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कॉमनवेल्थ खेलों में हरियाणा के हांसी की पूजा सिहाग ने देश के लिए रेसलिंग में कांस्य पदक जीता। लेकिन एक वक्त ऐसा था, जब इंडियन रेसलर पूजा रेसलिंग छोड़ना चाहती थीं। साल 2020 में ओलंपिक क्वालीफायर के दौरान हार्ट फेल्यर से पिता की मौत के बाद, वह भावनात्मक रूप से टूट गई थीं।
लेकिन उनके पिता का सपना था कि बेटी एक दिन बड़ी पहलवान बने और उनके इस सपने को पूरा करने के लिए ही पूजा एक बार फिर मैट पर उतरीं। अपनी सारी बाउट जान में जान लगाकर लड़ी और मेडल पक्का किया। कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन स्थल बर्मिंघम (इंग्लैंड) से लौटने के बाद पूजा ने द बेटर इंडिया से बातचीत की।
पूजा ने बताया, "मैं बहुत हेल्दी थी। पिता सुभाष सिहाग मुझे प्यार से पहलवान कहकर बुलाते थे। उन्हें खेल का बहुत नहीं पता था, लेकिन वह मुझे भारत केसरी, हिंद केसरी जैसे खिताब जीतते देखना चाहते थे। उनकी ही इच्छा पर मैंने महज़ 11 साल की उम्र में मैट पर प्रैक्टिस शुरू कर दी। जबकि मैं उस वक्त पढ़ाई कर रही थी। इसमें आगे क्या करियर होगा मुझें नहीं पता था।"
बड़े भाई के सपोर्ट ने बढ़ाया विश्वास
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पूजा के अनुसार, पिता को खो देने के बाद बड़े भाई रवि सिहाग ने उन्हें पूरी तरह संभाला। उन्होंने ही बार बार याद दिलाया कि मुझे पापा के सपने के लिए खेलना है। मम्मी का मुझे पूरा सपोर्ट मिला। ऐसा न होता तो शायद संभलने में कुछ अधिक वक्त लगा होता। वे दोनों ही हर कदम पर साथ खड़े रहे। इंडियन रेसलर पूजा ने कहा, "मैं जब भी निराश होती थी, तो सोचती कि मुझे पापा के सपने के लिए खेलना है। इससे मुझमें पुनः ऊर्जा भर जाती।"
1997 में जन्मीं पूजा, वर्तमान में राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर (एसआई) हैं। वह सुबह चार बजे उठकर दिन में छह घंटे प्रैक्टिस करती थीं। 3 घंटे सुबह और 3 घंटे शाम को। अक्सर रोज़ सोने में 12 बज जाते थे। पूजा ने बताया कि वह केवल 4 घंटे ही सो पाती थीं।
नींद पूरी ना होने की वजह से कई बार शाम को उनका प्रैक्टिस करने का मन भी नहीं करता था। लेकिन फिर उन्हें अपने पिता के सपने की याद आती और वह दोबारा से अपनी प्रैक्टिस में पूरे दिल से लग जातीं। साल 2014, 2015, 2016 और 2017 में एशियाई रेसलिंग चैंपियनशिप में लगातार दो कांस्य और रजत पदक जीतने वाली पूजा को अभी गोल्ड मेडल की दरकार है।
सबसे मुश्किल बाउट कौन सी रही?
कॉमनवेल्थ में इंडियन रेसलर पूजा 76 किलोग्राम (फ्री स्टाइल रेसलिंग) की प्रतियोगी थीं। पूजा बताती हैं, "शुरुआती बाउट उनके लिए सबसे मुश्किल थी। उस बाउट को लेकर काफी दबाव था। ये लग रहा था कि अगर इसमें हार गई, तो बाहर हो जाऊंगी। बस इसीलिए उसे जीतने के लिए पूरी जान लगा दी।"
पूजा को ओपनिंग मुकाबले में न्यूजीलैंड की रेसलर मिशेल मांटेग्यू से जबरदस्त चुनौती मिली, लेकिन पूजा ने अपनी तकनीक और मानसिक मजबूती दिखाते हुए उस बाउट को 5-3 के मार्जिन से जीता। इसके बाद कनाडा की रेसलर से भी अच्छी फाइट मिली।
ब्रॉन्ज़ मेडल के मुकाबले में तो दबाव लाजिमी था। उन्होंने इस मैच में आस्ट्रेलिया की नाओमी डी बुइन को 11-0 से धूल चटाई। खास बात यह रही कि उन्होंने यह बाउट टेक्निकल सुपीरियॉरिटी यानी तकनीकी श्रेष्ठता के आधार पर जीता। किसी मैच में हारना एक अलग बात है, लेकिन कहा जाता है कि रेसलर आमतौर तकनीकी आधार पर हारना पसंद नहीं करते।
"रेसलिंग बॉडी और माइंड दोनों का खेल है"- इंडियन रेसलर पूजा सिहाग
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पूजा के अनुसार, बहुत लोग यह मानते हैं कि रेसलिंग पावर गेम है। इसके लिए केवल शरीर का मजबूत होना ज़रूरी है। जबकि यह अर्द्धसत्य है। मैं स्पष्ट कर दूं कि यह बॉडी और माइंड के बैलेंस का गेम है। आपको मैट पर प्रतिपक्षी को मन से लगातार कमजोर करना होता है। इसके साथ ही ऐसा दांव लगाना होता है कि वह चित हो जाए।
अगर लड़कियां रेसलिंग में आगे आना चाहती हैं, तो उन्हें फिजिकल और मेंटल बैलेंस पर खासा ध्यान देना होगा। इसके अतिरिक्त डाइट भी खेल का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। कॉम्पटीशन की बात करें, तो हम लोग लिक्विड डाइट अधिक फॉलो करते हैं। क्योंकि वज़न मेंटेन करना भी एक रेसलर के लिए बड़ी चुनौती होती है।
क्या ससुराल से भी मिला सपोर्ट?
पूजा का कहना है कि ससुराल वालों की ओर से उनको खेल में पूरा सपोर्ट मिला है। उन्हें कभी ट्रेडिशनल कामों के लिए बाध्य नहीं किया गया। पूजा की शादी पिछले साल ही हुई है। उनके पति अजय नांदल गढ़ी बोहर के रहने हैं और सीआईएसफ में कार्यरत हैं।
अजय खुद भी एक रेसलर हैं। पूजा ने बताया कि घर का काम कैसे होता है, उन्हें पता भी नहीं चलता। सास, ससुर की ओर से उन्हें इस बात की पूरी छूट दी गई कि वह केवल अपनी प्रैक्टिस पर फोकस करें। पूजा के मेडल जीतने के बाद उनके सास, ससुर जहां अपनी बहू की कामयाबी पर झूम रहे थे, वहीं पति अजय भी पत्नी के कॉमनवेल्थ मेडलिस्ट बनने पर फख्र महसूस कर रहे हैं।
अभी उन्हें पूजा से भविष्य में गोल्ड की भी आस है। इंडियन रेसलर पूजा इस समय रोहतक से बीपीएड भी कर रही हैं। ऐसे में अपने टाइम को मैनेज करना भी उनके बेहतरीन मैनेजमेंट क्षमता को दर्शाता है।
पूजा सिहाग के अनुसार, अब उनका अगला निशाना एशियाई रेसलिंग है। दरअसल, ओलंपिक खेलों का आयोजन पेरिस में करीब दो साल बाद यानि 2024 में प्रस्तावित है। पूजा उससे पहले एशियाई खेलों में धमाकेदार प्रदर्शन से देश के लिए मेडल पक्का करने की सोच के साथ प्रैक्टिस में जुट गई हैं। उन्हें उम्मीद है कि देशवासियों के हाथ निराशा नहीं लगेगी।
संपादनः अर्चना दुबे
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