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दक्षिण भारत का शहर पुडुचेरी, अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है। लेकिन यहां भी बच्चों और बुज़ुर्गों से जुड़े कई मुद्दे एक गंभीर समस्या हैं। पुडुचेरी में ही रहने वाली एलिस थॉमस पिछले कई सालों से इन समस्याओं को ख़त्म करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है और बच्चों के लिए एनजीओ की शुरुआत की है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए 53 वर्षीया एलिस कहती हैं, “मेरी कहानी से ज़्यादा प्रेरणा इन बच्चों की कहानी में है। मेरे पास बड़े हुए कई बच्चे बिना आधुनिक सुविधाओं के भी जीवन में अच्छे मुक़ाम पर पहुंच गए हैं। यही मेरे लिए गर्व की बात है।"
सालों पहले, एक 10 साल के बच्चे को सड़क पर रोता देखकर एलिस ने उससे बात करने की कोशिश की। उसके जीवन की कठिनाइयों के बारे में जानने के बाद एलिस सोचने पर मजबूर हो गईं। उस बच्चे को उसके खुद के माता-पिता ने शराब और खाने के पैसे न ला पाने के लिए बुरी तरह से मारा था। उन्होंने देखा कि कई बच्चों के लिए यह रोज़ की बात थी।
इस घटना से 21 वर्षीया एलिस के जीवन में एक बड़ा मोड़ आया। उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए काम करने की शुरुआत कर दी और सबसे पहले उनके लिए एक आश्रय बनाने और उन्हें शिक्षा देने का फ़ैसला किया।
बच्चों का जीवन संवारने के लिए एलिस ने पूरा जीवन लगा दिया
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एलिस ने 1991 में ‘उद्धवी करंगल' नाम से एक एनजीओ की शुरुआत की थी। उस वक़्त उन्होंने मात्र 10 बच्चों के साथ एक शेल्टर खोला। लोगों की मदद से उन्होंने कुछ ही सालों के अंदर ज़मीन लेकर, लड़कों और लड़कियों के लिए दो अलग-अलग शेल्टर होम बनाए, जिसमें पिछड़े परिवार के बच्चों को रहने, खाने की सुविधाओं के साथ शिक्षा भी दी जाती थी।
इस तरह आज वह हज़ारों बच्चों की माँ बनकर उनकी परवरिश कर रही हैं। इसमें से कई प्रवासी मज़दूरों के बच्चे हैं, तो कई यौन उत्पीड़न या नशे के शिकार बच्चे।
अच्छी बात यह है कि इतने सालों की मेहनत के बाद आज एलिस के लगभग सभी बच्चे, जीवन में आत्मनिर्भर बन चुके हैं। कोई ऑटो रिक्शा चला रहा है, तो कोई शिक्षक या नर्स बन गया है। कई बच्चे तो बड़ी आईटी कंपनी में भी काम कर रहे हैं।
सैकड़ों बच्चों के जीवन से अंधकार को दूर करके एलिस ने उन्हें आशा की एक नई रोशनी दिखाई। इसीलिए इन सभी बच्चों के लिए वह उनके माता-पिता से बढ़कर, एक गॉडमदर की जगह रखती हैं।
संपादन- भावना श्रीवास्तव
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