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आचार्य विनोबा भावे: वह संत, जिन्होंने दिया लाखों गरीब किसानों को जीने का सहारा

Vinoba Bhave death anniversary

आचार्य विनोबा भावे (Acharya Vinoba Bhave) की गिनती देश के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों और समाज सेवकों में होती है। वह महात्मा गांधी के अनुयायी थे और पूरी जिंदगी उन्हीं की तरह सत्य और अहिंसा की राह पर चलते हुए, गरीब और बेसहारा लोगों के लिए लड़ते रहे।

उनका मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। उनका जन्म 11 सितंबर 1895 को बॉम्बे प्रेसीडेंसी (अब महाराष्ट्र) के गागोडे में एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नरहरि शंभू राव और माँ का नाम रुक्मिणी देवी था। वह अपने चार भाई-बहनों में सबसे बड़े थे।

विनोबा भावे (Vinoba Bhave) की माँ धार्मिक महिला थीं और उनपर अपनी माँ का गहरा प्रभाव था। विनोबा भावे काफी तेज छात्र थे और उनका पसंदीदा विषय गणित था। लेकिन जब वह गुजरात के बड़ौदा में ग्रेजुएशन कर रहे थे, तो उनकी रुचि अध्यात्म की ओर बढ़ने लगी।

बताया जाता है कि बिनोबा भावे 1916 में महात्मा गांधी के कोचरब आश्रम गए, जो अहमदाबाद में है। इसके बाद उन्होंने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिया, लेकिन पढ़ाई जारी रखी और गीता, रामायण, कुरान, बाइबिल जैसे कई धार्मिक ग्रंथों के साथ ही राजनीति, अर्थशास्त्र जैसे कई आधुनिक सिद्धांतों का अध्ययन किया। तब उनकी उम्र सिर्फ 21 साल थी।

आजादी की लड़ाई में लिया बढ़-चढ़कर हिस्सा

विनोबा भावे, महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे और उन्होंने गांधी जी को अपना राजनीतिक और आध्यात्मिक गुरु बना लिया। समय बीतने के साथ गुरु-शिष्य की जोड़ी और मजबूत होती गई और साथ में उन्होंने कई आंदोलन को अंजाम दिया। उन्होंने महात्मा गांधी की अगुवाई में, 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और देशवासियों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर, स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने की अपील की। 

आचार्य विनोबा भावे

गांधी जी, विनोबा भावे से काफी प्रभावित थे और उन्होंने भावे को 1921 में अपने वर्धा आश्रम को संभालने की जिम्मेदारी दे दी। यहीं से उन्होंने ‘महाराष्ट्र धर्म’ नाम से एक मासिक पत्रिका भी निकाली, जो मराठी में प्रकाशित होती थी। इस पत्रिका के जरिए वह लोगों तक वेद और उपनिषद के संदेश पहुंचाते थे। 

आजादी की लड़ाई में भावे के बढ़ते कद को देख, अंग्रेजी हुकूमत परेशान हो गई और शासन का विरोध करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें छह महीने की सजा हुई थी। बाद के वर्षों में विनोबा भावे को कई बार जेल जाना पड़ा। धुलिया जेल में सजा काटने के दौरान वह अन्य कैदियों को ‘गीता’ पढ़ाया करते थे। 

फिर, 1940 में महात्मा गांधी ने उन्हें अंग्रेजों को खिलाफ आवाज़ उठाने वाला पहला व्यक्तिगत सत्याग्रही घोषित किया। इस दौरान उन्हें पांच साल कारावास की सजा भी हुई। विनोबा भावे (Vinoba Bhave) एक बेहद ही शांत और अनुशासित शख्स थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन्होंने उनके सर्वोदय शब्द को अपनाया, जिसका अर्थ है – “सभी के लिये प्रगति”।

भूदान आंदोलन

साल 1947 में आजादी के बाद भारत, भारी उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था और पूरे देश में अशांति का माहौल था। इस दौरान, तेलंगाना (तब आंध्र प्रदेश) में वामपंथियों की अगुवाई में एक हिंसक संघर्ष चल रहा था। यह भूमिहीन किसानों का आंदोलन था। साथ ही, कुछ लोगों की मंशा यह दिखाना था कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था कभी सफल नहीं हो सकती है।

इसके बाद, विनोबा भावे (Vinoba Bhave)18 अप्रैल 1951 को किसानों से मिलने के लिए नलगोंडा के पोचमपल्ली गांव पहुंचे। आंदोलन कर रहे हरिजन किसानों ने उनसे अपनी आजीविका के लिए 80 एकड़ जमीन की मांग की। किसानों ने भावे से कहा कि यदि उनके समुदाय के 40 परिवारों के लिए 80 एकड़ जमीन मिल जाए, तो वे अपना गुजारा आसानी से कर सकते हैं। 

भूदान आंदोलन के दौरान आर्चाय विनोबा भावे

उन्होंने मांग सुनने के बाद, जमींदारों से बात की। उनकी बातों का रामचंद्र रेड्डी नाम के एक जमींदार इतना असर हुआ कि उन्होंने अपनी सौ एकड़ जमीन दान देने का फैसला कर लिया। इससे विनोबा भावे काफी प्रभावित हुए और उन्हें इस घटना को आंदोलन का रूप देने का विचार आया।

लाखों एकड़ ज़मीन दिलवाकर की किसानों की मदद

भावे की अगुवाई में भूदान आंदोलन 13 वर्षों तक चलता रहा। इस दौरान, उन्होंने देश के हर कोने का दौरा करते हुए तकरीबन  58,741 किलोमीटर का सफर तय किया। उन्होंने करीब 13 लाख गरीब किसानों के लिए 44 लाख एकड़ जमीन हासिल की। उनके इस आंदोलन की स्वैच्छिक सामाजिक न्याय के लिहाज से पूरी दुनिया में खूब प्रशंसा हुई। यहां तक कि उत्तर प्रदेश और बिहार में सरकार ने भूदान एक्ट भी पास कर दिया, जिससे जमीन का बंटवारा व्यवस्थित तरीके से हो सके।

वह बड़े किसानों को दान के लिए प्रेरित करने के लिए अक्सर कहा करते थे, “जमीन भी हवा और पानी की तरह है। उस पर सबका अधिकार है। आप मुझे अपना बेटा मानकर अपनी जमीन का छठा हिस्सा दे दीजिए। जिस पर भूमिहीन बस सकें और खेती-किसानी कर अपना पेट पाल सकें।”

सरलता को दिया बढ़ावा 

विनोबा भावे (Vinoba Bhave) भगवद् गीता से काफी प्रभावित थे। उन्होंने भारतीय समाज में सरल जीवन को बढ़ावा देने के लिए कई आश्रम शुरू किए। गांधी जी की शिक्षा के तर्ज पर उन्होंने 1959 में महिलाओं को मजबूती देने के लिए ‘ब्रह्म विद्या मंदिर’ की शुरुआत की। वह गोहत्या और हरिजनों के मैला ढोने के भी सख्त खिलाफ थे। 

भूदान आंदोलन के दौरान हजारों किलोमीटर की पदयात्रा की आचार्य विनोबा भावे ने

विनोबा भावे लेखनी में भी काफी रुचि रखते थे और उनकी मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती जैसी कई भाषाओं पर मजबूत पकड़ थी। उन्होंने स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन और तीसरी शक्ति जैसी कई महत्वपूर्ण किताबें लिखी।

आचार्य विनोबा भावे ने लंबी बीमारी के बाद 15 नवंबर, 1982 को वर्धा में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह वास्तव में एक ऐसे शख्स थे, जिनमें लोग गांधी को देखते थे। वह 1958 रेमन मैग्सेसे पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे। 1983 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

संपादन- जी एन झा

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