“जवां होके खिदमत करे हम जहाँ की,
बढ़े शान हमारे हिन्दोस्तां की!”
इन दो पंक्तियों में 1300 की आबादी वाले एक गाँव की सोच निहित है। यह नारा है गुजरात के साबरकांठा जिले में ईडर तालुका की जेठीपुरा ग्राम पंचायत का। एक शताब्दी से भी ज़्यादा पुराने इस गाँव का नाम आज देश के आदर्श और स्मार्ट गांवों में शामिल होता है।
पिछले सात सालों से सरपंच के पद पर कार्यरत अहसान अली बट्ट ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया कि उनके गाँव में कभी भी ग्राम पंचायत के लिए चुनाव नहीं होते हैं, बल्कि सभी गाँव वाले साथ में मिलकर गाँव से ही किसी एक व्यक्ति को सर्व-सम्मिति से चुनकर सरपंच बनाते हैं। इस तरह जेठीपुरा गाँव में ‘चुनाव नहीं चयन‘ होता है।
ग्रेजुएशन तक पढ़े अहसान अली को उनके मददगार और खुशनुमा व्यवहार के चलते गाँववालों ने चुना। और अहसान अली भी सभी की उम्मीदों पर खरे उतरे हैं। अपने कार्यकाल में उन्होंने सरकार और अपने गांववालों के सहयोग से गाँव का स्तर पूरे देश में ऊँचा किया है।
सामुदायिक पहलों से हो रहे हैं विकास कार्य
गाँव में हुए सभी विकास कार्यों में गाँव के लोग आगे बढ़कर अपना योगदान देते हैं। आज जेठीपुरा में मूलभूल सुविधाओं के साथ-साथ सभी डिजिटल और तकनिकी सुविधाएँ भी हैं। एक तरफ जहाँ गाँव के सभी लोग सार्वजनिक कार्यों के लिए श्रमदान करते हैं तो वहीं पूरा गाँव वाई-फाई से भी लैस है।
“हमारे गाँव में सभी काम गाँव वालों की सहमती से होते हैं। गाँववाले विकास कार्यों में आर्थिक योगदान भी देते हैं। गाँव में लाइब्रेरी, मेडिकल स्टोर, आरओ प्लांट, हॉस्पिटल आदि बनाने के लिए गाँव के लोगों ने ही चंदा इकट्ठा किया था। हर साल गाँव के लिए पैसा इकट्ठा करके गाँव की ज़रूरत के हिसाब से विकास करवाते हैं,” अहसान अली ने कहा।
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गाँव के पक्के रास्ते, सीवेज की सुविधा, पूर्ण बिजलीकरण, हर गली-मोहल्ले में लगी एलईडी स्ट्रीट लाइट्स और हर घर में शौचालय, पिछले कुछ सालों में पूरे किये गए उम्दा कार्यों में शामिल होते हैं। आज जहाँ शहरों में भी लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं, वहीं पानी-रहित क्षेत्रों में आने वाली इस ग्राम पंचायत ने अपने गाँव के हर घर में पानी पहुँचाया है।
सरपंच बनने के बाद अहसान अली ने सबसे पहले पानी की समस्या को हल करने का बीड़ा उठाया। वे बताते हैं कि उनके गाँव में पानी बिल्कुल भी नहीं था और इसके चलते गाँव के लोगों को हर रोज़ बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता था। “गुजरात सरकार के वास्मो संगठन की मदद से स्वजल धारा योजना के तहत हमने गाँव से लगभग 3 किलोमीटर दूर एक कुआं खुदवाया और फिर इस कुएं से लेकर गाँव तक पाइपलाइन बिछवाई गयी।”
गाँव में ही एक जगह लगभग 50 हज़ार लीटर की क्षमता का एक वाटर टैंक स्थापित करवाकर पाइपलाइन को इससे जोड़ा गया। और इस टैंक से गाँव के हर एक घर में पानी का कनेक्शन है। पेयजल की सुविधा के लिए गाँव वालों ने मिलकर सामुदायिक आरओ प्लांट लगवाया है।
अहसान अली बताते हैं कि यह आरओ प्लांट सरकारी नहीं है, बल्कि गाँव द्वारा ही प्राइवेट तौर पर करवाया गया है। इसलिए इसके रख-रखाव की ज़िम्मेदारी ग्राम पंचायत और गाँव पर है, जिसके लिए सभी लोग यहाँ से पानी लेने के लिए टोकन के 5 रूपये देते हैं। अब गाँव में पानी से संबंधित कोई भी समस्या न हो, इसके लिए गाँव की ‘पानी समिति’ पूरी मेहनत और लगन से काम करती है। यह ‘पानी समिति’ गाँव के ही कुछ बड़े-बुजूर्ग और युवाओं का समूह है, जिनपर गाँव के पेयजल की सुविधा का ज़िम्मा है।
विकास कार्यों का मुआयना करने के लिए हैं 33 समितियां
गाँव में स्वच्छता समिति, वृक्षारोपण समिति, गृहउद्योग समिति आदि समेत कुल 33 समितियां हैं। ये समितियां ग्रामवासियों के ही अलग-अलग समूह हैं, जिन पर गाँव के विकास से संबंधित अलग-अलग जिम्मेदारियां हैं।
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“हमें गाँव की साफ़-सफाई के लिए अलग से को मज़दूर रखने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि स्वच्छता समिति के सदस्य नियमित रूप से पूरे गाँव की सफाई करते हैं। कूड़े-कचरे को इकट्ठा करने के लिए हमने एक ट्रेक्टर-ट्रॉली रखा हुआ है। यह ट्रेक्टर हर रोज़ गाँव के घर-घर से कूड़ा-कचरा इकट्ठा करता है और फिर इसे प्रबंधन के लिए भेज दिया जाता है,” सरपंच अहसान अली ने बताया।
स्वच्छता के साथ-साथ गाँववालों की शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी काफ़ी गौर है। समय-समय पर गाँव में स्वास्थ्य जागरूकता कैंप लगाये जाते हैं और साथ ही, अब गाँव में अपना एक जिमखाना, मेडिकल स्टोर और अस्पताल है। गाँव में समय-समय पर खेल प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं, जिनमें युवाओं से लेकर गाँव के बूढ़े तक भाग लेते हैं।
कृषि और पशुपालन पर आधारित जेठीपुरा में किसानों की मदद के लिए सेवा सहकारी समिति कार्यरत है, तो वहीं गाँव की दूध उत्पादक सहकारी मंडली भी है। फसल कटने के बाद अनाज के भंडारण के लिए भी ग्राम पंचायत ने दो गोदामों की व्यवस्था की हुई है।
गाँव का अपना रिटेल स्टोर
गाँव में 13 सखी-मंडल हैं और तो और यहाँ महिलाओं का अपना रिटेल स्टोर है, जिसे ‘अलंकर अपेरल्स’ का नाम दिया गया है। यहाँ पर मिलने वाले सभी कपड़े गाँव की महिलाओं द्वारा बनाये जाते हैं। गाँव में दौरे के लिए आने वाले सरकारी अधिकारी और अन्य मेहमान भी इस स्टोर से कुछ न कुछ ज़रूर खरीदते हैं। इस तरह से गाँव में ज़्यादातर सभी लोग किसी न किसी रोज़गार से जुड़े हुए हैं।
अहसान अली आगे बताते हैं कि सरकार की मनरेगा योजना के अंतर्गत गाँव के 50 लोगों को रोज़गार मिला हुआ है। इसके अलावा, ज़रूरतमंद लोगों के लिए बाबासाहेब आंबेडकर आवास योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कुल 33 घर बनवाए गये हैं।
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ग्राम पंचायत भवन में सभी कामों का लेखा-जोखा डिजिटल तौर पर रखा जाता है। किसी भी गाँव वाले को अपनी ज़मीनों के रिकॉर्ड देखने या फिर बिजली बिल आदि भरने के लिए शहर के चक्कर लगाने की ज़रूरत नही है। उन्हें बस पंचायत भवन तक आना होता है और यहाँ ग्राम पंचायत के सदस्यों की मदद से उनका काम बिना किसी विलंब के हो जाता है।
अपने आस-पास के इलाके में मिसाल बन चुकी जेठीपुरा ग्राम पंचायत को अब तक निर्मल गाँव, पावन गाँव, स्वच्छ व स्वास्थ्य गाँव, समरस गाँव और आदर्श बिजलीकरण गाँव जैसे 10 राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा जा चूका है।
गाँव वही, सोच नई
जेठीपुरा ग्राम पंचायत का उद्देश्य गाँव का विकास सिर्फ़ इंफ्रास्ट्रक्चर या तकनीकी स्तर पर ही नहीं करना है, बल्कि वे नई और प्रगतिशील सोच के लिए भी अग्रसर है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि मुहर्रम के दसवें दिन यानी कि ‘यौम-ए-आसुरा’ के दिन सभी गाँव वाले रक्तदान करते हैं। हज़रत इमाम हुसैन के अनुयायी शिया मुस्लिम इस दिन उनकी याद में ताजिया निकालते हैं और बहुत से लोग तो खुद पर कोड़ों की बरसात कर अपना खून भी बहाते हैं।
पर जेठीपुरा के सभी लोगों ने इस परम्परा पर गहनता से विचार करते हुए निर्णय लिया कि गाँव का हर एक व्यक्ति इस मौके पर रक्तदान करेगा। इससे उनकी आस्था भी बनी रहेगी और साथ ही, किसी ज़रूरतमंद की मदद भी होगी। इसी तरह गाँव वालों का मानना है कि मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं और इसलिए गाँव में नवरात्रि और ईद, दोनों ही त्यौहार सामूहिक रूप से मनाये जाते हैं।
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भविष्य में जेठीपुरा ग्राम पंचायत अपने गाँव को कृषि के क्षेत्र में और भी मजबूत बनाने की दिशा में काम करेगी। अहसान अली अंत में कहते हैं कि अगले 2-3 सालों के भीतर वे अपने गाँव में जट्रोफा करकस यानी कि रतनज्योत (जंगली एरंडी) के पेड़ लगाने पर काम करेंगें। रिसर्च के मुताबिक रतनज्योत बायोडीज़ल के लिए एक अच्छा विकल्प है और आने वाले वर्षो में यह उर्जा संसाधन के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है। इसलिए जेठीपुरा ग्राम पंचायत अभी से इसके क्षेत्र में काम करने पर विचार कर रही है।
दूसरा, वे अपने गाँव में एक सोर्टेक्स प्लांट लगाने की योजना पर काम कर रहे हैं। सोर्टेक्स मशीन की मदद से खेतों से निकलने वाले अनाज के दानों को उनके आकार, रंग आदि के आधार पर अलग किया जा सकता है और साथ ही, यह अनाज को अच्छे से साफ़ भी कर देती है। इससे किसी भी अनाज की शुद्धता और गुणवत्ता बढ़ जाती है।
गुजरात की जेठीपुरा ग्राम पंचायत न सिर्फ़ विकास के मामले में बल्कि सामाजिक तौर पर अपनी नवीन और प्रगतिशील सोच के लिए भी पूरे देश में एक मिसाल है। भारत के गाँव और शहर, दोनों जगह रहने वाले लोग इस गाँव के निवासियों से एकता और भाईचारे की प्रेरणा ले सकते हैं।