ये दृश्य न तो किसी बेटी के ससुराल जाने का था, न नंदा देवी राजजात यात्रा में नंदा की डोली का कैलाश विदा होने का। बल्कि ये दृश्य एक शिक्षक की विदाई समारोह का था जिसमें लोग इनसे गले मिलकर रो रहे थे। क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग, सबकी आंखों में आँसू थे। सबको अपने इस शिक्षक के तबादला हो जाने पर यहाँ से चले जाने का दुःख था।
विदाई की यह कहानी है रूद्रप्रयाग जनपद निवासी आशीष डंगवाल की, जिनका तबादला टिहरी जनपद के गढखेत में प्रवक्ता पद पर होने के बाद उनके विदाई समारोह में एक-दो नहीं बल्कि पूरी केलसू घाटी के 7 गांवों के ग्रामीण और स्कूल के बच्चे फफककर रोए थे।
हर किसी की आँखों में आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी। शायद ही अब उन्हें उनके जैसे शिक्षक मिल पाए।
सीमांत जनपद उत्तरकाशी के केलसू घाटी के राजकीय इंटर कॉलेज, भंकोली में तैनात शिक्षक आशीष डंगवाल की जो विदाई हुई वैसी विदाई हर कोई शिक्षक अपने लिए चाहेगा। फूल माला और ढोल दमाऊं के संग कभी न भूलने वाली विदाई।
अपने विदाई समारोह के बाद आशीष ने फेसबुक पर एक मार्मिक पोस्ट शेयर की। इस फेसबुक पोस्ट और विदाई समारोह की तस्वीरें देखकर भला किसकी आंखों में आँसू नहीं आएंगे।
“मेरी प्यारी केलसू घाटी, आपके प्यार, आपके लगाव, आपके सम्मान, आपके अपनेपन के आगे, मेरे हर एक शब्द फीके हैं। सरकारी आदेश के सामने मेरी मजबूरी थी मुझे यहां से जाना पड़ा, मुझे इस बात का बहुत दुःख है। आपके साथ बिताए 3 वर्ष मेरे लिए अविस्मरणीय है। भंकोली, नौगांव, अगौड़ा, दंदालका, शेकू, गजोली, ढासड़ा के समस्त माताओं, बहनों, बुजुर्गों, युवाओं ने जो स्नेह बीते वर्षों में मुझे दिया, मैं जन्मजन्मांतर के लिए आपका ऋणी हो गया हूँ। मेरे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन एक वादा है आपसे कि केलसू घाटी हमेशा के लिए अब मेरा दूसरा घर रहेगा। आपका यह बेटा लौट कर आएगा। आप सब लोगों का तहेदिल से शुक्रिया। मेरे प्यारे बच्चों हमेशा मुस्कुराते रहना। आप लोगों की बहुत याद आएगी।”

आशीष तीन सालों से केलसू घाटी के अतिदूरस्थ भंकोली में तैनात थे जो आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। जहां आज लोग दुर्गम स्थानों पर नौकरी नहीं करना चाहते हैं वहीं आशीष ने दुर्गम को ही अपनी कर्मस्थली बना डाला और उसे अपनी मेहनत से सींचा और संवारा।
आशीष ने सेवा की नई परिभाषा गढ़ी है जो शिक्षा महकमे सहित अन्य सरकारी सेवकों के लिए नज़ीर है, उन्होंने एक मिसाल पेश की है। एक ऐसी मिसाल जिसमें उनके काम और सेवा भाव से गाँव के लोग इतने प्रेरित हुए कि उनको गाँव से जाने ही नहीं देना चाहते थे।
आप सोच रहे होंगे कि आखिर आशीष ने गाँव में ऐसे कौनसे काम किए जिससे ग्रामीणों के लिए यह शिक्षक किसी देवता से कम नहीं थे।
आशीष भंकोली में ही कमरा किराये पर लेकर रहा करते थे और वे छुट्टियों में भी अपने घर नहीं जाते थे। वे हर शाम बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाते थे। जरूरतमंद बच्चों को अलग से भी पढ़ाते थे। उन्होंने स्कूल के बच्चों में शिक्षा के प्रति रूचि उत्पन्न की और वहां के लोगों को शिक्षा का महत्व बताया। बच्चों और ग्रामीणों को शिक्षा से जोड़ा। बच्चों के मन से शिक्षा के प्रति डर को दूर किया और शिक्षा को बोझ नहीं बल्कि सरल बनाने की कोशिश की। वे बच्चों को पढ़ाने के बाद उनसे फीडबैक भी लेते थे और बच्चों से विषयों से संबंधित टाॅपिक पर समूह चर्चा करवाते थे। उन्होंने बच्चों की गुणवत्ता परक और कम्प्यूटर शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया।
आशीष ने लोगों का रुझान सरकारी स्कूल की तरफ बढ़ाने का भी काम किया।
आशीष को पूर्व प्रधानाचार्य आशीष चंद्र रमोला ने सबसे ज्यादा प्रेरित किया। जिनकी वजह से ही वे स्कूल के बच्चों को बेहतर शिक्षा देने में सफल हुए। जब आशीष की पहली पोस्टिंग राजकीय इंटर कॉलेज, भंकोली में हुई तो उस समय वहां पहुँचने के लिए सड़क नहीं थी, लेकिन आज उनके प्रयासों से वहां सड़क बन चुकी है। उनके इन नेक कामों के चलते उत्तराखंड सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया।
आज के दौर में ऐसी विदाई हर किसी को नसीब नहीं होती है। आशीष डंगवाल को हमारी ओर से ढेरों बधाइयां। आपने गुरू शिष्य परंपरा का निर्वहन कर समाज में एक मिसाल पेश की है। धन्य है वह स्कूल जो आपके जैसे गुरूओं की कर्मभूमि बनेगी।
अगर आप आशीष से संपर्क करना चाहते हैं तो इस नंबर 9897777708 पर बात कर सकते हैं। आप उनसे उनके फेसबुक से भी जुड़ सकते हैं।
संपादन – भगवती लाल तेली
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