चीर के ज़मीन को उम्मीद से बोता हूँ!!
किसान का बेटा हूँ, चैन से सोता हूँ !!
यह कहना है बी.ए तृतीय वर्ष के छात्र नारायण लाल धाकड़ का। राजस्थान के चितौरगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव, जयसिंहपूरा के निवासी 20 वर्षीय नारायण खूब आगे तक पढ़ना चाहते है, लेकिन पढ़-लिखकर भी वे खेती-किसानी ही करना चाहते हैं। साथ ही देश भर के किसानों को आत्मनिर्भर बनाना उनके जीवन का लक्ष्य है, जिसकी शुरुआत वे तकनीकी के सहारे कर चुके है।
किसानों की मदद के लिए पिछले साल शुरू किये गए उनके यूट्यूब चैनल ‘आदर्श किसान सेंटर’ के आज 3 लाख से भी ज़्यादा सब्सक्राइबर हैं!
कैसे हुई शुरुआत :
खेती-किसानी से नारायण का नाता अपनी माँ के कोख़ से ही जुड़ गया था। नारायण का अभी जन्म भी नहीं हुआ था। उनकी माँ सीता देवी 5 माह की गर्भवती थीं, जब नारायण के पिता का दिल का दौरा पड़ने के कारण स्वर्गवास हो गया। नारायण की दोनों बड़ी जुड़वाँ बहनें उस समय मात्र 2 साल की थीं। ऐसे में इस परिवार पर मानों दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। पर सीता देवी ने हिम्मत न हारते हुए, अपने पति के खेत की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कन्धों पर उठा ली।
खेती में लेबर की समस्या हमेशा से ही रही है, यहाँ भी थी। ऐसे में नारायण की माँ, गर्भावस्था में भी दोनों बच्चियों को साथ लिए खेतों में मज़दूरी करती। नारायण के जन्म के बाद, इस दूध-मुँहे बालक को लिए वे काम करती रहीं। धीरे-धीरे समय बीता और नारायण इतना काबिल हो गया कि खेतों में अपनी माँ की मदद कर सके।
“मैंने 12-13 साल की उम्र से ही माँ के साथ खेतों में काम करना शुरू कर दिया था। मेरे पिताजी की 7.5 एकड़ ज़मीन थी, जिसकी उपज हमारे छोटे से परिवार के लिए काफ़ी थी, लेकिन खर्चा बढ़ता ही जा रहा था,“ नारायण ने द बेटर इंडिया के साथ बातचीत के दौरान बताया।
अपनी पढ़ाई के साथ, नारायण नियमित रूप से अपनी माँ का खेती में हाथ भी बंटाने लगे। बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें लगा कि खेती ही उनका जीवन है और इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि आगे की पढ़ाई वे पार्ट टाइम करेंगे ताकि खेती को ज़्यादा समय दे सके और अपनी माँ को ज़्यादा आराम भी!
माँ को आराम दिलाने के लिए करने लगे जुगाड़ :
“माँ अकेली थी। कई बार लेबर न मिलने से फ़सल की कटाई में देर हो जाती और हमें नुकसान उठाना पड़ता। पर हम सब छोटे थे…चाहने पर भी कुछ नहीं कर पाते थे,” नारायण भावुक होते हुए बताते हैं।
अपनी माँ को खेत में दिन-रात मेहनत करता देख, नारायाण हमेशा यह सोचते कि वे ऐसा क्या करें, जिससे उनकी माँ को थोड़ा आराम मिले। इसके अलावा उन्हें कई बार अपनी सिमित कमाई का एक मोटा हिस्सा कीटनाशक और रसायनिक उर्वरकों में खर्च करना बहुत अखरता। इसलिए वे इन खर्चों से पीछा छुड़ाने के उपाय ढूंढने लगे।
“नील गाय को खेत से दूर रखने के लिए माँ को रात भर खेत पर रहकर पहरा देना पड़ता था। कीट और पक्षियों को भी दूर रखने के लिए हमें कई तरह के कीटनाशक खरीदने पड़ते थे, जिनका खर्च न होता, तो हमें और मुनाफ़ा हो सकता था। इसलिए मैं सोचता रहता था कि कुछ जुगाड़ करके इन समस्याओं का हल निकाल सकूँ,” नारायण याद करते हुए बताते हैं।
कुछ ही समय में नारायण ने एक ऐसा जुगाड़ बना डाला, जो इन तीनों मुसीबतों को एक साथ टाल सकती थी।
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नारायण का पहला जुगाड़!
हर किसान को यह पता है कि नील गाय रौशनी से डरती है। इसलिए नारायण ने एक खाली तेल के पीपे को चारो ओर से काट कर बीच में दिया जला दिया। इस पीपे को उन्होंने खेत के बीचो-बीच इतनी ऊँचाई पर लगा दिया जहाँ से रौशनी दूर से दिखती रहे। साथ ही इस पीपे के भीतर पानी भर दिया। इससे जो भी कीट रात में आते, वो रौशनी की तरफ आकर्षित होकर पानी में गिर जाते और मर जाते। जब भोर होते ही चिड़िया खेत में आती, तो वो फसलों को न चुगते हुए, इन कीटों को चुग कर अपना पेट भर लेती।
इस तरह यह प्रयास सफ़ल रहा!
इस जुगाड़ को आप यहाँ देख सकते हैं!
दूसरे किसानों तक अपना ज्ञान पहुंचाने के लिए की आदर्श किसान सेंटर की शुरुआत :
पहले जुगाड़ के सफ़ल होने के बाद नारायण खेती को कारगर करने के और भी तरीकें ढूंढने लगे। इंटरनेट के माध्यम से उन्होंने कृषि की काफ़ी जानकारी हासिल कर ली थी। जैविक खाद बनाना, किसानों के लिए नए-नए आविष्कार और ऐसी कई ज्ञानवर्धक चीज़ों की उन्हें यूट्यूब पर जानकारी मिली। ऐसे में उन्होंने सोचा कि क्यूँ न वे खुद अपने ज्ञान को यूट्यूब के ज़रिये किसानों तक पहुंचाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाएं। इस तरह साल 2017 में शुरुआत हुई उनके यूट्यूब और फेसबुक चैनल ‘आदर्श किसान सेंटर’ की।
“शुरुआत में तो बहुत कम किसान इससे जुड़े पर मैं वीडियो बनाता गया और किसान जुड़ते गए। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एक साल के अन्दर ही 3 लाख से भी ज़्यादा किसानों से जुड़ पाऊंगा, पर यह चमत्कार बस हो गया,” यह बताते हुए नारायण की आवाज़ में ख़ुशी साफ़ ज़ाहिर हो रही थी।
यूट्यूब से हो रही कमाई को लगाते हैं नए आविष्कार करने में
नारायण अपने चैनल पर न केवल नए जुगाड़ के बारे में बताते है, बल्कि उनके वीडियोज़ में किसानों को प्रेरित तथा आत्मनिर्भर करने के लिए सारी जानकारी मौजूद होती हैं। स्थानीय कृषि विभाग से निरंतर संपर्क में रहने वाले नारायण, किसी भी नयी स्कीम या नियम के घोषित होते ही उसकी विस्तृत तथा सामान्य भाषा में जानकारी का वीडियो बना देते हैं।
इसके अलावा जैविक खाद बनाने से लेकर हर नयी तकनीक की जानकारी भी आपको इनके चैनल पर मिल जाएगी। इतना ही नहीं, वे देश भर के सफ़ल किसानों की कहानियाँ भी सुनाते हैं। ऐसे में उनके कई ऐसे वीडियोज़ हैं, जिन्हें 10 लाख से भी ज़्यादा लोग देख चुके है। और अब नारायण की यूट्यूब से भी हर साल 30-32 हज़ार रूपये की कमाई होने लगी है। पर उनका मानना है कि यह किसानों का ही पैसा है और इसे वे किसानों की भलाई के लिए ही खर्च करते हैं। इन पैसों को वे नए-नए उपकरण बनाने में लगाते हैं और उन्हें बनाने की विधि किसानों तक पहुंचाते हैं!
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अपनी खेती में बदलाव करके की तरक्की
जहाँ नारायण के माता-पिता रसायनों का इस्तेमाल करके पारंपरिक खेती करते थे, वही इस युवक ने यह समझा कि रासायनिक खेती से केवल नुकसान ही नुकसान है। इसलिए उन्होंने अपने खेत में ही जैविक खाद का इस्तेमाल करके जैविक खेती की शुरुआत कर दी है। इसके अलावा समय-समय पर अलग-अलग प्रयोग कर, अब उन्होंने खेती में भी तरक्की कर ली है।
“खेती करते हुए आपको कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। पर जहाँ मुसीबतें है वहां उनके समाधान भी हैं, और ये समाधान खेत में ही छुपे होते हैं, नारायण मुस्कुराते हुए कहते है।
कौनसे बदलाव किये :
- मल्टी क्रोप्पिंग याने की मिश्रित खेती
जहाँ पारंपरिक खेती में केवल एक ही तरह की फ़सल उगाने की परम्परा है, वहीं नारायण ने मिश्रित खेती की राह चुनी। अब वे एक ही सीज़न में दो-दो फ़सलें उगाते हैं, जिससे मुनाफ़ा भी बढ़ा है। फ़िलहाल वे अपने खेत में मक्का, मूंगफली, गेहूं, चना, मूंग और कपास उगाते हैं।
नारायण का मानना है, “लगातार एक ही फ़सल लगाने से ज़मीन की उर्वरक शक्ति कम हो जाती है. उत्पादन भी कम होती जाती है. बदल बदल कर फ़सल लगाने से उत्पादन भी ज़्यादा होता है और भूमि की उर्वरक शक्ति भी बरकरार रहती है।“
- चने की फ़सल की ऊपर से की छटाई
आम तौर पर चने की फ़सल की छटाई नहीं की जाती, पर नारायण ने जब यह प्रयोग किया तो इससे ऊपर से और शाखाएं फूटी और उपज में बढ़त हुई।
“जैसे ही चना 30-35 दिन का हो जाता है तो 3जी कटिंग करते हैं। इस तरीके में ऊपरी शाखाओं को काट देते है, जिससे चने की फुटन ज़्यादा होती है और लगभग 10-15 प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ता है,” नारायण ने बताया।
- कपास की फ़सल के बीच शकरकंद
कपास को बेड (ज़मीन से थोड़ा ऊपर लंबी सी क्यारी) पर लगाया जाता है। इस तरीके की फसलों में दो क्यारियों के बीच की खाली जगह रह जाती है। कपास की खेती करते वक़्त नारायण ने उस खाली जगह पर शकरकंद की इंटर क्रोप्पिंग की। इससे यह फ़ायदा हुआ कि कपास की जो खरपतवार (weeds) होती है, वह शकरकंद की बेलों के निचे दब गए और इससे खरपतवार को नियंत्रित करना आसान हो गया और उन्हें निकालने के लिए लेबर नहीं लगानी पड़ी। साथ ही दो फ़सलें एक साथ लगाने पर आमदनी भी बढ़ी।
- मूंग लगाकर की नाइट्रोजन की पूर्ती
मूंग की फ़सल ज़मीन में नाइट्रोजन छोड़ती है, इस तथ्य को जानने के बाद नारायण ने कपास में नाइट्रोजन की पूर्ती के लिए साथ में मूंग लगाये। इससे उनके कपास की पैदावार भी बढ़ी और गुणवत्ता भी।
“हम किसानों को समय के साथ बदलना पड़ेगा, पारंपरिक खेती को छोड़, हाई टेक खेती को अपनाना होगा। अपने खेत को केवल खेत नहीं प्रयोगशाला समझे और नए-नए प्रयोग करते रहें। युवा किसानों से मेरा अनुरोध है कि वे अपने खेत छोड़ कर न जाए बल्कि अपनी शिक्षा का उपयोग खेती को आगे बढ़ाने में करें, तभी देश का किसान आगे बढ़ सकता है,” नारायण किसानों को यह सन्देश देना चाहते हैं।
इन छोटे-छोटे बदलावों को करके और अपने बनाए उपकरणों का इस्तेमाल करके नारायण सफ़लता से जैविक खेती कर रहे हैं और सलाना 4-5 लाख रूपये कमा लेते हैं। इसी तरह धैर्य और मेहनत से काम करते हुए, नारायण ने अपनी दोनों बहनों की भी शादी कराई तथा अपनी माँ को भी पूरा आराम दिया।
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सीता देवी अब कभी-कभी ही खेत पर जाती हैं और जब देश भर के किसान उनके बेटे की तारीफ़ करते हैं, तो गर्व से उनका सर ऊँचा हो जाता है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि नारायण के पास न तो लैपटॉप है, न कैमरा और न ही वीडियो बनाने के बड़े-बड़े साधन, फिर भी वह किसानों की मदद करने का जज़्बा लिए किसी तरह अपने फ़ोन से ही वीडियो बनाकर निरंतर उनकी सेवा करते जा रहे हैं!
यदि आप इस युवा किसान की किसी भी रूप में सहायता करना चाहते हैं या इनसे जुड़ना चाहते हैं, तो इनसे 7742684130 या narayan4130@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं!
जय किसान!