/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2022/02/Eco-friendly-traditional-house-of-Dinesh-Kumar-in-Thrissur-Kerala-1644406861.jpg)
पत्थरों से बना घर, मिट्टी से लिपी-पुती दीवारें, बड़ा सा आंगन, छत पर लगी जाली और उससे आती धूप! न जाने ऐसी और कितनी खासियतें हैं, जो हमें पुराने समय के घरों (Traditional houses) की याद दिला जाती हैं। केरल में रहनेवाले दिनेश कुमार जब अपना घर बनाने लगे, तो उनके जेहन में भी इस तरह की बहुत सी यादें कुलांचे मार रही थीं। वह चाहते थे कि उनका घर पारंपरिक वास्तुकला के अनुसार बने, जो दिखने में सुंदर हो और आज के जमाने की हर सुविधा उसके अंदर मौजूद हो। उन्होंने काफी रिसर्च और मेहनत से अपनी इस चाहत को पूरा कर ही लिया। आज उनके इस शानदार घर को देखकर लोग अनायास ही कह उठते हैं- वाह! क्या बात है।
बचपन की यादें और इको फ्रेंडली घर
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2022/01/Dinesh-with-his-family-1643440534.jpg)
दिनेश ने बताया, “बचपन में, मैं जिस तरह के घरों को देखता आया था, हमेशा से वैसे ही एक घर की चाह थी। मैं पारंपरिक वास्तुकला (Traditional house) के अनुसार अपना घर तो बनाना चाहता था, लेकिन सभी सुविधाओं के साथ! दरअसल, पुराने समय में जिस तरीके से घरों को पर्यावरण के अनुकूल बनाया जाता था, हम उस तकनीक को अपनाना चाहते थे।”
दिनेश पेशे से खुद भी एक इंजीनियर हैं, जो त्रिशूर निगम में एक सब-इंजीनियर के रूप में काम करते हैं। वह किसी ऐसे शख्स को ढूंढ रहे थे, जो उनकी पुरानी यादों को नए डिजाइन के साथ जीवंत कर सके। इसके लिए उन्होंने ग्रामीण विकास केंद्र (COSTFORD) के लिए काम करने वाले एक डिजाइनर और इंजीनियर शांतिलाल से संपर्क किया, जिन्होंने ऐसी कई पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं का निर्माण किया था।
केरल की पारंपरिक वास्तुकला का नमूना
दिनेश के सपनों का यह इको फ्रंडली घर, उनके पैतृक घर के करीब मेलूर में बना है। इसे पर्यावरण के अनुकूल और देशी तरीके से केरल की पारंपरिक वास्तुकला (Traditional house) के आधार पर डिजाइन किया गया है। 300 गज में बने दिनेश के घर में चार बेडरूम, एक किचन, पूजा घर, डाइनिंग रूम, बालकनी और मल्टी यूटिलिटी स्पेस है।
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2022/01/Untitled-design-28-1643443455.jpg)
शांति लाल कहते हैं, “दीवारों को बनाने के लिए लेटराइट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। प्राकृतिक रूप से बने ये पत्थर, सदियों से केरल की पारंपरिक वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा, “हमने सीमेंट या मोर्टार की बजाय बालू और चूने के मिश्रण से इन पत्थरों को दीवार में चुना है। नदी की रेत और मिट्टी को हमने बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया। यहां तक कि परिसर की दीवारें भी हमने लेटराइट पत्थरों से ही बनाई हैं।”
चावल की भूसी का प्लास्टर
शांति लाल के अनुसार, “इस पारंपरिक घर (Traditional house) की अधिकांश दीवारों पर सीमेंट की जगह मिट्टी का प्लास्टर किया है। इसे मिट्टी के साथ कई जैविक और प्राकृतिक चीजों, जैसे- चावल की भूसी, गुड़, मेथी, 'कडुक्का' (टर्मिनलिया चेबुला) और चूना मिलाकर तैयार किया गया है। ये सभी दीवारों पर एक मजबूत प्लास्टर के रूप में काम करते हैं। वहीं 'कडुक्का' दीवारों को कीड़ों और दीमक से बचाए रखता है।” इससे न केवल दीवारों को एक नेचुरल लुक मिला, बल्कि वे बेहद आकर्षक भी दिखने लगीं।
क्या यह प्लास्टर, किचन और बाथरूम जैसी नमी वाली जगहों पर भी काम करता है? शांति लाल कहते हैं, “नहीं। इन जगहों पर हमने सीमेंट प्लास्टरिंग का इस्तेमाल किया है, ताकि दीवार को सीलन से बचाया जा सके।”
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2022/01/Untitled-design-27-1643443213.jpg)
यह पारंपरिक घर (Traditional house) रहता है ठंडा
घर को सुंदर दिखने के लिए कुछ जगहों को बिना प्लास्टर के भी छोड़ा गया है। साथ ही निर्माण में प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करने के अलावा, फिलर स्लैब सहित कई टिकाऊ और लागत प्रभावी तकनीकों का भी इस्तेमाल किया गया है। वह कहते हैं, “कंक्रीट के बीच में मिट्टी से बनी टाइल्स लगाई गई हैं। इससे छत पर पड़ने वाला भार तो कम हुआ ही, साथ ही बेहतर थर्मल इन्सुलेशन भी मिल गया। इसमें लगी टाइल्स नई नहीं थीं, इन्हें रियूज़ किया गया था।”
पारंपरिक तरीकों से बनाए गए घर, कांक्रीट के घरों की तुलना में ठंडे होते हैं और इसका एहसास आपको घर में घुसते ही हो जाएगा। दिनेश घर में ज्यादातर समय पंखों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। पर्याप्त रोशनी के लिए, घर के बीचों-बीच बने आंगन में एक बड़ा से जाल लगा है और उसके ऊपर कांच की छत। इसके अलावा, घर को साधारण पेंट के बजाय वॉटर बेस्ड पेंट से रंगा गया है, जो एक चमकदार फिनिश देता है।
'कूथम्बलम' के मॉडल में बनी बालकनी
घर का एक और हिस्सा है, जो बेहद ही खूबसूरत है, वह है इसकी बालकनी। इसे केरल के एक पारंपरिक मंदिर के थिएटर ढांचे से प्रभावित होकर तैयार किया गया है। शांतिलाल कहते हैं, “इसे 'कूथम्बलम' के मॉडल के आधार पर डिज़ाइन किया गया है। यह पारंपरिक मंदिर थिएटर है, जहां कर्मकांड कला के एक रूप 'कूथू' का मंचन किया जाता है।"
बालकनी में लगी ग्रिल लकड़ी के बजाय स्टील से बनी है। लेकिन उसे कुछ इस तरह से पेंट किया गया है कि वह लकड़ी जैसी ही नजर आती है। दिनेश की पत्नी और दो बच्चे बालकनी को स्टडी एरिया और यूटिलिटी स्पेस के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
35 लाख में बनकर तैयार हुआ यह ट्रेडिशनल घर (Traditional house)
/hindi-betterindia/media/post_attachments/uploads/2022/01/Untitled-design-26-1-1643442896.jpg)
इस घर की खिड़कियों, दरवाजों और अन्य हिस्सों में लगी लकड़ियों को मैसूर से मंगाया गया है। ये सब पुरानी हैं, जिन्हें नया रूप-रंग देकर हमने अपने घर में फिर से इस्तेमाल किया है। इस घर की रसोई काफी बड़ी है। इसे मल्टीपल फिनिश के साथ, आधुनिक शैली में बनाया गया है। फर्श पर विट्रीफाइड टाइल्स लगाई गई हैं।
दिनेश का यह खूबसूरत घर, पॉकेट फ्रेंडली बजट में तैयार हो गया है। इसे बनाने में कुल 35 लाख रुपये लगे हैं। वह कहते हैं, “मजदूरी और कच्चे माल समेत इसकी लागत ज्यादा नहीं है। अगर आप इसी आकार के एक कॉन्क्रीट के घर का निर्माण करते हैं, तो वह काफी महंगा पड़ जाएगा।”
मूल लेखः अंजलि कृष्णन
संपादनः अर्चना दुबे
यह भी पढ़ेंः सदियों से भारत में बन रहे हैं Sustainable Homes, गुजरात के ये पारंपरिक घर हैं गवाह