नौकरी छोड़, दिव्यांग किसान ने शुरू की मशरूम की खेती, मुनाफे के साथ मिले कई अवॉर्ड!

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दो साल की उम्र में पोलियो से ग्रसित हो चुके मांड्या निवासी जे. रामकृष्ण ने 300 किसानों को कम लागत वाले व्यवसाय शुरू करने में मदद की है।

कुछ अलग करने की चाह इंसान को हमेशा नई उर्जा से भरकर रखती है। आज की कहानी भी ऐसे ही एक व्यक्ति की है जिन्होनें अपनी नौकरी छोड़कर खेती-किसानी की ओर रुख किया।

कर्नाटक के मांड्या के रहने वाले जे. रामकृष्ण ने 2013 में कर्नाटक के प्राथमिक शिक्षा विभाग में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर तैनात थे। मन में हमेशा कुछ अलग करने की चाह थी, इसलिए नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने मशरूम की खेती शुरू कर दी।

मात्रा 2 साल की उम्र में पोलियो से ग्रसित होने वाले रामकृष्ण बताते हैं, “मांड्या में हर व्यक्ति एक किसान है लेकिन उस समय मशरूम की खेती करने वालों की संख्या ज्यादा नहीं थी। मुझे कई आर्टिकल पढ़ने के बाद उनमें दिलचस्पी हुई। कई लेखों से मुझे जानकारी हुई कि मशरूम में ऐसे कई औषधीय गुण पाए जाते हैं जो आयरन की कमी और हृदय रोगों से बचाने में मदद करते हैं।”

मशरूम में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के बारे में पढ़ने के बाद उन्होंने अपने घर में ओएस्टर मशरूम की खेती शुरू की। अगले कई महीनों में उन्होंने मशरूम की खेती में काम आने वाली कई तकनीकों को सीखा और अपने ही गाँव में रहने वाले अन्य उत्पादकों से संपर्क कर उन्हें भी खेती करने की सलाद दी।

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इन चर्चाओं के दौरान उन्हें मशरूम की खेती के दौरान सामने आने वाली दो मुख्य समस्याओं के बारे में पता चला:

1- मशरूम पर कवक जैसा दिखने वाला माइसेलियम (Mycelium) नामक एक बैक्टीरिया लगता है जो शुरूआत के 10 दिनों के भीतर ही ऐसी कई बीमारियों को दावत देता है, जिनसे मशरूम की वृद्धि रूक जाती है। बीमारी को फैलने से रोकने के लिए इस एक फंगस के चारों ओर 100 गज की दूरी पर सफाई करते रहना चाहिए।

2- खेत से मशरूम की कटाई होने के बाद उसे 10 घंटे के भीतर बेचना पड़ता था।

रामकृष्ण बताते हैं, “कई महीनों के प्रयोग के बाद मैंने मशरूम की कटाई की विधि में महारत हासिल कर ली। अपनी निजी बचत को निवेश के रूप में इस्तेमाल करते हुए ह्यूमिडिफायर के लिए मशीनरी साथ में रखना शुरु कर दिया, जिससे कमरे का तापमान सही बना रहे। मैंने बैग में मशरूम की खेती करने में महारत हासिल की और इससे मुझे यह समझ में आया कि बैग में मशरूम लगाने से शुरूआत के 10 दिनों तक कोई बीमारी नहीं लगती है। इसके बाद एक हफ्ते तक नियमित अंतराल पर सिंचाई की जरूरत होती है। दूसरी बात यह कि कोई मशरूम बेकार न जाए, इसके लिए मैंने सूखे मशरूम के पाउडर का इस्तेमाल कई तरह के बाई-प्रोडक्ट बनाने में किया।”

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वह सूखे मशरूम पाउडर से पापड़, बिस्कुट, रसम पाउडर और अन्य उत्पादों सहित 20 तरह की दूसरी वस्तुएं बनाने में कामयाब रहे। ये उत्पाद पूरे कर्नाटक में HOPCOMS स्टोर, सुपरमार्केट और अन्य ऑर्गेनिक स्टोर पर बेचे जाते हैं। उत्पादों को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) और श्रम कल्याण विभाग द्वारा मंजूरी प्राप्त है।

ओएस्टर मशरूम की खेती करने और इन्हें बेचने के अलावा वह ‘इंस्टीट्यूट ऑफ मशरूम साइंस’ नामक एक संस्था भी चलाते हैं। इसकी स्थापना वर्ष 2013 में मशरूम की खेती करने के इच्छुक किसानों को शिक्षित करने के उद्देश्य से की गई थी। यह रेडी-टू-ग्रो मशरूम किट का एक उत्पादन केंद्र भी है, जो किसानों को प्रति माह न्यूनतम 3000 रुपये की आय और अन्य उत्पादों की गारंटी देता है।

मशरूम से हर महीने स्थिर आय की गारंटी

रामकृष्ण इस सब्जी के पोषण और आय के बारे में जागरूकता पैदा करना चाहते थे इसलिए उन्होंने दूसरों के साथ बैग में उगने वाले ओएस्टर मशरूम की तकनीक को साझा करने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने किसानों के लिए एक मासिक आय योजना प्रस्तावित की है, जिसे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (संजीवनी) द्वारा अनुमोदित किया गया है। इस योजना के तहत किसान कम लागत पर तैयार मशरूम के बैग खरीद सकते हैं। बैग्स में मायसेलियम कवक पहले से ही मौजूद है जो शुरूआती 10 दिनों तक इन्हें बीमारियों से बचाने में मदद करेगा।

कर्नाटक के मंड्या, तुमकुरु, मैसूर और अन्य जिलों के 300 से अधिक किसानों ने उनकी संस्था के मार्गदर्शन में मशरूम की खेती शुरू की है। 

“मशरूम के व्यवसाय में हुए मुनाफे और ग्राम पंचायतों की मदद से मैंने मैसूरु, तुमकुर और कई अन्य जिलों में मशरूम फार्मिंग यूनिट स्थापित की। वहाँ से मशरूम की खेती करने के इच्छुक किसानों को मशरूम बैग सप्लाई किया जाता है। वे 10 मशरूम बैग की फसल बेचकर 3000 रुपये का मुनाफा कमा सकते हैं। इसे सीधे लोकल मार्केट, दुकानों और होटलों में बेचा जाता है। रामकृष्ण कहते हैं “जो उपज वे नहीं बेच पाते हैं उन्हें एक निर्धारित दाम पर वापस खरीदा जाता है और उस मशरूम का इस्तेमाल दूसरी वस्तुएं बनाने में किया जाता है।”

2017 में रामकृष्ण को कर्नाटक कौशल विकास निगम (KSDC) द्वारा सम्मानित किया गया था। उनकी पहल का समर्थन करने के लिए उन्होंने उन्हें राज्य में चारों ओर घूमने और मशरूम की खेती के इस तरीके को बढ़ावा देने के लिए एक वैन ऑफर किया। 2018 में विजय कर्नाटक अखबार ने उन्हें ‘सुपरस्टार किसान’ के खिताब और अवॉर्ड से सम्मानित किया।

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रामकृष्ण याद करते हैं, “2019 में 300 से अधिक किसान, बैग के इस्तेमाल से मशरूम की खेती कर रहे थे। लेकिन मार्च 2020 में देशभर में लॉकडाउन ने सभी कार्य रुक गए।”

अब उन्होंने फिर से काम शुरू कर दिया है और वह आने वाले हफ्तों में किसानों को मशरूम-किट की आपूर्ति शुरू कर देंगे।

रामकृष्ण कहते हैं, “बिस्कुट और पापड़ जैसे बाइ-प्रोडक्ट भी अगले दो सप्ताह से दुकानों में उपलब्ध होंगे। मैं इसे बिग बॉस्केट और अन्य ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर भी बेचूँगा।” उनका मिशन कर्नाटक में 5,000 से अधिक किसानों के बीच अपनी मशरूम की खेती की तकनीक का विस्तार करना है।

मूल लेख-

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