गाँव में अस्पताल बनाकर बेटे ने किया सब्जी-बेचनेवाली माँ का सपना पूरा

1971 में डॉ. अजय मिस्त्री महज चार साल के थे, जब उन्होंने स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में अपने पिता को खो दिया था। तब से उनकी माँ ने बस एक ही सपना देखा कि गांव में एक अस्पताल बने ताकि हर किसी का समय पर इलाज हो पाए। उनकी माँ सुभासिनी मिश्रा ने सब्जियां बेचकर न सिर्फ अपने बेटे को डॉक्टर बनाया बल्कि अपने सपने को पूरा करके कईयों की मदद का जरिया भी बनीं।

Humanity hospital

सब्जी बेचने वाली एक माँ के सपने को बेटे ने डॉक्टर बनकर किया पूरा और इस तरह गांव में खुला जरूरतमंदों के लिए पहला Free हॉस्पिटल। यह किसी फिल्म की कहानी नहीं है बल्कि असल जिंदगी का किस्सा है।  बात 1971 की है, जब कोलकाता के हसपुकुर इलाके में रहने वाली सुभासिनी मिश्रा ने अपने पति को सही स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में खो दिया था। उस समय उनकी उम्र महज 23 साल की थी और परिवार भी आर्थिक रूप से मजबूत नहीं था। 

अचानक से उनके ऊपर अपने बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आ गई। 

जिसके बाद सुभासिनी ने सब्जियां बेचकर अकेले चार बच्चों की परवरिश की और बस एक सपना देखा कि गांव में जरूरतमंदों के लिए एक अस्पताल खुले।  ताकि कोई और उनके पति की तरह स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव ने जान न गंवाए।  

अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दिन-रात मेहनत करके अपने छोटे बेटे अजय को डॉक्टर बनाया। इस दौरान उनका कई लोगों ने मजाक भी बनाया। लेकिन सुभासिनी ने कभी अपने हौसले को कम नहीं होने दिया। उन्होंने अपने साथ-साथ अपने बेटे को भी जरूरतमंद लोगों की मदद करने की प्रेरणा दी, ताकि डॉक्टर बनकर वह किसी दूसरे शहर जाने के बजाय अपने गांव में रहकर लोगों का इलाज करे।  

माँ-बेटे ने खोला गांव का पहला फ्री अस्पताल

Subhasini mishra at humanity hospital
सुभासिनी मिश्रा

डॉ. अजय ने भी अपनी माँ की 20 सालों की मेहनत को जाया नहीं जाने दिया और नौकरी करने के बजाय 

एक छोटे से बांस के कच्चे-पक्के कमरे में गांव के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का मुफ्त में इलाज करना शुरू किया। समय के साथ 1993 में उन्हें 8000 रुपये का फंड भी मिला जिससे उन्होंने 'Humanity Hospital' नाम से एक छोटा सा अस्पताल बनाकर काम करना शुरू किया।  उनकी नेक पहल ने कई उतार चढ़ाव भी देखे। लेकिन 30 सालों के इस लम्बे सफर में डॉ अजय ने इस अस्पताल को कभी बंद नहीं होने दिया। 

यहीं कारण है कि आज डॉ अजय के इस प्रयास का हिस्सा कई लोग बन चुके हैं जिसके जरिए आज वह न सिर्फ अपने गांव बल्कि हसपुकुर के आस-पास के कई गांवों के लोगों की मदद भी कर पा रहे हैं।  

सच, माँ-बेटे के इस लम्बे संघर्ष और सफलता की कहानी इंसानियत की सच्ची मिसाल है।आप भी Humanity Hospital नाम की नेक पहल में

अपना सहयोग देकर डॉ. अजय और हजारों जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं। अपनी मदद उन तक पहुंचाने के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर संपर्क करें। 


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