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सूखे से जूझता गाँव देख शहर से लौटीं, 15000 बच्चों को सिखाया सीड बॉल बनाना और खड़ा किया जंगल

आज से करीब छह साल पहले, महाराष्ट्र के लातूर जिले में भयानक सूखा पड़ा था। उद्गीर के हालात तो और भी ज्यादा ख़राब थे। वहां कई दिनों तक पानी नहीं आया। यह देखकर उद्गीर की अदिति पाटिल ने अपने जिले को हरा-भरा बनाने का संकल्प लिया।

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After seeing Latur, Maharashtra suffering from drought, Aditi Patil taught 15000 children to make seed balls

आज से करीब छह साल पहले, महाराष्ट्र के लातूर जिले में भयानक सूखा पड़ा था। उद्गीर के हालात तो और भी ज्यादा ख़राब थे। वहां कई दिनों तक पानी नहीं आया। हालात इस कदर बिगड़े कि वहां टैंकरों से पानी की सप्लाई की गई। यह देखकर उद्गीर की अदिति पाटिल बेहद दुखी हुईं और उन्होंने सीडबॉल के ज़रिए अपने जिले को हरा-भरा बनाने का संकल्प लिया।

अदिति ने 2018 में सीडबॉल अभियान शुरू किया। चार साल के इस सफर में वह अपनी संस्था 'कारवां' का मजबूती से नेतृत्व करती आ रहीं हैं और अपने साथियों के साथ मिलकर दो मिनी जंगल भी उगा चुकी हैं। इन जंगल में 1200 से अधिक पेड़ हैं। वहीं, लातूर जिले के 150 से अधिक स्कूलों में उन्होंने 15 हजार से अधिक बच्चों को सीडबॉल अभियान से जोड़ा है, ताकि हरियाली का कारवां चलता रहे।

अदिति ने द बेटर इंडिया को बताया कि उन्होंने पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोगों के साथ मिलकर लातूर को सूखे से बचाने के लिए उद्गीर में साल 2018 में 'कारवां फाउंडेशन' की स्थापना की। वह बताती हैं, "मराठवाड़ा का यह जिला प्राकृतिक आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील है। हमने पाया कि यहां फॉरेस्ट कवर केवल एक फीसदी रह गया है।"

सीडबॉल बनाने का आइडिया कहां से आया?

Children learning to make seed ball.
Children learning to make seed ball.

प्राकृतिक संसाधनों का ठीक से प्रबंधन न होना, लातूर की बड़ी समस्या बनकर उभरा। अदिति ने बताया, "हमें हरियाली को बचाना था, ताकि पानी का संकट दूर हो सके। यहां की समस्याओं से निपटने के लिए एक ऐसे समाधान की ज़रूरत थी, जो आर्थिक रूप से बोझ भी न बने और यहां के ईको सिस्टम को भी बचाए रखे।"

वह आगे कहती हैं, "हमने अक्सर मानसूनी सीजन में लोगों को पौधरोपण अभियान चलाते देखा था। हम भी ऐसा अभियान चला सकते थे। लेकिन यह बेहद महंगा पड़ने वाला सौदा था। दूसरे बड़े लेवल पर इसे अंजाम देने के लिए हमें स्टेट मशीनरी की हेल्प की ज़रूरत पड़ती, जो कि बहुत आसान नहीं था। ऐसे में सीडबॉल का विकल्प हमारे सामने आया। हमने इस बारे में पहले पढ़ा भी था। हमें यह हरियाली बचाने और बढ़ाने का एक सुरक्षित व सस्ता उपाय लगा।

अदिति बताती हैं कि सीडबॉल, जापानी वैज्ञानिक मासानोबू फुकुओका की दी गई एक जापानी तकनीक है। इसमें सब्जियों और फलों के बीजों को इकट्ठा करके मिट्टी की एक बॉल बनाई जाती है। इसके बाद, इस ऑर्गेनिक बॉल को संबंधित इलाके में फेंक दिया जाता है।

सीडबॉल कैसे तैयार करते हैं?

Aditi Patil teaching how to make seed ball
Aditi Patil teaching how to make seed ball

अदिति बताती हैं कि एक सीडबॉल को तैयार करने के लिए मिट्टी के दो और खाद का एक हिस्सा लिया जाता है। फिर इसमें बीज डालते हैं और पानी मिलाकर गुलाब जामुन जैसा आकार दे दिया जाता है। इसके बाद इसे दो दिन छांव में सुखाया जाता है। सुखाने के बाद, इसे ऐसी जगहों पर फेंक दिया जाता है, जहां हम हरियाली चाहते हैं।

जैसे ही बारिश होती है, यह सीडबॉल खुल जाता है। बीज को पानी मिलता है तो वह पनप जाता है। इस तरह बगैर पौधे रोपे बड़ी संख्या में एक साथ पौधे उगाना संभव हो जाता है। सीडबॉल की सबसे अच्छी बात यह है कि इसके भीतर बीज सुरक्षित रहता है। इसे चिड़िया वगैरह नहीं खा पातीं, जिससे बीज को पनपने और धरती को हरा-भरा बनाने में मदद मिलती है

एक सीडबॉल बनाने पर कितना खर्च आता है? इस सवाल पर अदिति कहती हैं कि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एक सीडबॉल बनाने में अधिक से अधिक 10 रुपए का खर्च आता है। एक अच्छी चॉकलेट या आइसक्रीम भी इससे अधिक पैसे में आती है। यही वजह है कि अधिक से अधिक लोग सीडबॉल के ज़रिए पर्यावरण बचाने की मुहिम में साथ आ रहे हैं।

तैयार किए पांच सीड बैंक

Aditi teaching to make seed ball
Aditi teaching to make seed ball

अदिति और उनके साथियों ने मिलकर पांच सीड बैंक भी तैयार किए हैं। इनमें फलों और सब्जियों के बीजों का संग्रहण किया जाता है, ताकि उनसे सीडबॉल तैयार की जा सकें। अदिति और उनके साथी अभी तक 60 हज़ार से भी अधिक सीडबॉल तैयार कर चुके हैं, जबकि दो लाख से भी अधिक बीजों का उन्होंने संग्रहण किया है।

अदिति ने साथियों के साथ मिलकर जो मिनी फॉरेस्ट तैयार किए हैं, उनमें मियावाकी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसमें पौधरोपण वाले क्षेत्रफल में दो फुट मिट्टी हटाने के बाद वहां कंपोस्ट, भूसी, गुड़ व दूसरी जरूरी सामग्री मिलाई जाती है। इसके बाद पौधरोपण किया जाता है। उचित देखभाल के बाद ये पौधे तीन साल में एक जंगल का रूप ले लेते हैं।

इसकी खास बात यह है कि इसमें पौधों को कम दूरी पर लगाया जाता है, ताकि पौधे सूर्य की रोशनी हासिल कर ऊपर की ओर बढ़ते रहें। इसके तहत तीन प्रजातियों के पौधे लगाए जाते हैं, जिनकी ऊंचाई पेड़ बनने पर अलग-अलग होती है। इसमें एक पेड़ ऊंचाई वाला, दूसरा कम ऊंचाई वाला और तीसरा घनी छाया वाला पौधा चुना जाता है। 

बच्चों को सीडबॉल बनाना सिखाने के साथ, चला रहीं ऑनलाइन वर्कशॉप

Karwan team after miyawaki technique plantation
Karwan team after miyawaki technique plantation

उद्गीर में रहनेवाली करीब 30 वर्षीया अदिति ने बेशक लॉ की पढ़ाई की है, लेकिन उससे अधिक फोकस उनका पर्यावरण को बचाने में है। वह अपने साथियों के साथ, बच्चों को खेल खेल में सीडबॉल बनाना सिखाती हैं। बच्चों को इस अभियान से जोड़ने का मकसद यह है कि बच्चे शुरू से ही अपने पर्यावरण के प्रति सचेत हों और इसके संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों का हिस्सा बनें।

अदिति इस बात को अच्छी तरह समझती हैं कि भविष्य का जिम्मा इसी पीढ़ी के कंधों पर होगा, इसीलिए वह कई ऑनलाइन वर्कशॉप भी चला रही हैं। खासतौर पर कोरोना महामारी के बीच दो सालों में जब स्कूल बंद रहे और उनका बच्चों से सीधा संपर्क नहीं रहा, तो उन्होंने ऑनलाइन तरीके से सीडबॉल के प्रति लोगों को जागरूक किया।

उन्हें लोगों को ऑनलाइन ही सीडबॉल बनाना सिखाया। उनकी संस्था ने 725 किलोमीटर से अधिक की साइकिल यात्रा का आयोजन भी किया, ताकि वे आम जन को भी सीडबॉल अभियान के प्रति जागरूक कर सकें। अदिति का कहना, "पर्यावरण बचेगा, तभी तो हम सब बचेंगे।"

संपादनः अर्चना दुबे

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