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Tokyo Paralympics: 10 भारतीय खिलाड़ी, जिन्होंने अपनी कमजोरी को बनाई ताकत

Struggle and success stories of para Athletes in Tokyo Paralympic 2021

टोक्यो ओलंपिक का बुखार अभी उतरा भी नहीं था कि 25 अगस्त से शुरू हो चुके टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympic 2021) खेलों की गूंज हर ओर सुनाई देने लगी है। निशानेबाजी हो, कुश्ती हो या फिर बैडमिंटन पैरालंपिक खेलों से जुड़ा एथलीट हर मायने में सबसे अलग है।

उनकी सोच और दृढ़ इच्छाशक्ति, उन्हें साधारण लोगों से अलग करती है। शारीरिक बाधाओं को पीछे छोड़, कैसे वे अपने दम-खम पर आगे निकल गए? कौन हैं ये खिलाड़ी और क्या है इनकी खासियत? कैसा रहा उनका अब तक का सफर? आइए जानते हैं

1. पलक कोहली- पैरा बैडमिंटन

Palak Kohli

स्कूल में पलक को फिजिकल एजुकेशन की क्लासेज में खेलने नहीं दिया जाता था। क्योंकि 18 साल की पलक का एक ही हाथ काम करता है। जन्मजात विकृति के चलते उनका बायां हाथ ठीक से विकसित नहीं हो पाया। 

लेकिन उनकी जिद थी कि वह खेल को ही अपना करियर बनाएंगी औऱ उस जिद को पूरा करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता था। उन्होंने पैरा बैडमिंटन कोच गौरव खन्ना से संपर्क साधा। नियमित रूप से ट्रेनिंग लेने के लिए वह जालंधर से लखनऊ आ गईं। उन्होंने एकेडमी ज्वॉइन कर ली। अब वह अपना पूरा समय बैडमिंटन सीखने को दे रही हैं।

साल 2019 से ही उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले खेलों में भाग लेना शुरू कर दिया था और आज वह टोक्यो पैरालंपिक का एक हिस्सा हैं।

2. सकीना खातून- पावर लिफ्टिंग

Sakina Khatun & her Mother

सकीना कोलकात्ता के कोरापारा गांव की रहने वाली हैं। पावर लिफ्टिंग में सफलता हासिल करने से पहले वह, गरीबी और पोलियो दोनों से जंग लड़ रही थीं। घर खर्च चलाने के लिए उनके पिता दिहाड़ी मजदूरी करते थे। उनके भाई दर्जी की दुकान पर काम करते थे और मां आस-पास के घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन धोने का काम करती थीं।

उन्हें बचपन से ही खेल-कूद में काफी दिलचस्पी रही है। एक कोच ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें पावर लिफ्टिंग में आगे बढ़ने की सलाह दी। उस समय तक उनके जिले में ऐसी कोई सुविधा नहीं थी। सकीना ने घर छोड़ दिया और ट्रेनिंग के लिए पंजाब और बेंगलुरु चली गईं।

साल 2014 में सकीना, राष्ट्रमंडल खेलों में पैरा-स्पोर्ट्स में देश के लिए पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।

3. ज्योति बालियान – तीरंदाजी

Jyoti Baliyan

उत्तर प्रदेश की रहने वाली 27 वर्षीय ज्योति, टोक्यो पैरालंपिक में भाग लेने वाली एकमात्र भारतीय महिला तीरंदाज हैं। ज्योति के पिता किसान हैं। छोटी सी उम्र में एक दुर्घटना के बाद से ज्योति कभी ठीक से चल नहीं पाईं।

एक गलत इंजेक्शन लगने के कारण उन्हें पोलियो हो गया था। लेकिन ज्योति ने कभी अपने को लाचार नहीं माना। वह खेल की दुनिया में आगे आना चाहती थीं और उन्होंने इसके लिए तीरंदाजी को चुना। 

साल 2009 से तीरंदाजी कर रहीं ज्योति, आज देश के टॉप पैरा तीरंदाजों में से एक हैं और दुनिया में उनका स्थान 17 वां है। नीदरलैंड में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप दो तरह से उनके लिए फायदेमंद रही। अपने बेहतर प्रदर्शन से वह विश्व में 17वें नंबर पर आ गईं और उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई भी कर लिया।

4. अवनी लेखरा- शूटिंग

Avni Lekhara

यह साल 2012 की बात है, उस समय अवनी की उम्र महज दस साल थी। कार दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोटें आईं और वह हमेशा के लिए व्हीलचेयर से बंध गईं। तीन साल बाद जब स्थिति थोड़ी ठीक हुई, तो पिता ने उनका साहस बढ़ाया और उन्हें शूटिंग से जुड़ने के लिए कहा। अवनी ने अपने पिता की बात मानी और राइफल शूटिंग व तीरंदाजी दोनों खेलों में अपना हाथ आज़माने लगीं।

ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा की ऑटो बायोग्राफी ‘ए शॉट ऐट हिस्ट्री’ पढ़ने के बाद उन्होंने राइफल शूटिंग में आगे बढ़ने का फैसला लिया। उन्हें अपने इस फैसले पर संदेह जरूर था, लेकिन इसके लिए वह जीतोड़ मेहनत करती रहीं। नियमित रूप से अभ्यास करना उन्होंने कभी नहीं छोड़ा।

धीरे-धीरे उनकी शूटिंग में सुधार आने लगा। उन्होंने राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता में भाग लिया और कई पदक अपने नाम किए। संयुक्त अरब अमीरात में पैराशूटिंग विश्व कप में उन्होंने रजत पदक जीता और अपने लिए पैरालंपिक के दरवाजे खोल लिए।

5. अरुणा तंवर – तायक्वोंडो

Aruna Tanwar

अरुणा का जन्म कमजोर बाजुओं के साथ हुआ था। उनके हाथ में पांच की जगह सिर्फ तीन उंगलियां थीं, लेकिन हौसले बुलंद थे। वह जिंदगी को यूं ही जाया नहीं करना चाहती थीं। हरियाणा की इस लड़की ने अपने दम पर कुछ करने के लिए साल 2008 में मार्शल आर्ट में दाखिला ले लिया।

उनके इस फैसले में माता-पिता ने उनका पूरा साथ दिया। उन्होंने हर वो कोशिश कि जिससे अरुणा को अच्छे कोच का साथ मिल सके। उनके पिता एक ड्राइवर हैं। जब पैसे कम पड़ गए तो उन्होंने लोन ले लिया ताकि अरुणा टॉप लेवल के कोच के साथ प्रैक्टिस करती रहें और विभिन्न प्रतियोगिता में भाग ले सकें। आज उनकी कड़ी मेहनत और सफलता ने इन सब परेशानियों को कहीं पीछे छोड़ दिया है।

एक इंटरव्यू में अरुणा ने बताया था कि दोस्तों और परिवार वालों ने कभी उनके साथ अलग व्यवहार नहीं किया। इससे उन्हें खेल में आगे बढ़ने का साहस मिला और वह इसके बलबूते अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाईं।

21 साल की अरुणा विश्व में चौथे नंबर पर हैं। वह, टोक्यो पैरालंपिक में 49 किलोग्राम भार वर्ग कैटेगरी में खेलने के लिए उतरेंगी।

6. रुबिना फ्रांसिस – शूटिंग

Rubina Francis

22 साल की रुबीना जन्म से ही पैरों से दिव्यांग हैं। रुबीना पढ़ाई में काफी अच्छी थीं। वह कुछ अलग करना चाहती थीं। लेकिन यह उन्हें भी नहीं पता था कि क्या? जब ‘गन्स फॉर ग्लोरी’ नाम की शूटिंग अकादमी विज्ञापन देने के लिए उनके स्कूल में आई, तब उन्हें एहसास हुआ-यही तो है, जिसे वह करना चाहती हैं।

उनके पिता एक मोटर मैकेनिक और मां एक नर्स हैं। उन्होंने रुबीना के शूटिंग में जाने के निर्णय का पूरा समर्थन किया और उनका दाखिला करा दिया। यहां से उनके अगले सफर की शुरुआत हुई। लेकिन राह इतनी आसान नहीं थी।

शूटिंग कम पैसों के साथ खेला जाने वाला खेल नहीं था। उनके माता-पिता को पहले साल में काफी पैसा खर्च करना पड़ा था। अगले साल जब रुबीना को स्पॉन्सरशिप मिली, तब जाकर उन्होंने राहत की सांस ली। एक इंटरव्यू में रुबीना ने कहा, “मेरे माता-पिता ने मुझे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि ये एक महंगा खेल है। उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया।

मध्य प्रदेश की रुबीना ने साल 2015 में शूटिंग करना शुरू किया था। जून 2021 में आयोजित पैरा स्पोर्ट्स कप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने महिलाओं के लिए 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में भाग लिया और विश्व रिकॉर्ड बनाया। इसके साथ ही उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई भी कर लिया।

7. प्रमोद भगत – पैरा बैडमिंटन

Pramod Bhagat

प्रमोद के पिता एक मिल में काम करते हैं। डॉक्टर ने उनके सामने दो विकल्प रखे, या तो वह अपने बच्चे के पैरों को बचा लें या फिर हाथों को। उनके पिता ने हाथों को चुना। पोलियो ने अंततः प्रमोद के बाएं पैर को जकड़ लिया। उस समय प्रमोद की उम्र महज पांच साल थी। 

पैरो पर ढंग से खड़ा न हो पाने के बावजूद, प्रमोद का खेलों के प्रति गजब का आकर्षण था। टीनएज में वह अपने पड़ोसियों के साथ बैडमिंटन खेलने जाया करते थे। इससे उनका हौसला बढ़ा। आखिरकार उनका शौक़ उन्हें प्रोफेशनल ट्रेनिंग की ओर ले गया। प्रमोद हमेशा सामान्य सीनियर खिलाड़ियों के साथ प्रैक्टिस किया करते थे।

वह नियमित रूप से टूर्नामेंट्स में भाग लेते रहे और जिला प्रतियोगिताओं में जीत भी हासिल की। इसके बाद उन्होंने अपना ध्यान पैरा-बैडमिंटन पर लगाना शुरू कर दिया। साल 2009 में उन्होंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला। दस साल बाद उन्होंने छह अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में भाग लिया और टोक्यो पैरालंपिक में अपनी जगह बनाई।

8. पारुल परमार – पैरा बैडमिंटन

Parul Parmar

गुजरात की रहने वाली पारुल परमार उस समय तीन साल की थीं, जब उनके बाएं पैर में पोलियो हो गया। लेकिन उनकी मुसीबतें यहीं खत्म नहीं हुईं। उसी साल उनके साथ एक और दुर्घटना घटी, जिसमें उनकी कॉलर बोन में गंभीर चोटें आईं।

ठीक होने के बाद डॉक्टर्स ने उन्हें फिट रहने के लिए हमेशा व्यायाम करने की सलाह दी। पारुल के पिता एक बैडमिंटन खिलाड़ी थे। वह पारुल को अपने साथ ले जाते और एक्सरसाइज कराते थे।

पिता को खेलते देख उनके मन में भी बैडमिंटन खेलने की इच्छा जगी। जल्द ही उन्होंने रैकेट उठा लिया और बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया. खेल बेहतर, और बेहतर होता चला गया। इसके बाद वह टूर्नामेंट में भाग लेने लगीं।

49 वर्षीय इस खिलाड़ी ने साल 2009 में अर्जुन पुरस्कार और एकलव्य पुरस्कार जीता। 

9. मनीष नरवाल – निशानेबाजी 

Manish Narwal

दाहिने हाथ में जन्मजात बीमारी के साथ पैदा हुए मनीष को फुटबॉल खेलने का काफी शौक़ था। स्कूल के दिनों से ही उन्होंने फुटबॉल खेलना शुरू कर दिया था। लेकिन शारीरिक कमी के चलते वह कभी प्रोफेशनली फुटबॉल नहीं खेल पाए।

परिवार के एक सदस्य ने उन्हें शूटिंग में जाने की सलाह दी। उन्हें यह एक अच्छा ऑप्शन लगा।

मनीष के पिता हमेशा अपने बेटे के फैसले के साथ खड़े रहे। वह मनीष को फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में एक शूटिंग रेंज में लेकर गए। मनीष ने साल 2016 में ट्रेनिंग के लिए अपना नामांकन तो करा लिया लेकिन वह खुश नहीं थे। दरअसल, मनीष हमेशा से एक आउटडोर गेम खेलना चाहते थे। उन्होंने निशानेबाजी छोड़ने का मन भी बना लिया था।

लेकिन एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के बाद, उन्हें लगा कि वह इस खेल में भी अच्छा कर सकते हैं और फिर उन्होंने अपना विचार बदल लिया और ट्रेनिंग जारी रखी।

आज 18 वर्षीय मनीष के नाम 19 राष्ट्रीय पदक हैं और हाल ही में उन्होंने पैरा-शूटिंग विश्व कप, 2021 में 10 मीटर एयर पिस्टल में विश्व रिकॉर्ड तोड़ा है।

10. कशिश लाकरा – क्लब थ्रो

Kashish Lekhara

17 साल की कशिश को बचपन से ही खेलों से प्यार था। उन्होंने स्केटिंग, बॉल बैडमिंटन सहित कई खेल खेले हैं। साल 2017 में उन्होंने पेशेवर रूप से कुश्ती को अपने लिए चुना और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू कर दिया। उस समय वह 8वीं क्लास में पढ़ती थीं। लेकिन एक दिन अचानक ट्रेनिंग के दौरान उनका पैर फिसला और रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई।

डॉक्टर हिम्मत हार चुके थे। उनकी नजर में कशिश 48 घंटे से ज्यादा जिंदा नहीं रह सकती थी और अगर वह जिंदा रह भी गईं, तो कभी बिस्तर से नहीं उठ पाएगीं। अस्पताल में लगभग सात दिन रहने के बाद, जब वह घर लौटीं तो उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। अपनी खोई ताकत को वापस पाने के लिए उन्होंने रेगुलर ट्रीटमेंट और फिजियोथेरेपी लेना शुरू कर दिया। पांच महीने बाद कशिश की सेहत में काफी सुधार आ गया था। उन्होंने फिर से स्कूल जाने की कोशिश की लेकिन व्हीलचेयर पर होने के कारण उन्हें स्कूल में आने की इजाजत नहीं मिली।

खेल के प्रति कशिश के लगाव को देखते हुए फिजियोथेरेपिस्ट ने उन्हें एक पैरा ओलंपिक कोच के पास भेजा। बस वहीं से कशिश ने क्लब थ्रो का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। परिवार और कोचेज़ के समर्थन से, 17 वर्षीय कशिश ने अपनी कैटेगरी में सबसे कम उम्र की खिलाड़ी के तौर पर टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया।

मूल लेखः रौशिनी मुथुकुमार

संपादनः अर्चना दुबे

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