भारत विभिन्न धर्मों, आस्थाओं तथा संस्कृतियों से बना, एक विशाल देश है। यहाँ लोगों की आस्था और विश्वास ही, उनके जीवन की दिशा और दशा निश्चित करती है। ऐसी ही एक आस्था है, महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन भगवान् को दूध चढ़ाने की। पर, अक्सर ये दूध बहकर गटर के पानी में मिल जाता है और किसी के काम नहीं आता। पर, अगर कुछ ऐसा हो कि आपने जिस दूध को इतनी श्रद्धा से चढ़ाया है, वह गटर में पहुँचने की बजाय, ज़रूरतमंदों तक पहुँच जाए तो?
मेरठ के पांच छात्रों ने मिलकर, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है। उन्होंने एक ऐसा अनोखा जुगाड़ बनाया है, जिससे मंदिरों में रोजाना चढ़ाये जाने वाले सैंकड़ों लीटर दूध को सही जगह पहुँचाया जा सकता है।
मेरठ के रहने वाले एक छात्र, करण गोयल ने अपने चार दोस्तों के साथ मिलकर, एक ऐसा सिस्टम बनाया है, जिससे भगवान को चढ़ाये गए दूध को इकठ्ठा कर, ज़रूरतमंदों तक पहुँचाया जा सकता है।
इसके बाद, इन चारों दोस्तों ने मिलकर, मेरठ के बिलेश्वर नाथ मंदिर के पुजारी को महाशिवरात्रि (Mahashivratri) पर, मंदिर परिसर में इस सिस्टम को लगाने की मंजूरी देने के लिए मना लिया। साथ ही, कुछ पर्चे प्रकाशित किए और उन्हें लोगों में बांट दिया। Times Of India की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने इस तरकीब से 100 लीटर दूध बचाया और इसे ज़रूरतमंद बच्चों में बांट दिया।
यह अपने आप में एक अनोखा विचार है, जो लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना, समाज का भी भला कर सकता है।
करण ने Times Of India को बताया, “लोग, शिवलिंग के ठीक ऊपर रखे कलश में दूध डालते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, हमने इस कलश में दो छेद किए। एक इसकी सतह पर और दूसरा एक निश्चित ऊंचाई पर। यह कलश 7 लीटर का था। तो, हमने एक प्रणाली बनाई, जिससे एक लीटर दूध शिवलिंग पर रिसने के बाद, बाकी 6 लीटर दूध, दूसरे छेद से जुड़े पाइप के ज़रिये एक साफ़ बर्तन में चला जाये।”
इस जुगाड़ को बनाने में करण और उनके दोस्तों को 2, 500 रुपये का खर्च आया। लेकिन, इस एक जुगाड़ से लगभग 100 लीटर दूध बचाया गया। इसके बाद, मंदिर में करण के इस जुगाड़ से बचे दूध को ‘सत्यकाम मानव सेवा समिति’ में भेजा गया, जो अनाथ बच्चों और HIV पॉजिटिव बच्चों को आश्रय देता है।
करण और उनके साथियों ने अपने इस जुगाड़ को मंदिर में ही रख दिया। अब इस मंदिर में, हर सोमवार को चढ़ाए गए दूध के एक हिस्से को, शहर के अलग-अलग अनाथालयों में भेजने के लिए अलग रखा जाता है ।
हमें लगता है कि यह एक ऐसी पहल है, जिसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। साथ ही, हम उम्मीद करते हैं कि देशभर में इसे अपनाया जाएगा।
मूल लेख: विद्या राजा
संपादन – मानबी कटोच
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