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सरफ़रोशी की तमन्ना: स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल की अनकही कहानी!

19 दिसम्बर, 1927 को फांसी पर चढ़ने से पहले बिस्मिल ने आखिरी पत्र अपनी माँ को लिखा था!

“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-कातिल में है।”

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में ये पंक्तियाँ सेनानियों का मशहूर नारा बनीं। 1921 में बिस्मिल अज़ीमाबादी की लिखी इन पंक्तियों को जिस व्यक्ति ने अमर बना दिया वह थे राम प्रसाद बिस्मिल!

बिस्मिल, एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक कवि भी थे, जिन्होंने उर्दू व हिन्दी में ‘राम,’ ‘अज्ञात,’ और ‘बिस्मिल’ उपनाम से बहुत-सी कवितायें लिखी थीं। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक भी थे, जिसमें भगत सिंह व चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे सेनानी शामिल थे।

पर स्वतंत्रता के बाद भारत ने उनके योगदानों को जैसे भुला ही दिया है।

आज द बेटर इंडिया पर पढ़िए देश के इस महान देशभक्त, कवी और जाबांज स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल की अनकही कहानी!

Ram Prasad Bismil (Photo Source)

11 जून, 1887 मे उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में मुरलीधर व मूलमती के पुत्र के रूप में जन्मे बिस्मिल का पालन-पोषण चंबल घाटी के एक छोटे से गाँव में हुआ। किशोरावस्था से ही उन्होंने भारतीयों के प्रति ब्रिटिश सरकार के क्रूर रवैये को देखा था। इससे आहात बिस्मिल का कम उम्र से ही क्रांतिकारियों की तरफ झुकाव होने लगा।

जितनी आसानी से उनके हाथ कलम पकड़ते थे, उतने ही आराम से उनके हाथ पिस्तौल भी चला लेते थे। बिस्मिल ने बंगाली क्रांतिकारी सचीन्द्र नाथ सान्याल और जादूगोपाल मुखर्जी के साथ मिलकर, हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (एचआरए) की स्थापना की- उत्तर भारत स्थित यह ऐसा संगठन था जिसने भारत को अंग्रेज़ी शासन से मुक्त करवाने की कसम खाई थी।

एचआरए के लिए बिस्मिल अपनी देशभक्त माँ, मूलमती से पैसे उधार लेकर किताबें लिखते व प्रकाशित करते थे। ‘देशवासियों के नाम’, ‘स्वदेशी रंग’, ‘मन की लहर’, और ‘स्वाधीनता की देवी’ जैसी किताबें इसका उदाहरण हैं। इन  किताबों की बिक्री से उन्हें जो भी पैसे मिलते उससे वह पार्टी के लिए हथियार खरीदते थे।

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साथ ही, उनकी किताबों का उद्देश्य जन-मानस के मन में क्रांति के बीज बोना था। यह वही समय था जब उनकी मुलाक़ात अन्य क्रांतिकारियों, जैसे अशफ़ाक़ उल्ला खान, रोशन सिंह व राजेंद्र लाहिड़ी से हुई। आगे चलकर ये सभी करीबी दोस्त भी बन गए।

उन्होंने ही चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह जैसे नवयुवकों को हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जोड़ा, जो कि बाद में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन बन गयी। बिस्मिल ने आज़ाद के उनकी कभी शांत न बैठने और नए विचारों के लिए हमेशा उत्साहित रहने वाले स्वाभाव से प्रभावित हो कर, उन्हे ‘क्विक सिल्वर’ का उपनाम दिया था।

Sachindra Nath Sanyal (Photo Source)

बिस्मिल की कहानी अशफ़ाक़ उल्ला खान के जिक्र के बिना अधूरी है। एक जैसी सोच और सिद्धान्त रखने वाले इन दोनों दोस्तों के दिल में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। दोनों साथ रहते थे, साथ काम करते थे और हमेशा एक दूसरे का सहारा बनते थे। बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में एक पूरा अध्याय अपने परम मित्र अशफ़ाक़ को समर्पित किया है।

बिस्मिल और अशफ़ाक़, दोनों ने साथ मिलकर 1925 में काकोरी कांड को अंजाम दिया था। उन्हें महसूस हो गया था कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक संगठित विद्रोह करने के लिए हथियारों की ज़रूरत है। जिसके लिए पैसों के साथ-साथ प्रशिक्षित लोगों की आवश्यकता भी होगी। ऐसे में, इस संगठन ने अंग्रेज़ सरकार की संपत्ति को लूटने का निर्णय लिया।

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9 अगस्त, 1925 की रात को जब शाहजहाँपुर से लखनऊ जाने वाली नंबर 8 डाउन ट्रेन काकोरी पहुँच रही थी, तभी अशफ़ाक़ उल्ला ने सेकंड क्लास कम्पार्टमेंट की चेन खींच दी। अचानक से ट्रेन रुक गयी और अशफ़ाक़ अपने दो अन्य साथियों, सचीन्द्र बक्शी व राजेंद्र लाहिड़ी के साथ उतर गए। यह योजना का पहला चरण था जिसे इन तीनों क्रांतिकारियों ने पूरा किया।

Ashfaqullah Khan (Photo Source)

इसके बाद ये तीनों साथी, बिस्मिल व अन्य क्रांतिकारियों से मिले और ट्रेन के गार्ड को हटा कर उन्होंने सरकारी संपत्ति लूट ली। इस घटना ने अंग्रेजी शासन को हिला कर रख दिया था और उन्होंने लूट के एक महीने के अंदर-अंदर ही 2 दर्जन से ज़्यादा क्रांतिकारियों (जिनमें बिस्मिल भी शामिल थे) को गिरफ्तार कर लिया।

उन पर मुकदमा चला और चार क्रांतिकारी– राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला खान, रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को फांसी की सज़ा सुनाई गयी। इन चारों को अलग- अलग जेलो में बंद कर दिया गया। बाकी सभी क्रांतिकारियों को लंबे समय के लिए कारावास की सजा मिली।

लखनऊ सेंट्रल जेल के बैरक नंबर 11 में जेल की सजा काटते हुए बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा लिखी, जिसे 1928 में पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रकाशित किया। इस आत्मकथा की गिनती आज भी हिंदी साहित्य की बेहतरीन कृतियों में होती है। अपने कारावास के समय ही बिस्मिल ने ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ गीत की रचना भी की। यह गीत भी स्वतंत्रता संग्राम के चर्चित गीतों में से एक है।

Hindustan Socialist Republican Army established in 1928: (Clockwise from bottom right) Chandrasekhar Azad, Ashfaqulla Khan, Ram Prasad Bismil, Rajguru, Sukhdev, Bhagat Singh. (Photo Source)

19 दिसम्बर, 1927 को फाँसी पर चढ़ने से पहले बिस्मिल ने आखिरी पत्र अपनी माँ को लिखा था। होठों पर ‘जय हिन्द’ का नारा लिए मौत को गले लगाने वाले इस सेनानी को पूरे देश ने नम आँखों से विदाई दी। राप्ती नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया था और यहां भारत माँ के इस वीर बेटे को श्रद्धांजलि देने के लिए सैंकड़ों भारतीयों की भीड़ उमड़ी। और भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी देश को अलविदा कह गया।

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आप यहां बिस्मिल अज़ीमाबादी की वह महान कविता पढ़ सकते हैं, जिसे गुनगुनाते हुए न जाने कितने ही आज़ादी के परवाने फांसी के फंदे पर झूल गए-

कविता ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’:

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है?

करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में है।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां!
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है?
खींच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

है लिये हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर
और हम तैयार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

हाथ जिनमें हो जुनूँ, कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पे कफ़न
जाँ हथेली पर लिये लो बढ़ चले हैं ये कदम
ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

यूँ खड़ा मक़तल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफानों की टोली और नसों में इंक़लाब
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमें न हो खून-ए-जुनूँ
क्या लड़े तूफाँ से जो कश्ती-ए-साहिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।

मूल लेख: संचारी पाल 
संपादन: निशा डागर

Summary: Ram Prasad Bismil (11 June 1897 – 19 December 1927) was an Indian revolutionary who participated in Mainpuri conspiracy of 1918, and the Kakori conspiracy of 1925, and struggled against British imperialism. As well as being a freedom fighter, he was a patriotic poet and wrote in Hindi and Urdu using the pen names Ram, Agyat and Bismil.


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