बिस्वजीत नायक एक अप्रवासी भारतीय (एनआरआई) हैं और दोनों देशों की संस्कृतियों और विविधताओं से भली भाँति परिचित हैं।
वह कहते हैं, “हममें से बहुत से लोग अपने देश से दूर रहते हैं। या यूँ कहें कि हम दो दुनिया के बीच बसते हैं। एक वह दुनिया जहाँ फिलहाल हम रह रहे होते हैं और दूसरी वह जिसमें हम रहना चाहते हैं। हम सभी जहाँ रहते हैं, वहां से दूसरी जगह जाने का हमेशा मन करता है। जब मैं गाँव में रहता था तब गाँव छोड़कर शहर जाने का मन करता था और फिर शहर आने के बाद दूसरे देश जाने की इच्छा। विदेश जाने के बाद मुझे अपने गांव, अपने घर के लिए कुछ करने की तड़प हमेशा बनी रही।”
कैलिफोर्निया में रहने वाले इस एनआरआई ने देश के लिए कुछ करने के जज्बे को मरने नहीं दिया। लगभग 6 साल पहले उन्होंने ग्रामीण बच्चों को पढ़ाने के लिए शिख्या नामक एक छोटी सी पहल की शुरूआत की।
शिख्या जिसे अब एवेटी लर्निंग के नाम से जाना जाता है, यह मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेस (MOOC) मॉडल पर आधारित है। इसका उद्देश्य उड़िया सहित 15 से अधिक भारतीय भाषाओं में लर्निंग कंटेंट तैयार करके ग्रामीण छात्रों तक आसानी से पहुँचाना है। जिससे कि शहरी और ग्रामीण शिक्षा के बीच के अंतर को पाटा जा सके।
वह कहते हैं, “शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा नए बदलाव होते रहते हैं। हमारा मकसद भारत के गाँवों में रहने वाले छात्रों तक शहरी छात्रों की तरह नए कंटेंट पहुंचाना है। इसके साथ ही हम यह भी ध्यान रखते हैं कि सभी जानकारी उनके लिए उपयोगी भी हो। हमने खुद से ही लर्निंग कंटेंट तैयार किया और ओडिशा के सुदूर गाँवों में रहने वाले छात्रों और ऐसी जगहों पर जहाँ बिजली और इंटरनेट भी नहीं था, वहाँ के छात्रों को भी सामग्री उपलब्ध कराना शुरू किया।”
आज नारिगाँव के एक छोटे से कोचिंग सेंटर से लेकर 120 से अधिक केंद्रों और 400 स्कूलों तक, उनके पाठ्यक्रम पूरे राज्य में पढ़ाए जा रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि देश में और अधिक जगहों तक उनका ये पाठ्यक्रम पहुंचेगा।
एनआरआई के लिए "स्वदेस" वाली फील
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बिस्वजीत 2004 में रिलीज़ हुई अपनी पसंदीदा हिंदी फ़िल्म "स्वदेस" का बार-बार उदाहरण देते हैं।
फिल्म के हीरो की तरह बिस्वजीत ओडिशा के जाजपुर जिले के एक गाँव नारीगाँव में बड़े हुए। उन्होंने एक स्थानीय स्कूल से पढ़ाई की और एनआईटी राउरकेला (1992-1996) से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में बीटेक किया। वह कहते हैं कि एक स्कूल टीचर का बेटा होने के नाते उन्हें पढ़ाई का महत्व जल्दी ही समझ में आ गया। उन्होंने विदेश में काम करने के अपने बड़े सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की।
कुछ सालों तक भारत में काम करने के बाद वह अच्छी नौकरी की तलाश में 1999 में कैलिफोर्निया की सिलिकॉन वैली चले गए। वहाँ उन्हें काफी अच्छी नौकरी मिली, लेकिन मन के किसी कोने में अपने देश के लिए कुछ करने की तड़प हमेशा बनी रही।
वह कहते हैं, “मुझे अपनी नौकरी काफी पसंद थी लेकिन अपने लोगों और अपने गाँव के लिए कुछ करने के लिए मैं तरसता रहता था। आज मैं जो कुछ कर रहा हूँ, यह उसी जज्बे से शुरू किया।” बिस्वजीत साल में कम से कम एक बार भारत में अपने गाँव जरूर आते हैं।
हर बार जब वह नारीगाँव जाते तो वह स्थानीय छात्रों को पढ़ाकर अपने पिता के नेक काम में भागीदार बनते थे। बाद में उन्हें इसी काम को अपना मकसद बनाया।
वह बताते हैं, “5वीं कक्षा की एक लड़की को मैं बेसिक गणित पढ़ा रहा था। मैं बहुत अच्छे से उसे समझा नहीं पा रहा था लेकिन मैंने उसके अंदर गणित के सवालों को सुलझाने की एक अलग ललक देखी। उस दौरान उसके अंदर मैंने अपना बचपन देखा और फिर मैंने तय किया कि मैं हर बच्चे को शिक्षा का मौका दूँगा। इसके बाद मैंने गाँव में मधुसूदन शिख्या केंद्र नाम से ट्यूशन सेंटर खोला।”
एक 'गुंडे' से उद्यमी बनने का सफर
वह लड़की जिसमें उन्हें अपना बचपन नजर आया, वह पहली लड़की थी जिसके कारण बिस्वजीत में कुछ बदलाव करने की ललक उठी। इसके बाद उनकी मुलाकात गाँव के ही एक युवक से हुई जो रास्ते से भटक गया था।
बिस्वजीत कहते हैं, “गणेश पूजा से पहले कई लोकल गुंडे व्यवसायियों से चंदे वसूल रहे थे। उन्होंने मेरे बारे में भी सुना। मैंने कुछ दिन पहले ही अमेरिका से लौटकर यह सेंटर शुरू किया था। उन गुंडों में से 20 साल के एक लड़के प्रकाश ने मुझसे 3000 रूपए दान मांगा। मैंने देखा कि वह काफी स्मार्ट और ठीक ठाक घर का लड़का था। लेकिन पढ़ाई के मौके न मिलने के कारण उसने यह रास्ता चुन लिया था। मैंने उसे चंदा देने के बजाय एक प्रस्ताव दिया।”
बिस्वजीत ने प्रकाश को सेंटर का मैनेजर बनने के लिए कहा। उन्होंने बताया, “अमेरिका में नौकरी करते हुए गाँव में ट्यूशन सेंटर संभालना मेरे लिए काफी मुश्किल काम था। कई कोशिशों के बाद भी मैं भरोसेमंद मैनेजर नहीं खोज पाया था। इसके अलावा, भले ही मैं गाँव से था, लेकिन विदेश में ज्यादा समय रहने के कारण मुझे लोगों से जुड़ने और तालमेल बिठाने में परेशानी हो रही थी। लोगों को भरोसा दिलाने और विश्वास जीतने के लिए मुझे एक स्थानीय व्यक्ति की जरूरत थी। प्रकाश इस काम के लिए एकदम सही व्यक्ति था। मैंने उसे हर एक महीने में 3,000 रुपये वेतन देने का फैसला किया। इतने वर्षों में एविटी लर्निंग को इस मुकाम तक पहुंचने का पूरा श्रेय प्रकाश को ही जाता है।"
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छात्रों का डेटाबेस बनाने से लेकर अभिभावकों को समझाने और सेंटर चलाने के साथ ही बिस्वजीत ने इसे एक बड़े प्लेटफॉर्म में बदल दिया। वह कहते हैं कि इस तरह प्रकाश एविटी लर्निंग पहल में बदलाव लाने वाला पहला उद्यमी बना।
आज ओडिशा भर में प्रकाश जैसे 120 लोग हैं जो एविटी लर्निंग के स्मार्ट लर्निंग पाठ्यक्रम का इस्तेमाल कर ऐसे कोचिंग सेंटर चलाते हैं। यह लोकल चेंजमेकर्स का ही नेटवर्क है जिसने इन सालों में पहल को काफी आगे बढ़ाने में मदद की। बिस्वजीत ने 2017 में संस्था को एविटी लर्निंग के आधिकारिक नाम से पंजीकृत करा लिया।
वह बताते हैं कि हर एक सेंटर को विदेश में उनके सहयोगियों और दोस्तों ने गोद ले लिया है। वो लोग ही छात्रों के लिए सभी स्मार्ट लर्निंग उपकरण जैसे एवेटी लर्निंग टैबलेट और संचालन का खर्च स्पॉन्सर करते हैं।
“मैं शायद एकमात्र एनआरआई हूँ, जो अपने देश को कुछ वापस करना चाहता था। मेरे कई दोस्त और सहकर्मी भी ऐसा ही करना चाहते थे। लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि क्या और कैसे शुरू करें। इस मॉडल से मैंने उन्हें दिखाया कि हर कोई अपने तरीके से मोहन भार्गव (स्वदेस में शाहरूख खान की भूमिका) कैसे बन सकता है।”
सेंटर में शिक्षक और कंटेंट बनाने वाले सहित कुल 18 सदस्य हैं। एवेटी लर्निंग ने अपने सेंटर के माध्यम से 8000 छात्रों को प्रभावित किया है। इसके अलावा यूट्यूब पर उनके 46,000 सब्सक्राइबर हैं और 25 लाख से अधिक बार उनके वीडियो देखे जा चुके हैं।
बिस्वजीत टेक्नोलॉजी आधारित अपने इस एजुकेशनल प्लेटफॉर्म को और बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। वह इसे न सिर्फ ओडिशा बल्कि भारत के अन्य स्कूलों और सेंटर तक पहुंचाना चाहते हैं। एवेटी लर्निंग द्वारा स्मार्ट लर्निंग कंटेंट का इस्तेमाल पहले से ही राज्य के 400 स्कूलों में किया जा रहा है।
बिस्वजीत कहते हैं, “विदेश में होने के कारण मैं खुद को हमेशा अपनी माटी से दूर महसूस करता हूँ, हीरो नहीं। असली हीरो तो वो लोग हैं जो एवेटी लर्निंग में शिक्षक, कंटेंट बनाने वाले और केंद्र प्रमुख हैं, जो मेरे सपने को साकार करने में मदद कर रहे हैं। ताकि ग्रामीण भारत का हर बच्चा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल कर सके।”
मूल लेख- Ananya Barua
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