले समय में गांवों के मरीजों के साथ अपने फॉलो-अप सिस्टम को बेहतर करने के लिए काम करना चाहती हैं। वह अंत में कहती हैं,
"अगर मेरी कहानी पढ़कर किसी एक को भी लोगों के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिलती है तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। क्योंकि ज़रूरी नहीं कि आप बहुत बड़ा कुछ करें अगर आप दिन में एक इन्सान की ज़िन्दगी के लिए भी कुछ अच्छा करते हैं तो काफी है।"
यदि आपको इस कहानी ने प्रभावित किया और आप डॉ. बिंदु मेनन से सम्पर्क करना चाहते हैं तो उनकी वेबसाइट यहाँ देख सकते हैं!
संपादन - मानबी कटोच