पानी पर बसे हैं घर, चम्बा के इस गाँव में पर्यटन का अलग है अंदाज!

‛नॉट ऑन मैप’ में गांवों की वही तस्वीर टूरिस्ट को दिखाई जाती है जैसा गाँव होता है, कुछ भी गलत या जो नहीं है उसे दिखाने की कोशिश कभी नहीं की जाती।

फलता की यह कहानी हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले के चमिनो गाँव के उन उत्साही युवाओं की है, जो अपनी ग्रामीण विरासत को सहेजने के लिए एकजुट होकर आगे आए हैं। यह उत्साही युवा देशभर के ऐसे हिस्सों को राहगीरों के सामने रख रहे हैं जो नक़्शे पर दिखाई ही नहीं देते। वे यह कार्य एक स्टार्टअप के जरिये कर रहे हैं। जिसकी शुरुआत मनुज शर्मा और कुमार अनुभव ने की है।

इस स्टार्टअप का नाम है ‛नॉट ऑन मैप’। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, वह जगह जो मानचित्र पर नहीं है या वह लोग जो मुख्य धारा से कटे हुए हैं। ऐसी ही जगहों और ऐसे लोगों को नक्शे पर लाना इन युवाओं का काम है।

‛नॉट ऑन मैप’ की शुरुआत 2015 में हुई थी। स्टार्टअप का मुख्य उद्देश्य देश के हृदय स्थल कहे जाने वाले गांवों में बसने वाली आम जनता तक ऐसे लोगों को पहुँचाना हैं, जो गांवों को जानना, उसकी संस्कृति को समझना और उससे जुड़ना चाहते हैं। इनकी सोच है कि सही मायनों में भारत जिस सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, वही सुंदरता लोगों को दिखाई जाए।

जो लोग प्रकृति प्रेमी हैं, गांवों के प्रेमी हैं, गांवों को देखना, समझना चाहते हैं, गांवों की आत्मा को छूना चाहते हैं, अनछुए-अनदेखे भारत को देखना चाहते हैं, वे इनके जरिये इस सपने को पूरा कर सके। 

इस इनिशिएटिव के तहत कुछ गांवों को गोद लिया गया है, जिनमें यहाँ के ग्रामीणों से मिलकर आपसी समझाइश के बाद सामुदायिक आधारित पैटर्न को बढ़ावा दिया जा रहा है।

मनु शर्मा बताते हैं, “मैं हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के चमिनो गाँव का रहने वाला हूँ। ‛नॉट ऑन मैप’ नाम से हमारा इनिशिएटिव है जो इसी गाँव से शुरू हुआ था। आज हमारा यह विचार भारत के 8 राज्यों में काम कर रहा है। बुकिंग डॉट कॉम वेबसाइट द्वारा हमारे इनिशिएटिव को वर्ल्ड के टॉप 10 बूस्टर स्टार्टअप्स में शामिल किया गया था, जहाँ प्रतियोगिता में हमने पूरी दुनिया में तीसरा स्थान प्राप्त किया।”

चमिनो – ‘नॉट ऑन मैप’ का पहला गाँव

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चमिनो गाँव के ग्रामीण।

चमिनो गाँव चंबा जिले बरौर पंचायत में आता है, जिसमें पांच उप वार्ड है। तकरीबन 300 से 400 की जनसंख्या वाले इस गाँव में चंबा स्टाइल में बने 200 साल से भी ज्यादा पुराने घर हैं। इतना समय बीतने के बाद भी इन मकानों में किसी तरह का कोई रिनोवेशन नहीं किया गया है और न ही किसी चीज़ से छेड़खानी की गयी है। वे घर के कॉन्सेप्ट पर काम करते हैं, इसलिए डुप्लेक्स हाउस को भी प्राथमिकता देते हैं, ताकि एक पूरा परिवार आसानी से रह सके।

जब मनुज और कुमार ने इस इनिशिएटिव की शुरुआत की थी, तब तक लोग चमिनो का नाम तक नहीं जानते थे। ऐसे में इन्होंने तय किया कि जितने भी लोग यहाँ आये, क्यों न उन लोगों को ठीक वैसी ही सुविधाएं दी जाएं, जो पहले इन गांवों में हुआ करती थीं। ठीक वैसी ही बुनियादी सुविधाएं फिर से प्रदान करें, वही संस्कृति फिर से जिंदा करके दिखाएं, ताकि लोग उनसे जुड़ सके।

ऐसे में उन्होंने ‘नॉट ऑन मैप’ की कल्पना को धरातल पर उतारा और टूरिस्ट्स को ऐसे गांवों से जोड़ने के अपने उद्देश्य में लग गए।

एचटूओ हाउस – वॉटर मिल्स को बचाने की एक कोशिश

बाएं – नीचे पानी के घराट, दायें – ऊपर बनें खूबसूरत H2O हाउस

मनुज और कुमार का उद्देश्य अपने स्टार्टअप  के ज़रिये विलुप्त हो रही पुरानी घराट यानी वॉटर मिल्स को बचाना भी था, जोकि लगातार होती पानी की कमी के कारण खात्मे की ओर हैं। इसके लिए इन युवाओं ने इन जगहों पर रुकने की कुछ आधारभूत व्यवस्था की, जिससे इन वॉटर मिल्स को बचाया जा सके। वॉटर मिल्स पर बनें इन घरों का नाम रखा गया एचटूओ हाउस (H2O House)।

“चमिनो गाँव के इस एचटूओ हाउस की बात करें, तो यह हमारे पूर्वजों की संपत्ति है। यहाँ वर्षों पुरानी घराट अर्थात वॉटर मिल्स हैं। पूरे हिमालय में तकरीबन 4 से 5 लाख वॉटर मिल्स हुआ करती थी, जो अब लगभग विलुप्त हो चुकी हैं। इस घर का नाम एचटूओ हाउस रखने का कारण भी यही था कि पानी इस घर के नीचे से गुजरता हुआ चारों दिशाओं में बिखरता है। पानी की कलकल के बीच यहाँ रहना एक नैसर्गिक आनंद का अनुभव देता है,” मनुज शर्मा ने बताया।

 

युवाओं का पलायन रोक, यहीं दिया रोज़गार 

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‛नॉट ऑन मैप’ से जुड़े चमिनो गाँव के युवाओं की टीम।

‘नॉट ऑन मैप’ की इस पूरी सोच के पीछे जो दूसरा उद्देश्य काम कर रहा था, यह था कि गाँव के युवाओं को जोड़कर उन्हें समझाया जाए कि बाहर जाने से बेहतर है आप अपने गाँव में, अपने घरों में रहकर अनूठे किस्म का रोजगार विकसित करें।

खजियार के पास भलोली गाँव है, जहाँ पहुंचने के लिए तकरीबन एक घंटा पैदल चलना पड़ता है। इस गाँव के ज्यादातर युवा रोजगार के चलते बाहर रहते हैं।

वैसे तो यह सभी युवा किसी न किसी रूप में टूरिज्म के काम से जुड़े थे, लेकिन किसी अन्य शहर या राज्य में जाकर काम कर रहे थे। ऐसे में उनकी उसी स्किल्स को उनके ही घर-गाँव में काम लेकर उनको स्वरोजगार से जोड़ने का कार्य इनकी टीम ने किया।

‛नॉट ऑन मैप’ की बदौलत पहले जो युवा बाहर जाकर नौकरों के रूप में कार्य करते थे, अब वही युवा अपने ही गाँव-घर में मालिक की तरह काम कर रहे हैं। इन युवाओं की टोली आर्थिक रूप से सुदृढ़ हुई है और आज अपने ही गांवों को विकसित करने में अपना अमूल्य योगदान दे रही है। 

 

पुरानी चीज़ों का सम्मान करना जानते हैं ये युवा 

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पुरानी झोंपड़ी को सजा कर नया रूप दिया गया है।

‛नॉट ऑन मैप’ की सोच पर इन युवाओं ने गाँव को रिस्ट्रक्चर किया। इसके तहत पूरे मामले में गाँव को नया नहीं बनाना था, लेकिन गाँव में मौजूद कुछ व्यवस्थाओं में सुधार करना था ताकि लोगों को गाँव की ओर आकर्षित किया जा सके। किसी भी पुरानी संपत्ति से किसी तरह की कोई भी छेड़खानी न करते हुए, यहाँ की वॉटर मिल यानी घराट के ऊपर फैमिली रूम तैयार किया गया। पुरानी पहाड़ी स्टाइल पर ऐसे घरों को बनाया गया, जिनकी हाइट थोड़ी कम होती थी। इन घरों में देवदार की लकड़ियों का प्रयोग किया गया। अलमारी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए पाइनवुड को इस्तेमाल किया गया। छत भी पुराने समय की देवदार की लकड़ी से बनायी गयी। टूटे हुए पेड़ के तने को टेबल का रूप दिया, तो पुराने जमाने के शटर वाले टीवी को किचन के सर्विस विंडो के रूप में काम में लिया गया।

 

शानदार व्यवस्था की जगह सच बताकर बुलाया जाता है टूरिस्ट को

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गाँव की महिला से रोटी बनाना सीखता एक पर्यटक।

 

 

‛नॉट ऑन मैप’ का टैगलाइन ‛लिव लाइक लोकल्स’ है। जिसका अर्थ है आप लोग स्थानीय लोगों की तरह ही आए, यहाँ के लोगों की तरह रहें और यहीं की जिंदगी को जिए, यही इस स्टार्टअप का उद्देश्य भी है।

‛नॉट ऑन मैप’ में गांवों की वही तस्वीर टूरिस्ट को दिखाई जाती है जैसा गाँव होता है, कुछ भी गलत या जो नहीं है उसे दिखाने की कोशिश कभी नहीं की जाती। यहां आए टूरिस्ट, टूरिस्ट न होकर परिवार का हिस्सा होते हैं। जिस तरह यह ग्रामीण अपने परिवार में काम करते हैं, उसी तरह यह टूरिस्ट भी इन ग्रामीणों के साथ रहकर इनके कामों में सहभागी बनते हैं।

इसे लेकर मनुज कहते हैं, “हो सकता है गाँव में आने वाले टूरिस्ट को 2 दिन तक लाइट ही न मिले क्योंकि लाइट की व्यवस्था हमारी सुविधाओं से बाहर है। हम टूरिस्ट को किसी भी तरह का झूठ बोलकर या सुविधाओं के नाम पर बरगला कर अपने गाँव में कभी नहीं बुलाते, उन्हीं टूरिस्ट पर फोकस करते हैं, जिनके दिलों दिमाग में प्रकृति, ग्रामीण जीवन देखने के सपने होते हैं और वे असली भारत की छवि देखना चाहते हैं।”

टूरिस्ट भी बन जाते हैं मेज़बान 

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चमिनो गाँव में आए पर्यटक स्थानीय लोगों के साथ।

गाँव के युवाओं को इस कार्य के लिए प्रशिक्षित करने तक के खर्च को भी ‛नॉट ऑन मैप’ वहन करता है। उनकी कोशिश रहती है कि वे गाँव के युवाओं को भी एक्सपोजर दिलाने में मदद करें। साथ ही कुछ बाहर से युवा आकर भी यहाँ के घरों को रिस्टोर करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे ही महाराष्ट्र के सातारा से आई श्रद्धा भी इन घरों को बदलने के लिए काम कर रही हैं।

वह कहती हैं, “मैं पेशे से एक आर्किटेक्ट हूँ। पिछले सालभर से घूमकर गांवों को समझ रही हूँ। पहले लद्दाख में थी, फिर कश्मीर में और अभी हिमाचल में हूँ। पुराने घरों को रीस्टोर करने में मेरी रूचि है, इसलिए मैं यहां कार्य कर रही हूँ। मेरी इच्छा है कि इस तरह के काम के लिए देश के बाकी युवाओं को भी आगे आना चाहिए, ताकि हमारी संस्कृति बच सके।”

 

प्रॉफिट शेयर मॉडल, जिसमें ग्रामीणों को रखा गया सबसे ऊपर!

‛नॉट ऑन मैप’ का प्रॉफिट शेयर मॉडल कुछ इस तरह डिजाईन किया गया है कि बुनियादी खर्चों को रखकर बाकी का 70 से 75% पैसा ग्रामीणों को दे दिया जाता है, ताकि ग्रामीण अपने गाँव की बुनियादी सुविधाओं में और सुधार कर सके, जिसकी वजह से अधिक से अधिक टूरिस्ट इन गांवों की ओर रुख करें और गांवों के साथ-साथ ‛नॉट ऑन मैप’ का काम भी फले-फूले।

गाँव के लोग ‛नॉट ऑन मैप’ में दो तरीके से काम करते हैं – पहला तो यह कि वह पूरी तरह उन्हीं के साथ काम करें, दूसरा यह कि वे सीधे तौर पर भी टूरिस्ट को अपने घरों में रोक सकते हैं और उन्हें गाँव की ज़िंदगी से रू-ब-रू करवा सकते हैं। इसके लिए भी ‛नॉट ऑन मैप’ ने एक नया विचार तैयार किया है कि अगर कोई टूरिस्ट किसी के यहाँ रुक गया हैं तो वह खाना किसी और व्यक्ति के घर खाए ताकि बराबर रूप से गाँव वालों को आमदनी हो सके।

अब आती है पैकेज की बात कि वे टूरिस्ट से किस तरह डील करते हैं तो इसका सीधा जवाब यही है कि अभी तक ऐसा कोई प्रारूप तैयार नहीं किया है कि किस टूरिस्ट से कितना पैसा लेना है। देशभर में उनके इनिशिएटिव से जुड़े स्थानों पर रुकने के लिए 300 रुपए से लेकर 2000 रुपए प्रति दिन तक का टैरिफ है।

अंत में मनुज कहते हैं, “हम किसी भी रूम को प्रमोट नहीं करते। हम सिर्फ इतना कहते हैं, आइये, अपने घर में रुकिए और घर की फीलिंग लीजिए। जिस तरीके से 200 साल पहले हमारे बुजुर्ग इनमें रहते थे, आप भी उसी आनंद को अनुभव कीजिए।”

बेशक, ‘नॉट ऑन मैप’ की यह मुहीम लोगों को उस भारत से मिलाने में कारगर साबित होगी जो वाकई देश के सुदूर क्षेत्रों के गांवों में बसता है। साथ ही गाँव के लोगों की संस्कृति को बचाने और उनको रोजगार के साधन उपलब्ध कराने में भी उनकी यह मुहीम बड़ी भूमिका निभा सकती है।

अगर आपको ‘नॉट ऑन मैप’ की मुहीम अच्छी लगी और आप उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो 96630 15029 पर बात कर सकते हैं। आप उन्हें ई-मेल भी कर सकते हैं।

 

संपादन : भगवती लाल तेली


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