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करोड़ों की स्कॉलरशिप दिलाकर लाखों ग़रीब छात्रों की मदद कर चुके हैं 80 साल के रिटायर्ट शिक्षक

K Narayana Naik from Karnataka
करोड़ों की स्कॉलरशिप दिलाकर लाखों ग़रीब छात्रों की मदद कर चुके हैं 80 साल के रिटायर्ड शिक्षक।

हर दिन, नारायण नाइक सुबह 8 बजे अपने घर से निकलते हैं और अपनी पुरानी होंडा ड्रीम बाइक से स्कूल, कॉलेज, सरकारी ऑफिसों और निजी संगठनों के चक्कर लगाते हैं। अक्सर उनको घर वापस आते-आते शाम के 6 बज जाते हैं। 80 वर्षीय नारायण कहते हैं, “पिछले साल अकेले, मैंने दक्षिण कन्नड़ और उडुपी में लगभग 200 स्कूलों का दौरा किया।”

लेकिन क्यों? आख़िर वह इस उम्र में स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ़्तरों के चक्कर क्यों काट रहे हैं?

दरअसल दक्षिण कन्नड़ के बंतवाल तालुक के करपे गांव के, के नारायण नाइक एक अनोखे मिशन पर हैं। वह स्कूल और कॉलेज के छात्रों को स्कॉलरशिप दिलाते हैं, ताकि वे उच्च शिक्षा हासिल कर सकें। 

एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब वह स्कूल और कॉलेज या छात्रों के घर जाकर, उनसे बात-चीत न करें, और उन्हें सही स्कॉलरशिप की जानकारी न देते हों।

‘स्कॉलरशिप मास्टर’ का अनोखा मिशन

‘स्कॉलरशिप मास्टर’ के नाम से जाने जाने वाले नारायण नाइक सरकारी हाई स्कूल के रिटायर्ड शिक्षक हैं, जिन्होंने पिछले कई सालों में एक लाख से ज़्यादा छात्रों के जीवन को बदला है और उन्हें करोड़ों की स्कॉलरशिप दिलाने में मदद की है। 

38 साल के एक लंबे टीचिंग करियर के बाद, 2001 में नाइट रिटायर हुए। रिटायरमेंट के बाद अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ घर पर रहने के बजाय उन्होंने अपना जीवन सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल होकर बिताने का फैसला किया।

K Narayana Naik

रिटयरमेंट के बाद नारायण नाइक को 40,000 रुपये की पेंशन मिलती है और वह इसका आधे से ज़्यादा हिस्सा इधर-उधर आने-जाने में ख़र्च करते हैं। वह कहते हैं, “मैं यह तब से कर रहा हूँ जब मैं एक स्कूल शिक्षक के रूप में काम कर रहा था। मुझे खुशी है कि रिटायरमेंट के बाद मुझे इसमें शामिल होने के लिए और भी ज़्यादा समय मिला है। अब मैं स्कॉलरशिप के लिए उनका रिसोर्स पर्सन बनकर छात्रों की पूरी तरह मदद कर रहा हूं।”

नारायण नाइक का कहना है कि शिक्षा सफलता की कुंजी है और इसके लिए जितने भी मौक़े हमें मिलते हैं, उनका फ़ायदा उठाना ज़रूरी है।

खुद शिक्षा प्राप्त करने के लिए किए कई संघर्ष 

एक ग़रीब किसान परिवार में पले-बढ़े नाइक ने याद करते हुए बताया कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें भी काफ़ी संघर्षों का सामना करना पड़ा था। वह कहते हैं, “मेरे पिता कक्षा 5 के बाद मेरी पढ़ाई बंद करना चाहते थे क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे। लेकिन मैं कभी हार नहीं मानना चाहता था। इसलिए, मैंने गांधी जी की विचारधारा का पालन किया और कई दिनों तक घर पर ही सत्याग्रह और भूख हड़ताल की। इससे मेरे पिता का मन बदल गया और मुझे फिर से स्कूल भेज दिया गया।”

हंसते हुए वह आगे बताते हैं “कक्षा 8 के बाद भी ऐसा ही हुआ था। मैंने फिर वही तरक़ीब अपनाई और यह फिर से काम कर गई।”

रोज़ाना करीब 16 किलोमीटर पैदल चलकर नंगे पैर स्कूल जाने के बाद नाइक ने कन्नड़ और हिंदी में बीएड और एमए की डिग्री हासिल की। उन्होंने 20 साल की उम्र में प्राइमरी स्कूल के टीचर के रूप में अपना करियर शुरू किया। और रिटायरमेंट से पहले उन्होंने एक हाई स्कूल टीचर के साथ-साथ एक स्कूल इंस्पेक्टर के रूप में भी काम किया।

कैसे आया स्कॉलरशिप के ज़रिए छात्रों की मदद करने का ख़्याल?

नारायण नाइक कहते हैं, “मुझे अपनी पढ़ाई के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा और जीवन के इन्हीं अनुभवों से मुझे बाकी छात्रों की मदद करने की प्रेरणा मिली।”

नाइक बताते हैं कि सरकारी और निजी संस्थाओं द्वारा कई स्कॉलरशिप दी जाती हैं, लेकिन छात्रों को इनके बारे में पता नहीं होता। वे नहीं जानते कि इसका फ़ायदा कैसे उठाया जाए। नाइक कहते हैं, “इसलिए मैं उपलब्ध स्कॉलरशिप के बारे में स्टूडेंट्स को बताता हूँ, उनको इस बारे में जागरूक करता हूँ और सबसे योग्य छात्रों को स्कॉलरशिप दिलाने में उनकी मदद करता हूँ।”

अलग-अलग क्राईटीरिआ के आधार पर स्टूडेंट्स कई तरह की स्कॉलरशिप का फ़ायदा उठा सकते हैं। नाइक कहते हैं, “सरकारी और प्राइवेट संस्थाएं जैसे ट्रस्ट और फाउंडेशन, योग्यता, जाति या धर्म, लेबर आदि के आधार पर स्कॉलरशिप देते हैं।” नाइक न केवल जागरूकता फैलाने में मदद करते हैं बल्कि जब तक स्कॉलरशिप देने वाली संस्था बच्चे की एप्लीकेशन स्वीकार नहीं कर लेती, तब तक मदद करते हैं।

स्कॉलरशिप के लिए सबसे योग्य छात्र कैसे ढूंढ़ते हैं?

नाइक कहते हैं, “मैं हमेशा सरकारी स्कूल/कॉलेज के छात्रों को प्राथमिकता देता हूँ, जो स्कूल में अच्छा परफॉर्म करते हैं। मैं उनके साथ बातचीत करता हूँ और उनके फैमिली बैकग्राउंड जानने की कोशिश करता हूँ। बच्चों से सारी ज़रूरी जानकारी लेने के बाद, मैं उसको वेरीफाई करने के लिए उनके घर जाता हूँ। एक बार पुष्टि हो जाने के बाद, मैं उन्हें स्कॉलरशिप के बारे में बताता हूँ और पूरे प्रोसेस में उनकी मदद भी करता हूँ। ”

इसके अलावा, वह पिछड़े छात्रों को अलग-अलग NGOs और फाउंडेशन के साथ जोड़ते हैं ताकि उन्हें स्कॉलरशिप और स्पॉंसरशिप मिल सके। वह कहते हैं, ‘”सुप्रजीत फाउंडेशन, द्युति फाउंडेशन जैसे ऑर्गेनाईज़ेशंस से हर साल लगभग 16 लाख रुपये स्कॉलरशिप के रूप में दिए जाते हैं। पिछले दो दशकों में 1 लाख से ज़्यादा छात्रों ने लगभग 5 करोड़ रुपये की स्कॉलरशिप का फ़ायदा उठाया है।”

स्कॉलरशिप मास्टर ने कई छात्रों की ज़िंदगी बनाई बेहतर

नारायण नाइक को पिछले 25 सालों से जानने वाले, वामाडपडावु के गवर्नमेंट फर्स्ट ग्रेड कॉलेज के प्रिंसिपल हरिप्रसाद शेट्टी कहते हैं कि उन्होंने नाइक जैसा निःस्वार्थ व्यक्ति नहीं देखा। वह कहते हैं, “हमारे जैसे गाँव के छात्रों को उनके प्रयासों से बहुत फ़ायदा हुआ है। वह हमारे कॉलेज में बहुत बार आते हैं और छात्रों के लिए स्कॉलरशिप के बारे में ओरिएंटेशन आयोजित करते हैं। वह यह भी सुनिश्चित करते हैं कि सबसे योग्य स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप मिले। इसके अलावा वह एप्लीकेशन भरने में भी उनकी मदद करते हैं। यह काफ़ी दिलचस्प बात है कि वह 80 साल की उम्र में भी इतने एनर्जेटिक हैं।”

शेट्टी बताते हैं कि स्कॉलरशिप दिलाने के अलावा नारायण कभी-कभी ग़रीब छात्रों की अपने खुद के पेंशन के पैसे से भी मदद करते हैं। 

कर्नाटक के मूडबिद्री में, अल्वा कॉलेज में लेक्चरर डॉ. योगिश कैरोड़ी याद करते हुए बताते हैं कि कैसे नारायण नाइक ने उन्हें स्कॉलरशिप दिलाने में मदद की थी जिससे वह पोस्ट-ग्रेजुएशन कर पाए। वह कहते हैं, “मैं कहूंगा कि वह ‘स्कॉलरशिप के लाइब्रेरी’ हैं और वह दशकों से इस क्षेत्र के लगभग सभी स्कूलों और कॉलेजों का दौरा कर रहे हैं। जब मैं पोस्ट-ग्रेजुएशन कर रहा था तब उन्होंने मुझे सरकारी स्कॉलरशिप प्राप्त करने में मदद की, जिससे मुझे कॉलेज की फ़ीस देने में आसानी हुई। यह काफ़ी प्रेरणादायक है कि उन्होंने इस उम्र में भी अपनी समाज सेवा जारी रखी है।” डॉ. योगिश ने बाद में कन्नड़ में पीएचडी की।

अंत में स्कॉलरशिप मास्टर नारायण नाइक कहते हैं, “यह मेरा कर्तव्य है कि मैं ग़रीब छात्रों को यह उम्मीद रखने में उनकी मदद करूं कि शिक्षा है तो कुछ भी मुमकिन हो सकता है। मैं उनके संघर्षों को समझता हूँ और जितना हो सके उनकी ज़िंदगी आसान बनाना चाहता हूँ। मैं 80 वर्ष का ज़रूर हूँ लेकिन मुझे खुशी है कि मैं कुछ अच्छा करने के लिए अभी स्वस्थ और क़ाबिल हूँ।”

मूल लेख – अंजलि कृष्णन

संपादन – भावना श्रीवास्तव

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