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Home अनमोल इंडियंस "पिता नहीं चाहते थे कि मैं दौडूं", स्टेडियम बंद हुआ तो सड़कों पर दौड़ जीता देश के लिए मेडल

"पिता नहीं चाहते थे कि मैं दौडूं", स्टेडियम बंद हुआ तो सड़कों पर दौड़ जीता देश के लिए मेडल

कोलंबिया में हुई अंडर-20 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में मेरठ की रूपल चौधरी ने महिलाओं की 400 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता। इतना ही नहीं, 4×400 मीटर मिक्स्ड रिले टीम इंवेंट का सिल्वर मेडल भी उन्होंने अपने नाम किया और इस तरह रूपल अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में दो मेडल हासिल करने वाली पहली भारतीय एथलीट बन गईं।

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World Athletics Championship: Athlete Rupal Chaudhary

कोलंबिया में हुई अंडर-20 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में मेरठ की रूपल चौधरी ने झंडा गाड़ दिया। उन्होंने महिलाओं की 400 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता। इतना ही नहीं, 4×400 मीटर मिक्स्ड रिले टीम इंवेंट का सिल्वर मेडल भी उन्होंने अपने नाम किया और इस तरह रूपल अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में दो मेडल हासिल करने वाली पहली भारतीय एथली बन गईं।

मेरठ लौटकर रूपल ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, "मेरे पिता नहीं चाहते थे कि मैं खेलूं। दरअसल, मेरे पिता एक सीधे-सादे गन्ना किसान हैं। एथलेटिक्स के बारे में भी ज्यादा कुछ नहीं जानते। गांव में भी बहुत खुला माहौल नहीं था। ऐसे में जब मैंने उनसे कहा कि मैं दौडना चाहती हूं, तो उनका पहला रिएक्शन था- 'नहीं'।

इसके बाद मैंने उनसे बार-बार अनुरोध किया, तो उन्होंने स्टेडियम ले जाने के लिए हामी भरी, लेकिन लेकर नहीं गए। टाल मटोल करते रहे। आखिर मैंने दौड़ने और स्टेडियम ले जाने की रट पकड़ ली, खाना छोड़ दिया। पहले तो उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब बगैर खाए तीन दिन गुज़र गए तो वह पसीज गए और स्टेडियम ले जाने को तैयार हुए। 

दौड़ने में दिलचस्पी कब और कैसे हुई?

Rupal with her father Omveer
Rupal with her father Omveer

वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में मेडल जीतने वाली रूपल ने बताया कि वह बहुत छोटी थीं, जब स्कूल एथलेटिक्स मीट में उन्हें मेडल मिला। इसके बाद पीटीआई और अन्य लोगों से बहुत सराहना मिली। यह सब देखकर उन्हें लगा कि यह गेम बहुत अच्छा है, इसे ही खेलना है। रूपल बताती हैं, "हालांकि मुझे यह भी नहीं पता था कि ट्रैक 400 मीटर का होता है। जब पिता पहली बार मुझे लेकर मेरठ के कैलाश प्रकाश स्टेडियम में कोच विशाल सक्सेना के पास पहुंचे, तो मुझे पहली बार इसके बारे में पता चला।"

मेरठ के रोहटा रोड स्थित जैनपुर शाहपुर की बेटी रूपल चौधरी के घर से कैलाश प्रकाश स्टेडियम करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर था।

रूपल बताती है, "बहुत मनाने पर जब पिता राजी हुए, तो तय किया कि वह स्टेडियम तक मुझे खुद छोड़ने और लेने जाएंगे। यह आसान नहीं था, क्योंकि वह खेती के काम में थे और अकेले थे। इसके बावजूद वह रोज़ सुबह 30 किलोमीटर का सफर तय कर मुझे स्टेडियम छोड़ने जाते थे। फिर दो घंटे वहां मेरी प्रैक्टिस के दौरान बैठे रहते और साथ लेकर वापस आते। शाम के वक्त भी यही सिलसिला चलता। ऐसे में मैंने ठान लिया था कि कुछ ऐसा करना है, जिससे एक दिन यह संघर्ष भी सुखद लगने लगे।"

कोरोना के कारण बंद हुआ स्टेडियम, तो सड़क पर की प्रैक्टिस

Rupal Chaudhary
Rupal Chaudhary

रूपल बताती हैं कि जिस सिंथेटिक ट्रैक पर ट्रैक एंड फील्ड की स्पर्धा होती थी, वह मेरठ में नहीं था। ऐसे में उन्हें दिल्ली जाना पड़ता था। उनके कोच विशाल, उन्हें दो दिन दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में ले जाकर प्रैक्टिस कराते थे। उनके कोच विशाल सक्सेना और उनकी पत्नी अमिता सक्सेना ने उनके परफॉर्मेंस पर हमेशा अधिक फोकस किया।

वे जानते थे कि सिंथेटिक ट्रैक पर अभ्यास के बगैर कामयाबी नहीं मिलेगी। ऐसे में अपना पैसा और टाइम लगाकर, अपनी कार से कोच, रूपल को प्रैक्टिस के लिए दिल्ली लेकर जाते थे।  

वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप की मेडल विजेता रूपल का कहना हे कि कोरोना काल काफी मुश्किल था। एक ओर जहां लोगों के काम धंधे छूट रहे थे, वहीं मेरे साथ दिक्कत यह हुई कि स्टेडियम बंद हो गया। समस्या हो गई कि प्रैक्टिस कहां की जाए। ऐसे में कोच ने सलाह दी कि तमाम सड़कें खाली पड़ी हैं। क्यों न इन्हीं पर दौड़ लगाई जाए। प्रैक्टिस न छोड़नी पड़े, इसके लिए रूपल ने कई माह सड़कों पर ही दौड़ लगाई।

रूपल याद करते हुए बताती हैं, "साल 2016 में रियो ओलंपिक चल रहा था। अखबारों में साक्षी मलिक व पीवी सिंधु की फोटो छपी देखती, उनके बारे में लिखे गए आर्टिकल पढ़कर, मन होता था कि मैं भी देश के लिए खेलूं और मेडल जीतूं। मेरी भी कहानी इस तरह अखबारों का हिस्सा बनें।"

उन्होंने कहा कि वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप ने उन्हें भी वह मुकाम दिखाया। भारत का गौरव रहीं पीटी उषा को अपना आदर्श मानने वाली रूपल को भी लोग 'उड़नपरी' कहकर पुकारने लगे हैं। रूपल यह नाम सुनकर इतनी खुशी होती हैं कि बयां करने के लिए शब्द नहीं हैं।

"शादी कर वरमाला पहनना नहीं, अभी तो मेडल जीतना है लक्ष्य"- वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप मेडल विनर रुपल

Rupal during her welcome in Meerut.
Rupal during her welcome in Meerut.

वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के बाद, अब रूपल कुछ समय के लिए रेस्ट कर रही हैं। हालांकि, उन्हें अभी केवल प्रैक्टिस से छुट्टी मिली है। फिटनेस को बरकरार रखने पर उनका काम जारी रहेगा। रूपल का कहना है कि अब उनकी नज़र आने वाले एशियाई खेलों और ओलंपिक पर है। देश के लिए एशियाई व ओलंपिक पदक जीतना उनका सपना है।

क्योंकि गांवों में जल्दी शादी हो जाती है, तो शादी के बारे में पूछे जाने पर रूपल ने कहा, "अभी दूर दूर तक ऐसा कोई ख्याल नहीं है। अभी तो देश के लिए मेडल लाना ही प्राथमिकता है।"

रूपल ने मढ़ी स्थित किसान इंटर कॉलेज से 12वीं की परीक्षा पास की है और अब वह मेरठ स्थित मेरठ कॉलेज से बीए (प्रथम वर्ष) की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।

क्या माँ ने कभी रूपल को आम घरों की तरह घर के कामों में लगाने की कोशिश की? इस सवाल पर रूपल ने कहा, माँ ममता रानी ने ऐसा कभी नहीं किया। उन्होंने हमेशा मुझे सपोर्ट किया। हर कोई जानता है कि महिलाओं का काम दिखता नहीं, लेकिन उनके बगैर घर चलता भी नहीं। माँ द्वारा किए जा रहे कार्य का कोई मोल नहीं। वह अनमोल है। 

संपादनः अर्चना दुबे

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