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भारत की पहचान हमेशा से यहां की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को ही माना जाता है। वैसे तो कई मायनों में हमारा देश प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है और दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना रहा है। लेकिन चाँद और मंगल तक पहुंच जाने के बाद भी अगर भारत को कोई चीज़ खास बनाती है, तो वह है यहां के लोग, जो आज भी अपनी संस्कृति को संभालकर सहेज रहे हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं बीजापुर कर्नाटक के राम सिंह राजपूत भी। यूं तो वह पेशे से एक व्यापारी हैं और 3R गारमेंट्स नाम से कपड़े की एक अनोखी दुकान चलाते हैं।अनोखी इसलिए, क्योंकि संस्कृत विषय से अपने लगाव के कारण वह खुद तो संस्कृत बोलते ही हैं, साथ ही उन्होंने अपने परिवारवालों और उनकी दुकान में काम करने वाले 50 लोगों को भी संस्कृत सिखा दी है।
हाल ही में उनकी दुकान में फर्राटेदार संस्कृत में वार्तालाप करते लोगों का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया। द बेटर इंडिया से बात करते हुए राम सिंह के बेटे राहुल बताते हैं, “मेरे पिता ने 20 साल पहले इस तरह की प्रथा की शुरुआत की थी और वह आज तक जारी है। हमारी दुकान में सभी लोग आपस में बात करने के लिए संस्कृत का ही उपयोग करते हैं। इतना ही नहीं मेरे पिता ने और भी कई लोगों को संस्कृत सिखाई है।"
दुकान खुलने से पहले लगती है संस्कृत की पाठशाला
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संस्कृत से इस लगाव के बारे में पूछने पर राहुल कहते हैं कि सालों पहले जहां हम रहते थे, वहां एक आश्रम हुआ करता था। राम सिंह ने वहीं से संस्कृत सीखी, जिसके बाद संस्कृत भाषा पहले घर तक आई और फिर उनके दुकान तक। राम सिंह को इस वैदिक भाषा से इतना लगाव हो गया कि उन्होंने लोगों को फ्री में ही संस्कृत सिखना शुरू कर दिया।
अब तो उनकी दुकान ही एक संस्कृत स्कूल बन गई है। राहुल ने बताया, “हमारे यहां हर दिन दुकान खुलने से पहले 10 बजे से 11 बजे तक संस्कृत की क्लास लगती है। इसके बाद सभी काम करना शुरू करते हैं। हमारे पास जितने भी लोग आते हैं, सभी समय के साथ संस्कृत बोलना सीख जाते हैं।"
राम सिंह कोशिश करते हैं कि दुकान के सभी स्टाफ भी अपनी-अपनी तरफ से लोगों को संस्कृत सिखाएं। दुकान में आने वाले ग्राहकों को भी वह संस्कृत के आसान शब्द सिखाते रहते हैं। इस तरह से उन्होंने आस-पास के कई और लोगों, दुकान में काम के लिए आने वाले इलेक्ट्रीशियन, बढ़ई मिस्त्री आदि को भी संस्कृत भाषा से जोड़ दिया है।
आज के ज़माने में जब हर जगह अंग्रेजी जैसी वैश्विक भाषा के कारण हमारी स्थानीय भाषा भी विलुप्त होती जा रही है। ऐसे में राम सिंह जैसे लोग वैदिक भाषा संस्कृत का उपयोग करके एक अनोखी मिसाल कायम करते हैं। उनकी दुकान में जाकर आपको आज भी वैदिक काल में चल रहे ऋषि मुनियों के आश्रम जैसा अनुभव मिलता है।
संपादनः अर्चना दुबे
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