साल 2010 बैच के आईएएस अफसर गंधम चंद्रुडू, आंध्र प्रदेश के करनूल जिले स्थित कोटपाडु गाँव में एक किसान परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। अपने घर में वह पहली पीढ़ी हैं जिन्होंने पढ़ाई की। सिविल सर्विस का एग्जाम पास करने से पहले वे साउथ सेंट्रल रेलवे ज़ोन में टिकट कलेक्टर के पद पर नियुक्त थे।
लेकिन आज वह अनंतपुर के जिला कलेक्टर हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मेरे माता-पिता खेतों में दिहाड़ी-मजदूरी करते थे और मैं अपने घर में पहली पीढ़ी हूँ जो स्कूल-कॉलेज गया और पढ़ाई की। यहाँ तक कि मेरे टिकट कलेक्टर बनने से पहले मेरे घर में किसी ने सरकारी नौकरी तक नहीं की थी।”
शिक्षा:
पांचवीं कक्षा तक, उन्होंने गाँव के ही स्थानीय स्कूल में पढ़ाई की और फिर जवाहर नवोदय विद्यालय में सलेक्शन टेस्ट दिया। इस टेस्ट को पास करने वाले छात्र-छात्राओं को पब्लिक स्कूल एजुकेशनल इंस्टिट्यूट, जवाहर नवोदय स्कूलों में दाखिला मिलता है।
जिला-स्तर के इस टेस्ट को पास करके उन्हें करनूल जिले के बनवासी गांव के जेएनवी स्कूल में दाखिला मिल गया, जहां फीस बिल्कुल ना के बराबर है।
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दसवीं कक्षा तक यहाँ पढ़ने के बाद उन्होंने रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड की परीक्षा दी जो 11वीं-12वीं कक्षा के बच्चों के लिए वोकेशनल कोर्स ऑफर करता है। साउथ सेंट्रल रेलवे ज़ोन में यह टेस्ट पास करने वालों को रेलवे कमर्शियल में वोकेशनल कोर्स में दाखिला मिलता है।
उन्होंने सिकंदराबाद के रेलवे जूनियर कॉलेज से हाई स्कूल पास किया।
“कोर्स पूरा होने के बाद हम सबको रेलवे में नौकरी मिल गयी। साल 2000 में 18 साल की उम्र होने से पहले ही मैं टिकट कलेक्टर बन गया। मैं फुल-टाइम जॉब कर रहा था तो रेग्युलर कॉलेज जाना मुमकिन नहीं था इसलिए मैंने अपनी ग्रैजुएशन कॉमर्स में और पोस्ट-ग्रेजुएशन पब्लिक पॉलिसी विषय में इंदिरा गाँधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी से की,” उन्होंने आगे कहा।
स्कूल की पढ़ाई के बाद जॉब न करने का विकल्प नहीं था क्यूंकि उन्हें अपने बड़े भाई को देखना था, जिन्होंने पैसे न होने के कारण कॉलेज ड्रॉपआउट कर दिया था। इसलिए अपनी एक रेग्युलर सैलरी से वह अपने भाई की पढ़ाई का खर्च उठा पा रहे थे। आज उनके भाई विजयावाडा कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।
लेकिन टिकट कलेक्टर की जॉब से उन्हें कोई संतुष्टि नहीं मिल रही थी। वह कुछ और करना चाहते थे और इसलिए नौ साल बाद उन्होंने सिविल परीक्षा के लिए ट्राई करने की ठानी।
“मैं अपनी आज की सफलता का श्रेय जेएनवी को देता हूँ। मैंने जो कुछ भी वहां सीखा, वह आज भी मेरे साथ है। जो पैसे मैंने बचाए थे उनसे मैंने परीक्षा की तैयारी के लिए किताबें खरीदीं, पर जेएनवी ने जो मेरे लिए नींव रखी और बाद में, मुझे जो आर्थिक स्टेबिलिटी मिली, उससे बहुत मदद हुई। मेरे माता-पिता ने भी मुझे सपोर्ट किया और किसी भी परेशानी में काफी भावनात्मक साथ दिया।”
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साल 2009 में एग्जाम देने से पहले एक साल की तैयारी बिल्कुल भी आसान नहीं थी। वे बहुत छुट्टियाँ भी नहीं ले सकते थे और इसलिए उन्होंने अपने सुपरवाइजर से उन्हें नाईट शिफ्ट देने के लिए कहा। नाईट शिफ्ट में लोग कम होते हैं तो उन्हें पढ़ने का समय मिल जाता था।
वह आगे बताते हैं, “मैं काम के साथ-साथ पढ़ाई भी कर रहा था। मेरी छुट्टियाँ एग्जाम से कुछ दिन पहले स्वीकार हुईं। आप कितने घंटे पढ़ रहे हैं यह मायने नहीं रखता बल्कि आप कितने ज्यादा फोकस से अपनी तैयारी कर रहे हैं वह ज़रूरी है। मैंने पूरे एक साल बिना अपना ध्यान भटकाए हर दिन 8 से 9 घंटे पढ़ाई की।”
परिणाम बहुत ही उम्दा आया। उन्होंने ऑल इंडिया रैंक 198 हासिल की और उन्हें आंध्र प्रदेश कैडर ही मिला।
लोगों की सेवा:
उनकी शुरूआती पोस्टिंग पूर्वी गोदावरी जिले के रंपचोड़वरम में हुई, जहां कोंडारेड्डी, कोंडाकम्मारा, कोंडा डोरा, कोंडाकपू और वाल्मीकि जैसे आदिवासी समुदाय रहते हैं। सितम्बर 2012 से फरवरी 2014 तक उन्होंने लगभग 20,000 ट्राइबल वोटर्स को रजिस्टर करने की प्रक्रिया को हेड किया। इन लोगों ने आज़ादी के बाद कभी भी वोट नहीं किया था।
फिर वे उस साल के जनरल इलेक्शन में पहली बार वोट करने गए।
“किसी को भी वोट डालने के लिए इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड की ज़रूरत होती है लेकिन इन समुदायों के साथ समस्या थी कि इनके पास ये कार्ड नहीं थे। वैसे तो उनके पास वोटर्स के रजिस्ट्रेशन के लिए दूसरे कागजात होने चाहिए, पर इनमें से बहुतों के पास ये कागजात भी नहीं थे। यह बात इन आदिवासी समुदायों में जागरूकता की कमी और प्रशासन की अनदेखी को दर्शाती है। इस तरह के हालातों में मेरे पास यह अभियान चलाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था ताकि यह उनके वोट डालने के डेमोक्रेटिक हक को पूरा करे” उन्होंने कहा।
इन दूरगामी क्षेत्रों में उन्होंने अपनी टीम को कैमरा के साथ भेजा ताकि वे उनकी तस्वीर खींचे, एप्लीकेशन फॉर्म उनके हस्ताक्षर या फिर अंगूठे के निशान के साथ इकट्ठे करें और फिर आगे की प्रक्रिया शुरू की जा सके। जल्द ही उनके वोटर कार्ड बने और उन्होंने 2014 में वोट दिया।
“इस विधानसभा क्षेत्र में मतदान प्रतिशत पहले कभी 60 प्रतिशत से अधिक नहीं गया, लेकिन मेरे अभियान के बाद, मतदान प्रतिशत बढ़कर 77 प्रतिशत हो गया। चुनाव के दौरान मुझे इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी के प्रोजेक्ट अफसर के रूप में पदोन्नत किया गया था, लेकिन फिर भी मैंने इन प्रयासों को चलाए रखा,” उन्होंने बताया।
वहां अपने एक साल के कार्यकाल (2014-2015) के दौरान, उन्होंने वहां बुनियादी सुविधाएँ, सड़क की कनेक्टिविटी, पानी की आपूर्ति और स्थानीय आबादी के लिए अन्य उपलब्ध स्रोतों जैसे कि नरेगा से रोज़गार सुनिश्चित करने की कोशिश की।
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2015-18 के बीच उन्होंने विजयवाड़ा के जॉइंट कलेक्टर के रूप में सेवाएं दीं। यहाँ के वेलफेयर अभियान के साथ-साथ 2016 में कृष्ण पुष्करन (कुंभ मेले के समान) का सफल आयोजन भी उनकी उपलब्धि है। जहां 12 दिनों के मेले में ढाई करोड़ से अधिक भक्तों ने भाग लिया।
इस महीने की शुरुआत में अनंतपुर जिले में अपनी पोस्टिंग से पहले, वह आंध्र प्रदेश शेड्यूल कास्ट कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर थे, यह संगठन अपना व्यवसाय शुरू करने के इच्छुक ज़रूरतमंद समुदायों के लोगों को कम-ब्याज पर लोन मुहैया करता है।
यहाँ पर इस संगठन के प्रमुख के रूप में उनका कार्य यह सुनिश्चित करना था कि जिनके पास व्यापार करने की क्षमता है, उन्हें अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करने में मदद करने के लिए 1 से 45 लाख रुपये तक की राशि कम ब्याज दर से लोन के तौर पर दिया जाए।
अनंतपुर जिले के कलेक्टर के रूप में उनका मुख्य उद्देश्य इस अर्ध-शुष्क क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पौधारोपण करवाना है और साथ ही यहाँ के आर्थिक स्तर को उठाना है क्योंकि यह क्षेत्र चेन्नई-बेंगलुरु जैसे औद्योगिक शहरों के बीच में पड़ता है।
यह जिला रिसोर्स से भरपूर है। “जिले की आर्थिक क्षमताओं को बढ़ाने पर हमारा ध्यान केन्द्रित है। साथ ही, जिले के विकास के लिए क्या ज़रूरतें हैं इस पर भी ध्यान दिया जा रहा है। यही हमारी प्राथमिकताएं होंगी,” उन्होंने अंत में कहा।
संपादन – अर्चना गुप्ता